सेहरामें मैं और तू-(अंतिम भाग)
सेहरामें मैं और तू-(अंतिम भाग)
दो दिन की तूफानी यात्रा के बाद जब तीन सदस्यों का ये काफ़िला वापस अपने ठिकाने पहुंचा तो बेहद गर्मजोशी से इनका स्वागत हुआ। कुछ लड़के तो एयरपोर्ट पर लेने भी आए थे।बैंड- बाजे के साथ अपने परिसर में पहुंचे तीनों।कबीर ये नहीं समझ पा रहा था कि उसके मन में खुशी की ये जो उद्दाम लहर किलोल कर रही है इसका कारण क्या है? क्या सचमुच वो जीत, जिसने उसे देश से बाहर ले जाकर सोना दिलाया? या कुछ और!
छोटे साहब श्रीकांत के मन में भारी असमंजस था। ये सही है कि कबीर अब उनके लिए उनकी ज़िंदगी बन चुका है, लेकिन फ़िर भी भारतीय पारंपरिक माहौल में कैसे सब होगा! क्या उसके लिए अपनी शादी को ठुकरा देना इतना आसान होगा? क्या उसके फ़ैसले को मन से कोई स्वीकार करेगा?
चलो, अपने घर वालों से तो श्रीकांत का संपर्क अब नहीं के बराबर सा ही है, पर बाकी समाज क्या उसे आसानी से इस बात की इजाज़त देगा कि वह खुले आम कबीर के साथ विवाह करने की घोषणा करके चैन से रह सके?
नहीं! असंभव। दोनों के साथ रहने में तो कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी, वो साधारण दोस्तों की तरह एक साथ रह ही सकते हैं जैसे पढ़ने वाले, नौकरी वाले अन्य हज़ारों लड़के रहते ही हैं। किंतु नैतिक रूप से विवाह बंधन की घोषणा करके साथ रहने की बात को लोग पचा पाएंगे? उसके ससुराल के परिवार की प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या सहज ही वो उसे अपनी मनमानी करने देंगे?
देखेंगे, ज्यादा ही समस्या आई तो हम दोनों कहीं दूर चले जायेंगे। वचन तो अब निभाना ही है। कबीर के लिए नहीं, बल्कि ख़ुद अपने लिए।
ऐसे सैकड़ों सवाल थे जो श्रीकांत को मथते थे। ऐसे में कबीर को दे दिया गया उसका वचन जो उसे अब तक एक बोझ की तरह लगने लगा था धीरे धीरे अब एक संकल्प बनने लगा।
तो क्या वह कबीर से क्षमा मांग कर उससे रिश्ता तोड़ ले? नहीं। कदापि नहीं।यहां आकर उसकी उलझन और बढ़ जाती थी। एक उदास वीरानी तत्काल उसके दिल को घेर लेती थी। कबीर से अब न मिलने की बात उसके मन को उजाड़ कर डालती थी।
ऐसा क्या था कबीर में? किस मिट्टी का बना था वो? किस मिट्टी का बना था ख़ुद श्रीकांत?
श्रीकांत को तो ठीक से ये भी पता नहीं था कि उसकी जाति क्या है? उसका धर्म क्या है? उसकी परवरिश तो अपने रिश्ते के एक मामा के घर हुई थी। कहते हैं कि उसका पिता बचपन में ही उसे छोड़ कर किसी और महिला से शादी करके चला गया था। इसी दुख में उसकी मां विक्षिप्त हो गई। न जाने कहां - कहां दर- दर भटकी। उसके मामा ने ही उसे पाला और उसी ने गांव के स्कूल में उसका नाम लिखवाते समय पिता का नाम जॉर्ज लिखवा दिया था, जो आज तक उसकी पहचान था।
लेकिन ये सब सवाल तो अब अतीत थे। सबसे बड़ा सवाल तो उसके भविष्य का था जो उसके सामने मुंह बाए खड़ा था।कबीर बहुत प्यारा लड़का था। उसके साथ न रहने का अर्थ था अपनी जिंदगी को वीरान और बेदम बना कर रहना।शाम को रोहन कबीर के पास आया तो उसने कबीर से कहा - मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों कुछ दिन के लिए कहीं घूमने बाहर चलें!
"घूमने से मन नहीं भरा तेरा?" कबीर ने कहा।
"चिंता मत कर, मैंने छोटे साहब से बात कर ली है, वो भी चलेंगे।" रोहन बोला।
कबीर को आश्चर्य हुआ। वैसे भी इस विदेशी प्रतियोगिता से लौट कर आने के बाद कुछ समय के लिए अकादमी के रूटीन में कुछ शिथिलता सी आ गई थी। इस ढील का फायदा सभी लड़के उठा रहे थे और इधर- उधर जा रहे थे।तभी रोहन ने एक तीर छोड़ा। बिना किसी लाग लपेट के तपाक से बोला - "मैं शादी कर रहा हूं!"
"तू शादी के लायक हो गया?" कबीर ने कहा।
रोहन एकदम से सकपका गया फिर कबीर का हाथ पकड़ कर मरोड़ते हुए बोला - "चल कमरे में, बताऊं तुझे!"
कबीर ज़ोर से हंसा। फिर बोला - "मेरा मतलब है कि तू इक्कीस साल का हो गया?"
रोहन बोला - "अभी सगाई करूंगा, एक - दो साल बाद शादी।"
"किससे करेगा? लड़की देख ली?" कबीर ने कहा।
" अपनी भाभी से।" रोहन कबीर की आंखों में आंखें डालकर बोला।
कबीर बुद्धू की तरह उसे देखता रह गया। एकाएक उसकी समझ में नहीं आया कि रोहन मज़ाक कर रहा है या गंभीर है।तब संजीदगी से रोहन बोला - "नहीं यार, मैंने श्रीकांत भैया को वचन दिया है कि मैं उनकी पत्नी से विवाह करूंगा जो अभी गांव में अपने माता- पिता के साथ रहती हैं।"
कबीर गौर से उसे देखता रहा। मानो ये तौल रहा हो कि उसकी बात में कितना वजन है!कबीर ने रोहन का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाया, जैसे उसे शुभकामनाएं और आशीर्वाद दे रहा हो।
रोहन एकाएक उछल कर बोला - "यार मुझे एक बात बता, तुझे कसम है, सच- सच बताना।"
"क्या?" कबीर बोला।
"हम दोनों की रिश्तेदारी क्या होगी?" रोहन ने पूछा।
"क्या मतलब??" कबीर को ये सवाल कुछ अटपटा सा लगा।
रोहन ने समझाया "मेरा मतलब ये है कि तुम दोनों में से मेरा भाई कौन है और भाभी कौन?"
"साले, इतना भी नहीं मालूम! इधर आ।" कहकर कबीर ने अपना मुंह रोहन के कान के पास ले जाकर धीरे से कुछ कहा।
रोहन उसकी बात सुन कर उछल पड़ा। एकदम से बोला - "सच!!! पर वो तो तुझसे तीन साल बड़े हैं!"
"तो क्या हुआ!" कबीर ने नीची गर्दन करके कहा।
रोहन बोला "यार, बॉस फिर तो हमने तुम्हारा नाम गलत रख दिया। "
"तो अब बदल दे!" कबीर ने कहा।
"ठीक है, ये बात केवल हम दोनों के बीच सीक्रेट ही रहेगी। आज से छोटे साहब का नाम "ब्लैक होल" और तेरा नाम "रेड टॉवर"!
( समाप्त )