सतूआन
सतूआन
उत्तर पूर्व बिहार/झाड़खंड (खासकर मिथिला) में एक लोकपर्व सदियों से प्रचलित है, वह है सतूआन। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह पर्व १४ अप्रैल को मनाया जाता है।
नवंबर माह में जो जौ/चने की फसल बोई जाती है वह अब तक कटने लायक़ हो जाती है। उसी जौ/चने के दाने को जात्ता में पीसकर सत्तू बनाया जाता है। साथ में पांच गुच्छा वाले आम के टिकोला को पुदीना पता के साथ सिलौटी पर पीसकर चटनी बनाया जाता है।
और गृह देवता सहित सूर्य देवता को भोग लगाने के उपरांत प्रसाद के रूप में परिवार के सभी सदस्यों के बीच यह सत्तू वितरित की जाती है।
मान्यता है की गृष्म ऋतु में जौ/चने का सत्तू खाने से पाचनशक्ति ठीक रहने के साथ साथ उदर को शीतलता प्रदान करती है।
वहीं आम की चटनी लू से बचाने में मदद करती है।
इसके ठीक एक दिन बाद यानी १५ अप्रैल को जूड़शीतल का पर्व मनाया जाता है। इस दिन अहले सुबह गांव के बड़े बुजुर्ग लोग पीतल के लोटा में जल लेकर पूरे आंगन दरवाजे में जल का छिड़काव करते हैं तदोपरांत चुल्लू में जल लेकर उम्र में अपने से छोटे के माथे पर जल आशीर्वाद के रूप में देते हैं। और जल ग्रहण करने वाले लोग जल दाता के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
बच्चे लोग का ड्यूटी होता कि नजदीक के नदी/तालाब से बाल्टी में पानी भर कर छोटे बड़े सभी वृक्षों में जल देना।
और इस प्रकार पर्व के बहाने गृष्म ऋतु में पौधों की सिंचाई भी हो जाया करती थी।
समय के साथ शायद दोनों ही पर्व विलूप्ती के कगार पर है। गांव तो मेरा भी अब कम आना जाना रह गया है लेकिन जहां तक मुझे मालूम है सतूआन का लोकपर्व थोड़ा बहुत प्रचलन में बचा है। परंतु जूड़शीतल शायद विलूप्त हो चुका है।