तीन इच्छाएं
तीन इच्छाएं
बिल्लू ने हिमालय की कंदराओं की एक गुफा में घोर तपस्या की, वर्षों तक। भगवान ने प्रसन्न हो दर्शन दिए और बिल्लू से कहा कि माँगो वत्स क्या मांगते हो ? बिल्लू ने चतुराई दिखाई और वरदान माँगा की मेरी तीन इच्छाएँ पूरी हों। भगवान ने तथास्तु कह पूछा की अपनी तीन इच्छाएँ बताओ।
बिल्लू ने बचपन में टेप रिकार्ड व् कैसट प्लेयर देखे थे, जिसमें रीवाइंड (पीछे ले जाने), स्टॉप (रोकने) व् फास्ट फौरवर्ड (आगे ले जाने) की सुविधा थी। इस सुविधा से बिल्लू अपना मन पसंद गाना या गाने की कोई विशेष पंक्ति दोबारा सुन सकता था और, अगर कोई गाना न सुनना हो, तो फास्ट फारवर्ड करके, अगला गाना सुन सकता था।
बिल्लू ने भगवान से अपनी तीन इच्छाएँ बताई कि वह जिन्दगी को रीवाइंड, स्टॉप व् फास्ट फारवर्ड करने में सक्षम हो जाए। भगवान ने तथास्तु कह दो शर्तें जोड़ दी कि ऐसा वह केवल एक एक बार ही कर पायेगा और जिन्दगी के घटनाक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा। यह कह भगवान अंतरध्यान हो गए।
बिल्लू ने वर तो मांग लिए लेकिन अब उसकी समझ में नही आ रहा था कि कहाँ तक अपनी जिन्दगी रीवाइंड करे। गुजर चुकी जिन्दगी में बहुत झाँका, फिर तय किया कि ८ दिसम्बर १९६७ तक जिन्दगी रीवाइंड की जाए।
यह वो तारीख थी जिस दिन उसकी बिड़ला विद्या मन्दिर, नैनीताल के बोरडीन्ग स्कूल से तीन महीने की छुट्टी हुई थी, अपने घर मुज़फ्फरनगर जाने के लिए। यह शायद वैसी ही खुशी थी जैसे की कैदी को जेल से छूटने पर मिलती हो।
बिल्लू के पापा कार से लेने नैनीताल आये थे। प्रातः के नाश्ते के बाद स्कूल से छुट्टी हुई। सामान कुली पहले ही ले जा चुका था। बिल्लू ९ बजे प्रशान्त होटल, तल्लीताल अपने पापा के पास पहुँच गया। फिर कार से मुज़फ्फरनगर के लिए चल पड़े। रास्ते भर बिल्लू कुछ ना कुछ खाता पिता रहा, जैसे कि ज्योलीकोट में काफ़ल, मुरादाबाद में ब्रैड पकोड़ा व् मेरठ के कालटैक्स पेट्रोल पंप पर आमलेट, आदि आदि। वो १० जुलाई से भूखा था।
जब हल्द्वानी निकला तो बिल्लू के पापा ने बताया कि वहां एक तीन भाइयों की दुकान है, उनमें से एक भाई (शाह जी) उनके साथ बिड़ला में फर्स्ट बैच में १९४७ में थे।
घर पहुँच कर मम्मी के हाथ का गाजर का हलवा खाया। रात को मनपसंद खाना। अगले दिन यानिकि ९ दिसम्बर १९६७ से ७ मार्च १९६८ तीन महीनों तक बिल्लू ने खूब खाया व् मौज की।
अब बिड़ला, नैनीताल (उस समय जेल ही लगती थी) वापसी का समय आ गया। ८ मार्च को पापा के साथ कार से चले। अब नाही कोई उत्साह था, नाही किसी चीज़ को खाने की इच्छा।
बिल्लू ने जिन्दगी का स्टॉप बटन दबा दिया। सब कुछ वर्तमान २४ दिसम्बर २०२० में वापस आ गया। बिल्लू की दो इच्छाएँ पूरी हो चुकी थी।
अब तीसरी इच्छा फास्ट फौरवर्ड की बाकी थी। बिल्लू ने उस इच्छा का बटन दबाने से पहले अपने भविष्य में झाँका। भविष्य की कल्पना के चल चित्र में उसे दिसम्बर की ठंड में भी उसी तरह पसीना आ गया जैसे कि गरुड़ पुराण सुनते हुए आदमी के डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
बिल्लू ने वह फास्ट फौरवर्ड की अपनी तीसरी इच्छा त्याग दी।
टेप रिकार्ड और असल जिन्दगी का फ़र्क बिल्लू को समझ आ गया था।
बिल्लू को बचपन से ही बेड-टी पीने की बुरी आदत है। बिल्लू अपनी पत्नी के इस बात के लिए भी एहसान मन्द है कि घड़ी की सुइयाँ इधर से उधर हो जाए, पर बारह महीने उस की बेड-टी ठीक प्रातः ६ बजे उसके बेड पर आ जाती है और मुर्गे की बाँग की तरह एक आवाज़ आती है, ‘चाय रखी है’, उसी से बिल्लू की नींद खुलती है।
आज भी आवाज़ आई, ’चाय रखी है’। बिल्लू की नींद खुल गयी।
बिल्लू को घोर आश्चर्य था कि बिल्लू ने सपने में भी कैसे घोर तपस्या कर ली, वो भी हिमालय पर, जबकि बिल्लू का ८ जुलाई १९७२ से ८ दिसम्बर १९७२ तक बिड़ला, नैनीताल में ना नहाने का ५ महीने का रिकार्ड है।
बिल्लू तो रोज रात को सोने से पहले भगवान की फोटो के सामने खड़े हो कर यही कहता है कि आज के पाप माफ़ करो।
फिर धीरे से मन ही मन बुदबुदाता है कि कल फिर करेंगे।
जिन्दगी ना रीवाइंड होगी, ना स्टॉप और न ही फास्ट फौरवर्ड, वह तो अपनी गति से ही चलेगी।