सम्बल
सम्बल
आज मेरी प्यारी प्रिया चली गई। इस ज़िन्दगी का साथ और मेरा हाथ छोड़ चली गई अपने लंबे सफर पर । कैंसर जैसी बीमारी से लड़ते मैंने उसे रात और दिन देखा ,उसकी पीड़ा का अहसास था मुझे देखी नहीं जा रही थी उसकी तकलीफ ,तभी भगवान की मूर्ति के सम्मुख मेरी प्रार्थना एक बार मे ही स्वीकार हो गई ,"हे ईश्वर उसे दुख तकलीफों से छुटकारा दिला दो और यह क्या ,क्या सच्चे मन की प्रार्थना थी जो एक बार मे ही स्वीकार कर ली भगवान ने ।"
बेटा आदित्य दौड़ता हुआ आया -"पापा जल्दी चलो माँ नहीं रही "
और वह मुझसे लिपट गया ,और यह क्या मेरी आँखों से भी आँसू ना निकले और उसकी भी ,शायद हम दोनों एक दूसरे को संभालने की कोशिश में अपने आपको थामे हुए थे। घर मे बेटी है ,बहू है मेरी अपनी माँ भी हैं अभी इस दुनियां में ,शायद भगवान ने उन्हें मेरा दुख दिखाने दीर्घायु कर रखा था ।
मेरे सामने मेरी प्रिय पत्नी का मृत शरीर पड़ा है, पर मैं रो नही पा रहा हूं क्या हो गया है मुझे ? मेरे आँसू आंखों से बाहर क्यों नहीं आ रहे ?क्या मैं जमाने को दिखाना चाहता हूँ कि मैं पुरुष हूँ ?और कभी हिम्मत नही हारता कठिन परिस्थितियों में भी ,मैं धैर्य का साथ नही छोड़ता । मेरे अंदर का पति अपनी साथी को खोने के गम में चीख चीख कर रोना चाहता है ।वो मेरी प्राणप्रिया मुझे छोड़ हमेशा के लिए चली गई और अब मेरे लिए उसके बिना जीना कितना दूभर हो जाएगा किसे बताऊँ ।
पत्नी को अंतिम यात्रा के लिए ले जा रहे हैं, मेरा चेहरा भावशून्य हो गया साथ ही दिमाग भी ।
पुत्र आदित्य मेरा हाथ पकड़ प्रिया को अग्नि दिलवाता है ,धू धू कर जलती उस अग्नि में मुझे प्रिया का सुंदर शांत मुख दिख रहा है। मानो कह रही है "अब तो तुम्हें रोने की और भी मनाही है ,सिर्फ बच्चों के लिए खुश रहना है तुम्हें"।
सच ही कह रही है वह ।
बेटी बहू सब मुझे ढाढ़स बंधा रहे हैं ,"पापा हम सब हैं आपके साथ ,आप बिलकुल दुखी मत होना ।"
आँखों के अंदर ही रुक गए आँसू ,अरे मैं पुरुष हूँ ,मुझे रोना नही है ,इन सबका सम्बल हूँ मैं ।