Mukul Kumar Singh

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सैनिक हीं सेनाध्यक्ष होता है

सैनिक हीं सेनाध्यक्ष होता है

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किसी विदेशी इतिहासकार ने ग्रिक सम्राट सिकन्दर के भारत आक्रमण के समय सिकन्दर के मुंह से कहलवाया था कि भारतीय सैनिक आंधी-तूफान है जिसने यदि चलना शुरू कर दिया तो उसके सामने सारा विश्व नतमस्तक हो जाता है। अतः इनसे दूरियां बनाए रखना बुद्धिमानी है और इसे एक बार वर्ष 2020 मेंं लद्दाख के पैगांग झील के पूर्वी सीमा पर चीनी सेना के द्वारा की गई दुस्साहस का जवाब भारतीय सेना के बिहार रेजीमेंट के निशस्त्र जांबाजों ने अपने प्राणों की आहुति देकर दिया। शत्रु सेना विश्व की आंखों में धूल झोंककर कंटिले तारों वाले हथियार से लैस एवं मार्शल आर्ट्स प्रशिक्षित योद्धाओं ने गलवान घाटी में घुसपैठ करने की कोशिश की थी। एवं इस प्रयास को असफल करने के मुठभेड़ में एक उच्च सेना अधिकारी के साथ भारत के 20 जवान शहीद हो गए परंतु दोगुनी संख्या में चीनी सैनिकों को मार गिराए और इतिहास की पुनरावृत्ति कर दी। सैनिक तो हर देश का होता है परंतु भारतीय सैनिक का स्थान सर्वोपरि माना जाता है वह इसलिए नहीं कि वह हर तरह के आधुनिक समरास्त्रों से लैस है बल्कि भावनात्मक रूप से देशभक्ति से ओत-प्रोत हैं। भारतीय सेना का आदर्श है एक सैनिक, सैनिक होता है भले हीं वह सेना अधिकारी क्यों न हो और ऐसे रोल मॉडल फील्ड मार्शल एस एच एफ जे मानेकशॉ के सिवा दूसरा कोई हो हीं नहीं सकता है। ये थे 1969-1971 तक भारत के आठवें थलसेनाध्यक्ष जिनके नेतृत्व में हमारी सेना ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में पाकिस्तान को बूरी तरह से पराजित किया। एक सेनाध्यक्ष में जितने सारे योग्यता होनी चाहिए - कुशल योद्धा, साहसी, व्यूह रचनाकार, कर्त्तव्य परायण, दृढ़ निश्चय, विषम परिस्थितियों में भी सर न झुकाने वाला, सैनिकों का मनोबल बढ़ाने वाला, मानवाधिकारो की रक्षा करने वाले आदि गुणों से परिपूर्ण थे।

