सफर राजऋषि से ब्रह्मऋषि का
सफर राजऋषि से ब्रह्मऋषि का
मैं लौट कर आऊंगा, मैं अपने अपमान का बदला अवश्य लूंगा।
क्रोधाग्नि से जलते हुए राजा कौशिक ने कहा, और हिमालय की ओर उनके पग बढ़ गए।
एक ऋषि (वशिष्ठ )से हारना एक क्षत्रिय राजा का अपमान था। बात तब शुरू हुई, राजा कौशिक अपने दल बल के साथ कहीं से आ रहे थे। जंगल से गुजरते उन्होंने थोड़ा विश्राम करने को सोचा ।वहीं शिविर लगा दिया गया। विश्रांति से क्लांत तन वहां के सुरम्य वातावरण में ऊर्जित हो रहा था। सरस्वती नदी का किनारा, आस पास का शांत वातावरण और वहीं से आती यज्ञ शाला में जड़ी बूटियों की खुशबू, मनमोहक थी।
राजा कौशिक के कुछ सैनिक जो इधर उधर वातावरण का जायजा लेने गए थे, आकर सूचना दी_महाराज की जय हो।
यहीं नजदीक ऋषि वशिष्ठ का आश्रम है।
अहोभाग्य, हमारे ऋषि वशिष्ठ से मिलने का मौका मिलेगा_राजा कौशिक ने कहा।
पुत्रों चलो, हम ऋषि वशिष्ठ से मिल आएं।
ये सप्तऋषियों में एक हैं।
ऋषि वशिष्ठ ने अतिथियों का स्वागत किया, और जलपान और भोजन के लिए आग्रह किया ।
विश्वामित्र ने सोचा, सेना का आवभगत करने में ऋषि को कठिनाई होगी, उन्होंने विनम्रता से ऋषि से कहा_हे द्विजश्रेष्ठ, हमें जल्दी जाना है, इसलिए हम भोजन और जलपान ग्रहण नहीं कर पाएंगे।
वशिष्ठ जान गए कौशिक की मन की बात, उन्होंने आग्रह किया, हमें कोई परेशानी नहीं होगी ।अतिथि की सेवा करना, लाख पुण्यों के बराबर है।
जैसी आपकी इच्छा _कौशिक ने अपनी स्वीकृति दे दी।
आश्रम में, खाने की व्यवस्था इतनी अच्छी, देख कौशिक हैरान हो गए।
पता करने पर जानकारी मिली कि वशिष्ठ ऋषि के पास नंदिनी नाम की कामधेनु गाय है, जिससे वे सारे संसार की भूख मिटा सकते हैं, और हर इच्छा की पूर्ति हो सकती है।
राजा कौशिक लालच के वशीभूत हो गए, उन्हें लगा कि राजा के पास संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तुएं होने का हक है।
उन्होंने ऋषि से गाय देने की याचना की।
जिसे ऋषि ने अस्वीकार कर दिया। वे बलात् गाय ले जाने लगे।
नंदिनी ने ऋषि को कहा, आप इन्हें रोके इन्हें शापित करें।
वशिष्ठ ने कहा मैं कैसे शापित कर सकता हूं, ये हमारे अतिथि हैं।
तब नंदिनी के शरीर से अनेकोनेक सैनिक, अस्त्र शस्त्र लेकर प्रकट हुए, और उन्होंने कौशिक की सेना को पराजित कर दिया। और नंदिनी वापस वशिष्ठ मुनि के आश्रम लौट आई।
राजा कौशिक ने भगवान शिव तपस्या की और अस्त्र, शस्त्र प्राप्त किए और लौट कर आए। उन्होंने फिर ऋषि वशिष्ठ को ललकारा, इस बार शस्त्रों का प्रयोग दोनों ओर से हुआ, अंत में जब वशिष्ठ ने ब्रह्मास्त्र चलाने के लिए मंत्र पढ़ा, तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कांप उठा, देवगणों ने वशिष्ठ जी से विनती कि की वो ऐसा न करें।
अब राजा कौशिक का दंभ खत्म हो गया। उन्हें लगा कि योगबल इतना प्रभावी है कि मेरा बल, अस्त्र, शस्त्र सब बेकार और इस भाव के आते, उन्होंने अपना राज्य, पुत्रों के हवाले किया और सब कुछ त्याग गहन तपस्या में लीन हो गए। उनके तप से उनका शरीर देदीप्यमान होने लगा, माया, क्रोध, ईर्ष्या सब विलुप्त होते गए।
आखिर ब्रह्मा जी ने उन्हें ब्रह्मऋषि की उपाधि दी। और वही राजा कौशिक से विश्वामित्र कहलाए।
सरयू गंगा के मिलन स्थल पर उन्होंने अपना आश्रम बनाया, जिसे सिद्धाश्रम कहते हैं ।ये बिहार के बक्सर में स्थित है।
