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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Others

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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शीतल की वापसी ...

शीतल की वापसी ...

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शीतल के घर से निराश लौटते समय, 'दिनाँक 20 फरवरी 2019 है', यह मैंने स्मरण कर लिया था । तब से मुझे प्रतीक्षा करनी थी, 20.02.2020 की जबकि मैं, दीप एवं शीतल को वापिस, अपने घर ला सकूँ। मैं तब बुरी तरह आशंकित भी था कि 1 वर्ष बड़ा समय होता है, जिसमें कुछ भी भला-बुरा घट सकता है। ना जाने, इस बीच क्या अप्रिय हो जाए, कुछ नहीं कह सकते।ईश्वर का, धन्यवाद करूँगा, यह समय ठीकठाक बीत गया था। यध्यपि बीच-बीच मैं कमजोर पड़ा था, अनेक बार मैंने, शीतल से मोबाइल पर बात करनी चाही थी। व्हाट्सएप संदेश किये थे, किंतु शीतल ने अपने व्यवहार से मुझे इस हेतु हतोत्साहित कर दिया था। वह संदेशों का कोई रिप्लाई नहीं करती, कॉल रिसीव नहीं करती अपितु भाई के द्वारा रिंग बैक करवा देती, जो मुझे बताता कि दीदी बात नहीं कर सकेगी।


दो बार मैं उसके घर भी गया मगर मुझे दरवाजे से लौटना पड़ा। घर का कोई और सदस्य दरवाजे पर ही, मुझे कहता कि यदि शीतल से मैं, अभी मिला तो एक वर्ष की प्रतीक्षा की गणना, तब से बदल जायेगी। अर्थात मेरी प्रतीक्षा अवधि और बढ़ जाएगी, भय और मानसिक पीड़ा लिए, दीप और शीतल को देखे बिना दोनों बार मुझे लौटना पड़ा थाशीतल का यह ऐटिटूड, मुझे आहत करता मगर मेरा मन, उसके दृढ निश्चय की प्रशंसा भी करता कि, शीतल की जगह जबकि कोई और होता तो 'शायद उसे भय होता कि मैं उससे निराश होकर किसी और से कोई संबंध कर सकता हूँ'।शीतल के तरफ से संदेश बिलकुल स्पष्ट था कि मैं उसकी निर्धारित कसौटी पर खरा रहूँ, तब तो मैं उसे स्वीकार्य रहूँगा अन्यथा उसकी मुझ में कोई रूचि नहीं रहेगी। 


परसों 20 फरवरी 2020 को, मैंने शीतल को कॉल किया। उसने एक वर्ष में पहली बार मेरा कॉल लिया। मैंने सामान्य शिष्टाचार के बाद, उसे स्मरण कराया तो उसने 22 फरवरी को अपने मायके और मेरे परिवार के सभी सदस्य को रामटेक तीर्थ स्थान में मिलना तय किया।


तय अनुसार मैं अपने मम्मी, पापा, बहिन, जीजू सहित रामटेक पहुँचा हूँ। कॉल करने पर पता चला है, 15 मिनटों में शीतल भी सपरिवार पहुँचने वाली है। मुझे 15 मिनट का समय भी पहाड़ सा लगा है। वे सभी, अब पहुँच गए हैं। परस्पर अभिवादन के साथ हम गर्मजोशी से मिल रहे हैं। दीप में एक वर्ष में बहुत बदलाव हुआ है। मैंने उसे गोदी लेने का प्रयास किया, तो उसने ना कह कर मुहँ मोड़ लिया और, अपने नाना के कंधे में मुहँ छुपा लिया है।मुझे समझ आ गया है कि अपनी मूर्खता में, मैंने क्या मिस किया है। दीप के लिए मैं, उसका पापा भी अजनबी हो गया हूँ। एक साल की उसकी सुखद बढ़त का साक्षी होने से, मैं वंचित रहा हूँ।मेरी दीदी ने तब मेरा हाथ दबा पूछा है- कहाँ खो गए तुम, जिससे मेरी तंद्रा टूटी है। परिवार द्वय ने तब जिनालय में दर्शन किये हैं। फिर जलपान पश्चात, विश्रामगृह के एक हॉल में बिछे गद्दों पर सबने आसन ग्रहण किया है। अब हम सभी के बीच वार्तालाप होना है। मैं, किस तरह से अपनी बातें रखूँ इस उधेड़बुन में हूँ।


दीदी सबसे कह रही हैं, हमने पिछले वर्ष में अपनी भूल शिद्द्त से अनुभव कीं हैं। अब हम विश्वास दिलाते हैं कि शीतल को कभी कोई शिकायत का अवसर नहीं होगा। उसे हमारे परिवार में लौट आना चाहिए, हमारा परिवार और घर, उसका ही अपना है।


इतना कहने के बाद दीदी शीतल से कहती हैं, "शीतल तुम क्या कहती हो?"


