शीर्षक - मूक भाषा
शीर्षक - मूक भाषा
रमेश जी की कॉलनी के कुत्तों की एक बहुत बुरी आदत थी जब भी कॉलोनी में कोई नया कुत्ता आता तो सभी मिलकर उस पर जोर जोर से भोंकते और उसको परेशान करते।
अब एक दिन रमेश जी एक बहुत प्यारे से कुत्ते को अपने घर लेकर आए ...सफेद रंग उसका छोटी छोटी सी गोल आँखें गोल मटोल एक ही नजर में सब को अपना बना ले।
बड़े प्यार से लूसी नाम रखा था उस उन्होंने उसका।
कॉलोनी के सभी आवारा कुत्ते लूसी के भाग्य पर जलते लूसी के ठाठ बाट देखकर उनको उसकी आरामदायक जिंदगी से मन ही मन कोफ्त होती थी...
पर जानवरों की भी मूक भाषा होती है धीरे-धीरे लूसी ने मोहल्ले के सभी कुत्तों को अपने अच्छे स्वभाव से अपना मित्र बना लिया था।
एक दिन लूसी बाहर घूमने के लिए निकली तो सड़क का आवारा कुत्ता उससे प्यार जता रहा था।
सचमुच जानवरों की भी मूक भाषा होती है और वह एक दूसरे को अपना बना लेते हैं।