हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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संगत का असर : भाग - 2

संगत का असर : भाग - 2

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लाला जीवन लाल अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में डिनर के लिए आये थे मगर पुलिस थाने से फोन आने के बाद वे वहां से बिना डिनर लिये ही वापिस चल पड़े । 


गतांक से आगे 

लाला जीवन लाल , शोभा और लवी के मन में धुकधुकी हो रही थी । जाने क्या बात है ? शुभम तो ऐसा नहीं है । उसे तो आज तक कभी चोरी करते नहीं देखा और ना ही किसी से सुना चोरी के बारे में । मगर थाने से आया फोन तो हकीकत है । उसे कैसे झुठलाया जा सकता है ? 


शोभा का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया था । भारतीय स्त्रियां ऐसे समाचार सुनकर तुरंत रोना शुरू कर देती हैं । आदमी खुद को संभाले , बच्चों को संभाले , परिस्थितियों को संभाले या पत्नी को संभाले ? लाला जीवन लाल को कुछ भी नहीं सूझ रहा था । शोभा को संभालता तो लवी बिखर जाती । लवी को संभालें तो शोभा पागलों की तरह दहाड़ें मारती । कार चलाना भारी पड़ रहा था उनको । 


अचानक उन्हें याद आया । क्यों ना शुभम के दोस्त से बात की जाये ? शायद उसे कुछ पता हो । इतने में उनका घर आ गया । गाड़ी पोर्च में खड़ी करके वे तुरंत गाड़ी से उतरे और शुभम के दोस्त साहिल को फोन लगाया । मगर साहिल का फोन तो स्विच ऑफ बता रहा था । यह तरकीब भी काम नहीं आई । तब उन्होंने शुभम के पीजी हॉस्टल को फोन लगाना उचित समझा । उसके मालिक को फोन लगाया । उधर से आवाज आई 

"हैलो" 

"जी, मैं शुभम का पापा बोल रहा हूँ । शुभम है क्या यहां पर ? उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा है । अगर हो तो बात करा दीजिए, प्लीज" । 

"सर, शुभम यहां पर नहीं है । दो तीन घंटे पहले दो तीन पुलिस वाले आये थे और उसे पकड कर ले गये थे । मैने पूछा भी मगर उन्होंने यही कहा कि इसने एक मोटरसाइकिल चुराई है । और कुछ नहीं कहा , बस उसे ले गये" । 

"और कुछ जानकारी है आपके पास" ? 

"नहीं सर , और कुछ भी जानकारी नहीं है"। 

"ठीक है । धन्यवाद जी" । 


इस बातचीत से यह साफ हो गया था कि शुभम को मौके पर चोरी करते नहीं पकडा गया । उसे घर से उठाकर ले गई थी पुलिस । अब तो एक ही तरीका है कि थाने जाकर ही बात की जाये । यह सोचकर जीवन लाल ने अपना ड्राइवर बुलवाया और जयपुर चल पड़े । 


रास्ते में उन्होंने अपने परिचित श्याम सुंदर जी को फोन लगाया और इस घटना की जानकारी दी । श्याम सुंदर जी बहुत नेक दिल और सबकी मदद करने वाले इंसान हैं । उन्होंने तुरंत कहा 

"आप सीधे थाने ही आ जाओ । तब तक मैं और बेटा सौरभ थाने जाते हैं" । 


जब विपदा में किसी अपने से कुछ मदद मिले , मदद के साथ सुहानुभूति के दो मीठे बोल मिलें तो आदमी की हिम्मत बढ़ जाती है । श्याम सुंदर जी की बातों से जीवन लाल जी को कुछ संतोष हुआ और ढ़ांढस भी बंधा । मन ही मन यह खयाल आ रहा था कि शुभम चोरी कैसे कर सकता है ? क्या उन्होंने उसको ऐसे संस्कार दिये हैं ? या कोई उसे झूठे केस में फंसा रहा है ? अगर ऐसा है तो कौन है वह और उसका उद्देश्य क्या है ? 


