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savitri garg

Others

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savitri garg

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सावन के पल सखियों संग

सावन के पल सखियों संग

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दो सखी थी प्रज्ञा और धन्नो दोनों ही बचपन से ही पक्की सहेलियां थीं। एक साथ स्कूल जाए, स्कूल का काम घर में करें,एक साथ खेलने जाएं, एक साथ नदी में नहाने जाए, सब काम एक साथ करती थीं ।प्रज्ञा और धन्नो एक ही उम्र की थी दोनों एक ही कक्षा में पढ़ती थीं, दोनों बहुत ही चंचल व चुलबुली स्वाभाव की लड़कियां थीं।

 दोनों की बड़ी गहरी दोस्ती थी दोनों ही हर तीज त्यौहार, हर तरह के पूजा पाठ में बड़ी खुशी- खुशी शामिल हुआ करती थी। साल भर में जब सावन का महीना आए तो दोनों बहुत खुश हुआ  करती थीं जब बात सावन के झूले लगाने की हो, सखियों संग झूला- झूलने की बात हो, मेंहदी लगाने की बात हो,बारिश में भीगने की बात हो, मौज- मस्ती की बात हो। तो हमेशा प्रज्ञा और धन्नो को याद किया जाता था‌। सब लोग कहते थे कि ये दोनों सहेलियां कितना मौज -मस्ती करती हैं । कुछ दिन बाद दोनों की शादी हो गई तो दोनों की ससुराल अलग-अलग जगह हो गई तो दोनों अलग- अलग चली गई लेकिन सावन के महीने का बड़ी बेसब्री से इंतजार करती थीं। क्योंकि हमारे भारत देश में सावन से ही सारे तीज त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है हमारे यहां परंपरा है कि लड़कियों को सावन में मायके  बुलाया जाता है इसलिए यह दोनों को मायके आने का बड़ा ही इंतजार रहता था। दोनों ही सहेलियां जब मायके आती तो ऐसा लगता था कि कितने दिनों बाद ये दोनों सहेलियां मिली है और फिर सावन की मस्ती सखियों के साथ  शुरू हो जाती। कहीं सावन के गीत गाती , तो कहीं बारिश की बूंदों से नहाती , तो कभी पेड़ों में झूला डालतीं, तो कहीं तीज त्योहार पर मीठे-मीठे पकवान बनाती । सावन में मां भी अपने बेटियों का बड़ी बेसब्री से इंतजार करती है और वह हर तरह के चीजों का इंतजाम करके रखती है कि मेरी बेटी सावन के महीने में जरूर आएंगी और मायके की रौनक बढ़ाएगी ।प्रज्ञा और धन्नो सखियों संग तीज त्योहारों में मेहंदी लगा के, आलता लगा के  सजसबर कर एक साथ घूमने फिरने जाया करती थीं ‌। सावन की बात ही कुछ और होती है चारों तरफ हरियाली ही हरियाली हर तरफ काली घटा छाई रहती है कहीं खेतों में धान की हरियाली दिख जाती है कब बारिश हो जाए, कब धूप निकल आए पता ही नहीं चलता दोनों सहेलियां प्रज्ञा और धन्नो कहती कि कितना सुंदर सुहावना महीना है काश! कभी खत्म ना हो और हम सब सखियों- संग यूं ही मस्ती करते रहे काश यह पल कभी न जाए। सावन की बात ही कुछ और होती ही है।


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