शीतल, दीप को अपनी गोदी से भाई को सौंपती है। जो दीप को बाहर घूमने ले जाता है।तब शीतल कहना आरंभ करती है-


"यह समाज, नारी के लिए कितनी चुनौतियों का है, इसकी कटुता मैंने पिछले कुछ वर्षों में अनुभव की है। मेरे, आप सभी के द्वारा हुए, अपमान का जिक्र, दोहराना उचित नहीं। अन्य में, प्रमुख बातें, मैं बताती हूँ।


ज्योंही आसपास परिचितों में मेरा परित्यक्ता होना ज्ञात हुआ, मेरे इर्द गिर्द रंगीन तबियत लोगों की कामुक नज़रें होना देख, मेरा स्वाभिमान आहत होता था। इस बीच पुर्नविवाह के हमारे घर, कुछ प्रस्ताव आये।तीन प्रस्तावों से तो मुझे हैरत हुई कि वे पचास से अधिक आयु के पुरुषों के थे, जबकि मैं बत्तीस की हूँ। यह सब मैं उल्लेख इसलिए कर रही हूँ कि अब, जब मैं आप पर विश्वास कर लौटूँ, तो मुझे इस मुश्किल में फिर कभी ना छोड़ना।


मैंने इन फुसलाते पुरुष इरादों को सफल न होने देते हुए पिछले वर्ष में, आर्थिक उपार्जन की योग्यता अर्जित की है। मैं अपने पापा पर अतिरिक्त भार न डालते हुए, पिछले कुछ महीनों से 25 हजार रूपये कमा लेती हूँ, जो मेरे और दीप के लिए पर्याप्त है।


आज मैं आपके साथ चलूँ तो आप सोच लीजिये कि कहीं आज के मेरे कंफर्ट जोन से निकाल, इससे बेहतर मेरे लिए आदर परिवेश न देकर, कल आप, क्या मुझे नई चुनौतियों से फिर, अकेली जूझने तो नहीं छोड़ेंगे" कहते हुए प्रश्नवाचक उसकी निगाहें मुझ पर टिक गईं हैं।


परिवार के सभी सदस्य तन्मय हमें सुन रहे हैं, यह मैं अनुभव करता हूँ। कुछ मिनट अपने को सहज करने में लेता हूँ फिर मैं कहता हूँ-


"कहते हैं, बुरा भी कोई होता है, वह किसी अच्छे के मिलने पर उसके साथ अच्छा ही बर्ताव करता है। मुझे यह स्वीकार करने में हिचक नहीं कि मैं, उस बुरे से भी बुरा व्यक्ति रहा हूँ, जो अच्छी-भली शीतल के साथ बुरा होकर पेश आता रहा। 


हमारे घर में, शीतल को मेरी माँ से, दहेज को लेकर उलाहने मिले। उसके लिए मम्मी का दोष नहीं, पुत्रमोह में उनके ऐसा करने को विवश होने का कारण मैं हूँ। मैंने उम्र के साथ पर्याप्त न कमा सकने के कारण, उन पर आर्थिक दबाव, इस कदर बढ़ा दिया कि वे मेरी ससुराल से ऐसी अपेक्षा करने लगीं थीं।  शीतल के दिए सबक को अन्यथा नहीं लेते हुए, मैंने इसे सही परिप्रेक्ष्य में ग्रहण किया। मैंने स्वयं को अब ज्यादा जिम्मेदार बनाया है। अब में परिवार को सहज सुविधा, मुहैय्या करा सकने जितना अर्न करने लगा हूँ। शीतल, वापिस लौटने पर, घर में और मुझमें, यह बदलाव स्वयं अनुभव कर सकेगी।


शीतल की उल्लेखित शंकायें स्वाभाविक हैं, वह दूध की जली है, छाछ भी फूँक कर पीती है। हमारे बीच हुई बातों से, समाज में क्षोभनीय तथा जगहँसाई की स्थिति के लिए, उसका कोई दोष नहीं। सारा दोष मैं अपना मानता हूँ।


उससे विवाह पश्चात मै भूल गया था कि मेरा जब, कहीं संबंध नहीं हो सक रहा था, तब मैं ही शीतल के साथ विवाह को मरा जा रहा था। मै ही उसे सारे झूठे वचन देकर परिणय सूत्र में बाँध, अपने घर ले गया था।


बेटी जन्मने पर उससे इस तरह पेश आया, जैसे बेटी पैदा करना कोई उसका कसूर हो। जबकि संतान बेटी या बेटा होगा उसके निर्धारण में भूमिका पति की होती है। यह विज्ञान पुष्ट सत्य है।