उनके विचारों का घोड़ा बड़ी तेज गति से दौड़ने लगा । मन ही मन वे दृद विश्वास करने लगे थे कि शुभम चोरी नहीं कर सकता है । लेकिन पुलिस तो उसे उठाकर थाने ले गई है ना । अब अगर उसके खिलाफ कोई एफ आई आर दर्ज हो गई तो उसका तो कैरियर ही चौपट हो जायेगा । यह सोचकर उनकी रूह कांप गई । जितना दुख उस समय नहीं हुआ था जब थाने से फोन आया था मगर जैसे ही शुभम के कैरियर के बारे में सोचा तो उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया । 


इतनी देर में श्याम सुंदर जी का फोन आ गया । कहने लगे 

"मैं और सौरभ दोनों शुभम से थाने में मिल लिये हैं । वह मना कर रहा है कि उसने कोई चोरी नहीं की है और ना ही वह किसी मोटरसाइकिल के बारे में जानता है" । 


इन शब्दों ने जीवन लाल जी को कितना सुकून दिया था कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है । श्याम सुंदर जी ने जैसे उनके जलते घावों पर मरहम लगा दिया हो । जैसे डूबते को किनारा मिल गया हो । जैसे आशा का दीपक जला दिया हो । यह आशा का दीपक कौन सा था ? शुभम की बेगुनाही का या अपने संस्कारों की मजबूती का या अपने दृढ विश्वास का या शायद सबका । उनकी उम्मीदों को पंख लग गये थे । 


अचानक उन्हें याद आया कि यह बात एक बार शोभा को बता दी जाये जिससे उसके मन को भी थोड़ी तसल्ली मिल जाये । ऐसा सोचकर उन्होंने शोभा को यह समाचार सुनाया और श्याम सुंदर जी के प्रयासों की सराहना भी की । इस समाचार को सुनकर शोभा को भी थोड़ी तसल्ली हो गई थी । मगर वह इस बात से परेशान थी कि जब शुभम ने चोरी ही नहीं की तो पुलिस उसे पकड़कर थाने क्यों लेकर गई थी ? इस बात का जवाब तो जीवन लाल जी के पास भी नहीं था । उन्होंने भी इतना ही कहा कि थाने पहुंच कर ही पता चल पायेगा । 


उन्होंने फोन रखा ही था कि गाड़ी थाने पहुंच गई । श्याम सुंदर जी उन्हें थाने के बाहर ही मिल गये । सौरभ भी वहीं पर था । श्याम सुंदर जी ने जीवन लाल जी को सांत्वना देते हुए कहा 

"आप बिल्कुल चिंता नहीं करें । शुभम कह रहा है कि उसने चोरी नहीं की है मगर पुलिस वाले कह रहे हैं कि इसका दोस्त रौनक कह रहा है कि वह मोटरसाइकिल शुभम की है , जिसे पकड़ा है" । 

"मैं कुछ समझा नहीं" । जीवन लाल जी ने अचकचा कर कहा 

"अरे , ये थानेदार कह रहा है कि एक मोटरसाइकिल चोरी हो गयी थी । उस मोटरसाइकिल को गौरव टॉवर के पास उसके मालिक ने देख लिया और पहचान लिया । उसने दो तीन लोग और बुला लिये और पुलिस भी बुला ली । गौरव टॉवर से निकल कर रौनक जैसे ही उस मोटरसाइकिल तक पहुंचा , उन सबने रौनक को धर दबोचा और उसे थाने ले गये . उसकी मार पिटाई की तो उसने कह दिया कि यह मोटरसाइकिल तो शुभम की है और वह शुभम से लेकर गौरव टॉवर गया था । इसके बाद पुलिस शुभम को पकड़कर थाने ले गई" । 


"अच्छा तो यह बात है" । पूरे घटनाक्रम को सुनकर जीवन लाल जी की जान में जान आयी । 


शेष अगले अंक में 



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