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MITHILESH NAG

Others

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MITHILESH NAG

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सुबह का भुला

सुबह का भुला

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कहते है, दादा और पोते की जुगलबंदी हमेशा से यादगार होते है। और इसलिए तो हमेशा से पोते की नटखट शरारत में दादा भी शामिल हो जाते है। आयुष 5 साल का बहुत मासूम और प्यारा बच्चा है। वो अपने मम्मी पापा से ज्यादा अपने दादा के साथ ही रहना पसंद करता।

“दादा जी, आपके बाल इतने सफेद क्यो है?” (बाल को छू कर)।

“आयुष बेटा, हमारी अब उम्र हो चुकी है और तुम्हारे पापा से भी तो बड़े है। (हँसते हुए)

“लेकिन दादा जी, मेले बाल क्यो ताले है, मेले भी तफेद हो चाहिये (तुतलाकर बोलता)

“ठीक है, जब बड़े हो जाओगे तो तुम्हारे भी बाल सफेद हो जायेंगे” 

“सच्ची मुच्ची, “ ( खुश होते)।

बातें करते करते बहुत टाइम हो गया। किशोर को पता ही नहीं चला, वैसे उनको बहुत अच्छा लगता है, अपने पोते से दिन भर बात करने में। और तभी एक छोटे से थाली में दाल चावल सीता ला कर खाने को देती है।

“आओ आयुष बेटा, हमेशा दादा जी के साथ ही रहोगे की कभी अपनी मम्मी के पास भी रहोगे।“

दादा और सीता दोनों हँसने लगे वो भी इस लिए आयुष बड़े ध्यान से दादा और अपनी मम्मी के बाल देख रहा था।

सीता आयुष को अपनी गोद में बैठा कर उसको खाना खिलाती है, और साथ में ही उसको गाने भी सुना रही है।

“मम्मी, तुम्हाले बाल तो ताले है, लेतींन तुम तो बड़ी हो?”

“बेटा, तुम्हारे दादा जी की तरह मैं अभी छोटी हूँ। लेकिन कभी ना कभी तो सफेद हो जायेंगे।"

काफी रात होने की वजह से सब खाना खा कर सोने चाले गए ।

सुबह.....

सुबह सुबह किशोर बाहर बगीचे में अपने एक बहुत ही पुराने मित्र से गपशप करते है।

हर दिन ऐसे ही चलता रहता है। लेकिन कुछ देर में आयुष भी अपने दादा के पास आ कर बैठ जाता है। किशोर के मित्र को भी वो अच्छी तरह जानता है।

“दादा जी नमस्ते,” ( दोनों का पैर छूकर )

“जीते रहो, नाम करो अपने दादा का नाम” (किशोर के मित्र ने)

“दादा जी कभी मैं भी आप के घर चलूँगा”, बहुत मन है”।

“हाँ, पोते जब मन करे तब चलो” ( उसको गोद में लेकर)

“अच्छा, किशोर जी मैं अब चलता हूँ, दुकान भी तो खोलना है” (उठ कर)

दोनों एक दूसरे को हाथ मिला कर सुरेश जाता है। आयुष भी टाटा कर के घर में चला जाता है। 

दोपहर को....

दोपहर को किसी काम से किशोर बाजार जा रहा था। 

“दादा जी, मैं भी बाजार चलूँगा।"

लेकिन दादा जी ने इसको ये बोल कर मना कर दिया कि अभी कुछ देर में आ जाऊँगा”।

और दादा जी चले जाते है, आयुष रोने लगा।

1 घण्टे बाद...

किशोर का वही मित्र उसको कॉल करता है।

“किशोर जी आपका पोता मेरे घर पर आ कर बैठा है,” बोलता है दादा जी गंदे है मुझे बाजार नहीं ले गए।“ वो तो मैं तब से उसको यही बैठा कर चॉकलेट दे दिया है। वो आप से गुस्सा भी है।

“दादा जी को ये बातें सुन कर पहले हँसी आयी, लेकिन उसको रोक कर रखना” ( फ़ोन पर)।

कुछ देर बाद......

किशोर अपने मित्र के पास आता है। और देखता है की आयुष उनको देख कर मुँह दूसरी तरफ कर के बैठ जाता है। 

“लगता है, आज मेरा पोता मुझ पर गुस्सा है,अब की होगा”।

“मैं आप से बात नहीं करूँगा, आप मुझे नहीं ले गए।"

सुरेश यार, आज घर पर जलेबी बन रहा है, सोचता हूँ जब आयुष नहीं चलेगा तो वो मैं ही खा जाऊँगा।

पहले तो आयुष तिरछी निगाहें कर के देखता है लेकिन जैसे ही वो जलेबी की बात सुना तो उसके मुँह से पानी आ गया।

“जलेबी, जलेबी बन रहा है” मुझे घर चलना है” (खुश हो कर)।

फिर क्या सब के सब उसकी बात सुन कर हँसने लगें। और दादा ने भी बोला 

“ठीक है, अगर सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसको भूला नहीं कहते”

“तब क्या कहते है दादा जी, (उनको देखते हुए)

“घर चलो जलेबी खाते खाते बताऊंगा।"

और दादा की अंगुली पकड़े सुरेश के घर से निकलता है।


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