सच्चा प्यार
सच्चा प्यार
कॉलेज में निर्माण कार्य चल रहा था। काम करने वाले दैनिक मज़दूर सवेरे 9 बजे काम पर आ जाते और शाम 5 बजे तक काम करते थे। मज़दूरों में कुछ महिलाएं थी जो छोटे बच्चों को लेकर काम पर आती थी, जिनमें कुछ बच्चे दुधमुँहे थे कुछ चार-पांच साल के थे। कॉलेज के अंदर रहने से मुझे पता ही नहीं चलता था की परिसर में मज़दूर अपने बच्चों को लेकर आते हैं। पहली बार मैंने देखा कि बच्चे खिलौने के अभाव में उपलब्ध साधनों से कैसे खेल ईजाद कर लेते हैं।
काम चलने के कारण परिसर में रेत, मुरम एवं गिट्टी पसरा हुआ था। बच्चे गिट्टी को रेत में फेकते, फिर उसे रेत से निकाल गिट्टी के ढेर में डालते थे। इन निर्माण सामग्रियों से ऐसे खेल का ईज़ाद कर बच्चे बहुत खुश थे उनकी बाल सुलभ क्रियाओं को देखकर मुझे उनपर प्यार आ गया और मैं बैग से चॉकलेट निकाल कर खेल रहे बच्चों को देने लगी, चॉकलेट पाकर बच्चे बहुत खुश थे। एक पांच-छः साल का बच्चा मेरे पास आकर धीरे से बोला, आंटी मेरी एक बहन है इशारा समझ कर फ़ौरन मैंने कहा उसे बुला लाओ मैं चॉकलेट दे दूंगी। लड़का दौड़कर किनारे में गया और ढाई-तीन साल की अपनी बहन को लेकर फुर्ती से मेरे सामने आ गया। उसकी बहन नींद में थी उसे प्यार से थपकी देकर मैंने चॉकलेट पकड़ा दिया। मुट्ठी में चॉकलेट भींचकर वो बच्ची सो गयी। लड़के ने अपनी बहन को कोने में सुला दिया और उसके हाथ में चॉकलेट देख कर उस छोटे बच्चे के चेहरे में जो ख़ुशी के भाव उभर रहे थे उसे शब्दों में बांध पाना मुश्किल है। उस बच्चे का सच्चा प्यार देखकर मन खुश हो गया। सच्चे प्रेम का इतना अच्छा उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है।