समांतर रेखा
समांतर रेखा
हर्षिता एक बहुत ही प्यारी बच्ची थी। गोरे रंग और आकर्षक व्यक्तित्व वाली हर्षिता कक्षा 8 में पढ़ती थी। वैसे तो हर्षिता पढ़ाई में काफी अच्छी थी लेकिन गणित में थोड़ी कमजोर थी ।उसकी परीक्षाएं पास आने वाली थी, इसलिए हर्षिता की मम्मी ने उसके लिए एक निजी गणित शिक्षक का इंतजाम कर दिया था ।अब प्रवीण सर रोज हर्षिता को उसके घर पर गणित पढ़ाने आते थे ।लंबे कद वाले प्रवीण सर का बोलने- चालने का तरीका इतना प्रभावशाली था कि यदि कोई उनसे एक बार बात कर ले तो शायद उनका दीवाना ही हो जाए। प्रवीण सर जब हर्षिता को गणित के सवाल हल कराते थे तो हर्षिता का ध्यान सवाल में कम और सर की तरफ ज्यादा होता था। सर ने कई बार हर्षिता को ध्यान से पढ़ने के लिए समझाया था, पर हर्षिता का दिमाग पढ़ाई में नहीं था। प्रवीण सर भी इस बात को समझ चुके थे कि हर्षिता का ध्यान कहां रहता है । एक दिन प्रवीण सर को गणित का नया अध्याय शुरू करना था-" समांतर रेखाएं।" उन्होंने हर्षिता को समझाया कि समांतर रेखाएं ऐसी रेखाएं होती हैं जिन्हें चाहे आगे कितनी भी बढ़ा लिया जाए वह कभी एक दूसरे से नहीं मिलती। यह सुनकर हर्षिता कहती है कि सर ऐसा हो ही नहीं सकता रेखाएं आपस में कभी ना कभी तो टकराती ही हैं। इस पर सर उसे समझाते हैं कि हमारे जीवन में समांतर रेखाओं का बहुत महत्व है हमारा साथ भी समांतर रेखाओं की तरह है जिसे आगे कितना भी बढ़ा लो लेकिन इसकी कोई मंजिल नहीं है जैसे रेल की पटरी। जीवन में आड़ा तिरछा चलने पर हमेशा मुंह के बल गिरते हैं, इसलिए हमें हमेशा सीधा ही चलना चाहिए ।सर के काफी समझाने पर अब हर्षिता समझ जाती है और कहती है-" हां सर मैं समझ गई समांतर रेखाएं कभी एक दूसरे से नहीं मिलती।"