मैं यह भी अपना दोष मानता हूँ कि मैंने बेटी को बेटे से हीन मानने की भ्राँत धारणा को अपने मन में स्थान दिया और शीतल से बदसलूकी से पेश आकर उसके स्वाभिमान को आहत किया। जबकि परिवार और समाज में पत्नी को सम्मान और सुरक्षा का स्थान मिले, यह उत्तर दायित्व पति का होता है।


मेरी दीदी रूपवान है, जब वे हमारे घर आतीं तो शीतल को लेकर, मेरी झूठी बातों के प्रभाव में, उसकी सुंदरता को लेकर उलाहने कर देतीं। पिछले वर्ष में, जब मैंने उन्हें, शीतल को लेकर वस्तु स्थिति बताई तो वे भी शीतल के गुणों पर मुग्ध हैं। अब वे कहतीं हैं, किसी दांपत्यसूत्र का सुखद होना गुणों से सुनिश्चित होता है। रूप का होना नहीं होना लंबे साथ में गौड़ हो जाता है। कम ही युवतियाँ, इस दृष्टि से शीतल से ज्यादा गुणी होतीं हैं। और ऐसे में, शीतल का पति होने से आज स्वीकार करता हूँ, कि मैं अत्यंत भाग्यशाली हूँ।चरित्र को लेकर भी शीतल की प्रशंसा करता हूँ। वास्तव में जहाँ कोई बात भी नहीं वहाँ भी शंका करना, हीन भावना से ग्रस्त व्यक्ति के स्वभाव में आ जाता है। मुझ में तब कई बातों को लेकर हीन भावना थी। जिन्हें पिछले एक वर्ष के मिले सबक से सीखते हुए मैंने दूर कर लेने में सफलता पाई है।


अंत में यह कहूँगा पिछले वर्ष जिन्हें, सुख अनुभव करते हुए बिताया जा सकता था, उस अनमोल समय को मेरी मूर्खता ने व्यर्थ किया है। मुझे अत्यंत पछतावा है कि हमारे जीवन में बेशकीमती कुछ वर्ष अनावश्यक कलह में बीत गए, जिन्हें कुछ भी करलें लौटा लाना संभव नहीं है।  वस्तुतः हमारे जीवन के हरेक पल, हमारे ही होते हैं, यदि मैं विवेकवान होता तो उनका उपयोग सभी संबंधितों एवं स्वयं के लिए, सुखद बना सकता था। शीतल एवं दीप से एक वर्ष की दूरी जिसमें हमने परस्पर सानिध्य से मिल सकने वाली खुशियों से स्वयं को एवं सभी को, वंचित किया उसमे भी दोष मेरा ही है।  


जो थोड़ी अच्छाई इस समय की रही है, वह यह है कि मैंने इस बीच अच्छी संगति की, जिससे मै मानवोचित गुणों को पुनः प्राप्त कर सका हूँ।अब विश्वास दिलाता हूँ कि पिछले वर्षों के साथ में जिन पलों की खुशियों को हमने खोया किया है उसकी भरपाई हेतु अपनी किसी मूर्खता में एक भी पल ख़राब नहीं होने दूँगा। हमारे जीवन के आगामी हर पल में मधुर साथ की ख़ुशी घोलूँगा।" 


कहते हुए मैं शीतल के सम्मुख घुटने के बल खड़े हो, उसके दोनों हाथ अपने हाथ में कोमलता से लेता हूँ और पूछता हूँ-"शीतल क्या तुम मेरे बदले रूप पर भरोसा करती हो? क्या आज मेरे साथ अपने घर में वापिस चल सकोगी?"


शीतल सबके समक्ष की मेरी अदा से लजा जाती है। सिर्फ मुस्कुरा देती है।आज का शेष समय, फिर हम दोनों परिवार ने किसी पिकनिक जैसे बिताया है। इसमें मैंने दीप का भी विश्वास जीता है।शाम हम सब रामटेक से लौट रहे हैं। शीतल, दीप और मैं अलग कैब में हूँ। मेरा मनजागी आँखों के सुनहरे सपनों में, ऐसे, यूँ, उत्तेजना अनुभव कर रहा है, जैसे कोई दूल्हा, नवविवाहिता पत्नी को विदा कर अपने घर लिवा ले जा रहा हो।


दीप मेरी गोद में बैठ, चलती कार से बाहर देखते हुए खुश है।शीतल के मुख पर मगर, संशय का दर्शन हो रहा है - वह शायद सोच रही है आज की वापसी पर उसे कभी पछताना तो न पड़ेगा!  



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