मानेकशॉ का जन्म पंजाब के अमृतसर में 1914 ई.को एक पारसी परिवार में हुआ था। अपने माता-पिता की पांचवीं संतान थे। 1934 ई. में भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षित हो सेकेंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई। मानेकशॉ को जिस समय भारतीय सेना से जुड़े उस समय भारत अंग्रेजी उपनिवेश था और औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने की लड़ाई देश के प्रत्येक कोने में चल रही थ तथा विश्व युद्ध भी शुरू हो चुकी थी। इस समय जापान तथा ब्रिटेन दोनों हीं एक दूसरे के शत्रु पक्ष बने हुए थे। जापानी सेना से बर्मा को मुक्त कराने के लिए भारतीय सेना को ब्रिटिश आर्मी के रूप में युद्ध में हिस्सा लेना पड़ा था। इन्हीं परिस्थितियों में एक चौकी को जापानी सेना से मुक्त करने का आदेश मानेकशॉ को मिली। अपनी टुकड़ी को लेकर मानेकशॉ चौकी की ओर अग्रसर था। शत्रु पक्ष अंधाधुंध गोलियां बरसा रही थी। एक-एक कदम आगे बढ़ाने का मतलब मृत्यु के मुंह में जाना परंतु बिना विचलित हुए मौत से आंख-मिचौली खेलते चौकी दखल करने के निकट पहुंच चुका था तभी दुश्मन की गोलियां मानेकशॉ को बुरी तरह घायल कर दिया। ये मृत्यु का परवाह किये बिना अपनी टुकड़ी का मनोबल बढ़ाते रहे जिसका परिणाम भारतीय सैनिकों ने अति साहस दिखाते हुए शत्रु चौकी पर धावा बोलकर छिन लिया। मानेकशॉ को अति साहस व धैर्य के साथ सैनिकों का नेतृत्व करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने मिलिट्री क्रास से सम्मानित किया। 1947 से 1952 तक कई मिलिट्री आपरेशनों का सफलतापूर्वक संचालन भी किया जिनमें जम्मु-काश्मिर में पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया अतिक्रमण का मुंहतोड़ जवाब शामिल था। अब तक मानेकशॉ लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के पदाधिकारी बन 1963 में जी-ओ-सी इन चीफ पश्चिमी कमान शिमला में तथा जी-ओ-सी इन चीफ पूर्वी कमान 1964 में अपने कुशल नेतृत्व व सेना संचालन का परिचय दिया। 1968 में भारत सरकार ने पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया और 1969 में भारत के आठवें थलसेनाध्यक्ष का दायित्व ग्रहण कर 1971 में पाकिस्तानी दखल से पूर्वी बंगाल को मुक्त कराया और एक नया देश बांग्लादेश को विश्व के नक्शे पर स्थापित कर विश्व के योग्य सेनाध्यक्षों के रुप में अपनी पहचान बनाई। उसके बाद 1972 भारत सरकार ने पद्म विभूषण पुरस्कार देकर मानेकशॉ का मान बढ़ाया और 1973 में प्रथम भारतीय फिल्ड मार्शल बने। इस प्रकार से मानेकशॉ ने 40 वर्ष तक देश सेवा करके एक आदर्श नागरिक का कर्तव्य पालन किया।

मानेकशॉ ने कभी भी अपने को एक अधिकारी के रूप में नहीं देखा सदैव एक सिपाही समझा। एक सैनिक के रूप में विषय परिस्थितियों में सर नहीं झुकाया। अपने जीवन में तीन-तीन प्रधान मंत्रियो को देखा प्रथम थे पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनके रक्षा मंत्री वी.के.मेनन से अनबन रहने के कारण सेना में साइड लाइन रहना पड़ा। इसके बाद 1962 के चीनी आक्रमणकारियों द्वारा मुंह की खानी पड़ी एवं नेहरू ने पुनः ईस्टर्न फ्रंटलाइन के सैनिकों का दायित्व इनके हाथों में सौंपी। दूसरे प्रधानमंत्री थे शास्त्री जी, इनके कुशल नेतृत्व एवं सूझबूझ से पाकिस्तान को बुरी तरह से परास्त करने में सफलता प्राप्त किया और तृतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी। इनके सामने भी अपनी निर्भिकता का परिचय दिया। इन्हें आदेश दिया गया कि फौरन हीं बंगलादेश के लिए सेना अभियान को अंजाम दें पर मानेकशॉ ने भरी बरसात में सैनिक कार्रवाई पर सरकार के आदेश को ठुकरा दिया इस पर गांधी द्वारा राजनीतिक दबाव बनाया गया लेकिन ये टस से मस न हुए और कहा-"मैडम प्रधानमंत्री, आपके मुंह खोलने के पहले हीं मैं अपना रेजिग्नेशन लेकर आया हूं आप कुछ भी कदम उठा सकती हो परंतु मैं अपने सैनिकों को बरसात के उफनती नदियों में समाने नहीं दूंगा क्योंकि मैं भी एक सैनिक हीं हूं और सैनिक के जीवन का मोल समझता हूं।"



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