शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा की रात मैंने खीर बनाई । कुछ देर चांदनी में रखी, घर के मंदिर में श्री कृष्ण को भोग लगाने के बाद,बच्चों के साथ चांदनी में बैठ खीर खाने लगी। मेरी बेटी प्रिया और बेटा मोहक खीर खाते हुए मुझसे सवाल करते हैं। माँ शरद पूर्णिमा को खीर क्यों बनाई जाती है? चांदनी में क्यों रखी जाती है?
मैं बच्चों की जिज्ञासा शांत करते हुए कहती हूं, बच्चों शरद पूर्णिमा का चांद खास होता है ।इस रात चांद अपनी समस्त सोलह कलाओं से युक्त होकर चमकता है। इसलिए शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा का प्रकाश सबसे ज्यादा तेज होता है।
पुरातन ग्रंथों में भी शरद पूर्णिमा का उल्लेख मिलता है इस रात चांद की किरणों से जो शीतलता बरसती है वह अमृत तुल्य होती है ।शरद पूर्णिमा की रात ही श्रीकृष्ण गोपियों संग महारास किया करते थे।इसलिए भी शरद पूनम का महत्व विशेष है। खीर को चांदनी में रखा जाता है। जिससे खीर में शीतलता (अमृततत्व)का समावेश हो जाये।ये खीर गुणों से भरपूर हो जाती है। घंटों खीर चांदनी में रखी जाती है। उसके बाद श्री कृष्ण को भोग लगाकर खाई जाती है। श्री कृष्ण से सौन्दर्य, गुण और तेज की कामना की जाती है ।कुछ लोग खीर को रात को खा लेते हैं। कुछ सुबह सबेरे भोग लगा कर इसका सेवन करते हैं।
"हमने तो श्री कृष्ण से कुछ मांगा ही नहीं माँ ।" बच्चों ने दूसरा सवाल किया ।श्री कृष्ण बिन माँगे ही सब दे देते हैं ,वो जानते हैं हमें क्या चाहिए । मैंने कहा।ठीक है माँ ।
मैंने बच्चों को बताया जब हम बच्चे थे तब शरद पूर्णिमा को हम लोग चांदनी के उजाले में सूई में धागा डाला करते थे। हमारी नानी दादी कहती हैं कि इससे आंखों का तेज बढ़ता है।
इतने में ही मोहक बोल उठा "माँ चांद को मामा क्यों बुलाते हैं ।आप हमेशा लोरी भी यही सुनाती हैं "चंदा मामा दूर के पुए पकाये भूर के आप खाये थाली में मुन्ने को दे प्याली में,प्याली गई फूट मुन्ना गया रूठ।"
चंदा को मामा बुलाने के पीछे बहुत से किस्से हैं बेटा। एक तो यही कि हर बहन को अपना भाई चंदा जैसा खूबसूरत लगता है। दूसरा ये कि जब बहनें ससुराल चली जाती हैं तो चांद को भाई मान कर उससे अपने दुख सुख बांट लिया करती हैं । चांद को अपने संदेश पीहर पहुँचाने की विनति करती हैं। इसीलिए हर मां अपने बच्चों को सदा यही कहती है" देखो चंदा मामा आये। चंदा मामा कह कर ही चांद का परिचय बच्चों से करवाती हैं ।"
मोहक ने दूसरा सवाल किया "माँ चंदामामा कभी नीचे क्यों नहीं आते" ?क्या हम चंदामामा से मिल सकते हैं?"
"हां क्यों नहीं तुम चाहो तो अभी उनसे मिल सकते हो ।"
"वो कैसे मां ?"
"चलो मिलवाती हूँ ।"यह कह कर मैं चौड़े मुंह के टब में पानी भर कर लाती हूं ।बच्चों के सामने रखती है। चांद की परछाई पानी में पड़ते ही मैं कहती हूं लो आ गये तुम्हारे चंदा मामा। बच्चे पानी में चंदा मामा की परछाई को देख खुश हो जाते हैं। माँ कब तक रहेंगे? जब तक तुम पानी को हिलाओगे नहीं। बच्चे चंदामामा से मिल कर खुश हो जाते हैं।
प्रिया सवाल करती है माँ पूर्णिमा कितने दिनों बाद आती है। बेटे पूर्णिमा महीने में एक बार आती है। पूर्णिमा के बाद चांद हर रात घटता जाता है।छोटे रूप लेता रहता है। पंद्रहवें दिन बिलकुल ही दिखाई नहीं देता है। उस रात अमावस्या होती है ।अमावस्या से फिर चांद हर रात बढ़ता है पंद्रह दिन बाद फुलमून दिखाई देता है उसे पूर्णिमा कहते हैं। इसतरह महीने में एक पूर्णिमा और एक अमावस्या आती है ।
मैं बच्चों से कहती हूं "रात बहुत हो गई है चलो सो जाते हैं "।हां माँ! मैं और बच्चे चंदा मामा को शुभरात्रि कहते हैं और विदा लेते हैं ।