शनिवारवाड़ा
शनिवारवाड़ा
सत्ता ,और कुर्सी का खेल सदियों से खेला जा रहा है।इतिहास गवाह है,महलों के अंदर होते षड्यंत्रों का , जो रिश्तों को तार तार करते ।कुछ ऐतिहासिक इमारतें आज भी अपने अंदर दफन ,ऐसी ही दर्दनाक कहानियां बयां करती हैं।
शनिवारवाड़ा महाराष्ट्र के पुणे में स्थित एक दुर्ग है।इसका निर्माण पेशवा बाजीराव ने करवाया था।इसकी नींव शनिवार के दिन रखी गई थी ,इसीलिए इसे शनिवार वाड़ा कहा गया।
यह दुर्ग लालच ,फरेब की कहानी कहता है ,कहते हैं इस किले से रात में कभी कभी चीखने की आवाज सुनाई देती है ,
काका मुझे बचाओ।
बाजीराव पेशवा के तीन पुत्र थे , विश्वास राव, माधव राव,और सबसे छोटा नारायण राव।
1761 में मराठाओं और अहमद शाह अब्दाली के बीच पानीपत की लड़ाई , में मराठों के सेना की बहुत बड़ी हार हुई विश्वासराव की हार हुई,जिसके गम में बाजीराव पेशवा भी चल बसे।
फिर सत्ता की बागडोर संभाली माधव राव ने।माधव राव ने मराठाओं की तरक्की के लिए कई कार्य किए। राज्य की बागडोर का सही संचालन उनके सधे हाथों में था।
लेकिन 1772 में उनकी अचानक मृत्यु हो गई।
छोटे भाई को सत्ता की बागडोर सौंपी गई उस समय उनकी उम्र महज 14 से 16 साल के मध्य थी। उनके चाचा रघुनाथ राव को उनके देखरेख के लिए नियुक्त किया गया।
चाची आनंदी बाई को अपने पति को छोटे पेशवा की जी हुजूरी करना नहीं अच्छा लगता था ,वह हमेशा रघुनाथ राय को भड़कती थी।
नारायण राव को भी चाचा का अत्यधिक राज काज में हस्तक्षेप पसंद नहीं था ,तनातनी दोनों के बीच चरम पर था।
शुरू हुआ षड्यंत्रों का सिलसिला ।कहते हैं रघुनाथ राय ने गार्दियों को चुपचाप नारायण राव को बंदी बनाने का हुकुम दिया,हुकुम इस प्रकार था,_नारायण राव ला धरा।
लेकिन आनंदी बाई ने हुकुम में _नारायण राव ला मरा कर दिया। ध और म शब्दों का हेर फेर कर दिया।
गार्दी ,गार्ड को कहते है,तीन गार्ड जो नारायण राव के कमरे के बाहर पहरा देते थे, सुजान सिंह, खड़ग सिंह,और मोहम्मद इशहाक तीनों ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया ,नारायण राव को अहसास हो गया ,वह भागने लगे और चिल्लाते रहे की काका मुझे बचाओ ,लेकिन किसी ने उन्हें नहीं बचाया ,ये चीख महल के दीवारों में गूंजती रही ।आज भी वहां से ये आवाज आती है ,ऐसा स्थानीय लोगों का मानना है।
किले में कभी कभी अप्रत्याशित रूप से कोई न कोई घटना होती ही रहती है । एक बार तो किले के एक हिस्से में रहस्यमई ढंग से आग लग गई थी ,जो कई दिनों तक जलती रही।
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