तपस्या -13
तपस्या -13
निर्मला की बेटी स्नेहा ने एक बार पूछा था कि ,"मम्मा ,आपको कभी बुरा नहीं लगता ?आपने सबके लिए इतना किया ,लेकिन कोई श्रेय नहीं । पापा भी आपको श्रेय नहीं देते । "
"बेटा ,कभी इतना सोचा नहीं । तुम दोनों बहिनें इतनी लायक हो गयी हो । मुझे तो सिर्फ यही चाहिये था । फिर तुम मुझे इतना प्यार और सम्मान देती हो तो और क्या चाहिए ?"
स्नेहा फिर अपने किसी जरूरी फ़ोन कॉल पर बिजी हो गयी थी । लेकिन आज निर्मला को या आ रहा था कि ,"उस भी तो वह सब चाहिए था । "
कभी -कभी निर्मला भी तो ,अपने पति रमेश से सिर्फ इतना ही चाहती थी कि रमेश उन्हें कुछ श्रेय दे दें। उनकी तारीफ में २ शब्द ही बोल दें। लेकिन रमेश कभी कुछ नहीं बोलते थे;हां अब उन्होंने उन पर हाथ उठाना बंद कर दिय था । शायद उन्हें लगता था कि कहने की ज़रुरत नहीं। निर्मला का मेरी ज़िन्दगी में जो स्थान है, वह उसे पता ही होगा। ऐसे ही गृहस्थी की गाड़ी चलाते -चलाते निर्मला और रमेश की शादी को 20 साल हो गए थे।
पूरी ज़िन्दगी हँसते -हँसते हर कदम पर रमेश का साथ देने वाली निर्मला अब धीरे -धीरे चिड़चिड़ी होने लगी थी। घर के अन्य लोगों पर लगातार प्यार लुटाने वाली निर्मल अब अंदर से खाली होने लगी थी। हर बात पर झुंझलाने लगी थी। रमेश और बच्चों को समझ नहीं आता था कि निर्मला को क्या हो गया है ?
ऐसे ही दोनों एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने गए थे। "भाभी की तबियत आजकल ख़राब रहती है।", वहां रमेश ने अपनी चचेरी बहिन से अपनी माँ के बारे में बात करते हुए कहा।
"अरे,भाभी आपको क्या हुआ?",चचेरी बहन ने रमेश के साथ ही खड़ी निर्मला से पूछा|
"अरे, इन्हें कुछ नहीं हुआ।अगर ये बीमार हो गयी तो हमारे घर का तो बंटाधार ही हो जाएगा।भगवान् इन्हें हमेशा ही स्वस्थ रखें।मैं तो तेरी ताईजीकी बात कर रहा था। "रमेश ने कहा।
रमेश की बात सुनकर निर्मला की आंख ही नहीं मन तक भीग गया था। आज उन्हें २० साल बाद ही सही, लेकिन अपनी तपस्या का मधुर फल जो मिल गया था।
आज बिस्तर पर लेटे हुए भी तो निर्मला को जब वह बात याद आयी तो वह पुलक उठी थी । हम स्त्रियों की दुनिया और ख़्वाहिशें बहुत छोटी सी होती हैं । परिवार की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी ढूंढ लेती हैं ।
फिर वक़्त के साथ निर्मला के सास-ससुर का साया भी उनके माथे से उठ गया था । निर्मला की बेटियाँ न केवल अपने पैरों पर खड़ी हो गयी थी ;बल्कि बहुत अच्छे पदों पर कार्यरत भी थीं । अब निर्मला दो क़ाबिल बच्चियों की गर्वीली माँ थी । वह अपनी बेटियों पर फख्र कर सकती थी । निर्मला का यही कहना था कि ,"यह उसके सास-ससुर का आशीर्वाद है । उसकी की हुई तपस्या सफ़ल हो गयी थी । आज जब उसे अपनी बेटियों के नाम से जाना जाता है तो वह अपने सारे दुःख और तकलीफें भूल जाती है । "
"मम्मा ,उठो .",स्नेहा की आवाज़ से निर्मला की नींद खुल गयी थी । स्नेहा उनका सिर छूकर देख रही थी और पूछ रही थी कि ,"आप ठीक तो हो । आज इतनी देर तक सोते रहे हो । हम सबको कितनी चिंता हो गयी थी । पापा तो बस डॉक्टर को फ़ोन करने ही वाले थे । "
अपनी इतनी फ़िक्र देखकर निर्मला बड़ी पुलकित थी और कहने लगी कि ,"बेटा ,कल नींद ज़रा देर से लगी थी । तुम्हारी माँ जब तक हरी गोटे पत्ती वाली नयी साड़ी पहनकर सोनू निगम का कॉन्सर्ट नहीं सुन लेगी ;उसे कुछ नहीं होगा । वह यमराज को भी बोल देगी कि आज नहीं कल चलेंगे । "
"सोनू निगम का ही क्यों ,मम्मी और भी सिंगर्स के कॉन्सर्ट सुनने हैं । ",स्नेहा ने मम्मी के गले लगते हुए कहा ।
..............................................................................................................................................................
