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Diwa Shanker Saraswat

Others

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Diwa Shanker Saraswat

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सांवली बेटी

सांवली बेटी

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दयाशंकर और उमा का इकलौता बेटा सुरेश कुछ सालों की पढाई के लिये लंदन गया तो फिर लौट कर ही नहीं आया। विकसित देश में इतनी सुख सुविधा हैं जो भारत जैसे विकासशील देश में मुमकिन ही नहीं। तभी तो इतने नौजवान विदेश जाने का सपना देखते हैं।

जब सुरेश का दाखिला कैंब्रिज विश्वविद्यालय में एक कोर्स के लिये हुआ तो दोनों उसे मना नहीं कर पाये। पर एक अज्ञात डर उनके मन में बस गया। आखिर विदेश गया कौन वापस आता है। अगर एक और संतान होती तो भी अलग बात थी। पर दूसरी तरफ बेटे को मना करके उसका भविष्य भी खराब नहीं किया जा सकता था। फिर भारी मन से उसे विदा कर दिया।

शुरुआत में सुरेश के जल्दी जल्दी खत आते थे। फोन पर भी बात हो जाती थी। पर जैसे-जैसे पढाई का बोझ बढा, यह सिलसिला कम होता गया। हालांकि इतने समय में तकनीकी ने बहुत उन्नति की। व्हाटसअप के माध्यम से बहुत कम खर्च में इंटरनेट काल कोई भी कर सकता है। दयाशंकर जी ने भी एक स्मार्ट फोन खरीद लिया। व्हाटसअप से काल करना सीखा। पर जैसे ही उन्होंने सुरेश को फोन किया तो सुरेश खुश होने की बजाय झुंझला गया।


" आपको बताया तो था पापा। यहाँ मेरे पास इतना समय नहीं है। मैं समय निकालकर खुद आपसे बात करूंगा। पर बेबजह मुझे परेशान मत किया करो।"

दयाशंकर तो चुप रह गये। पर उमा आंसू बहाने लगी।

 " इसी दिन के लिये इसे नौ महीने कोख में रखा था। खुद तो बात करता नहीं है। जब हमने बात करनी चाही तो भी बात नहीं की। थोङी देर बात कर कह देता कि अभी जरूरी काम कर रहा हूं। थोड़ी देर में बात करूंगा। हमारा मन भी रह जाता।"

दयाशंकर ने बड़ी मुश्किल से उमा को चुप कराया। बच्चा परदेश में है। न जाने कैसे हालात में है। पढाई का भी दवाव है। देख लेना, वह जरूर समय मिलते ही बात करेगा। आखिर जरा सी बात पर आंसू बहाना कौन सी समझदारी है।पर दो दिन तक सुरेश का कोई फोन नहीं आया तो दयाशंकर खुद एकांत में बैठकर अपने आंसू पोंछने लगे। इतना ध्यान रखा कि कहीं उमा देख न ले। स्त्रियाँ पुरुषों से ज्यादा भावुक होती हैं।

सुरेश के काॅल के इंतजार में दयाशंकर हर महीने डाटा पैक डलबाते। पर डाटा पैक का इस्तेमाल इसके लिये बहुत कम हो पाता। खुद उसे काॅल करने से डर भी लगता। पर हर बात के अनेकों पहलू हैं। जब डाटा पैक डलबाया ही जा रहा है तो उसका कहीं भी प्रयोग करो, क्या फर्क है। दयाशंकर सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा एक्टिव हो गये। अनेकों व्हाटसअप समूहों पर नियमित रूप से पोस्ट करते रहते। उनके मजाकिया जोक्स के पीछे गहरा दुख छिपा होता जिसे पढ पाना किसी के भी वश की बात नहीं थी। संसार की नजर में पति पत्नी बड़े भाग्यशाली हैं। खुद के पास धन दौलत की कोई कमी नहीं। अकेला लड़का है और वह भी विदेश में। दयाशंकर की तो दसों अंगुलियां घी में हैं।

सुरेश की पढाई पूरी होने को थी। दयाशंकर और उमा एक एक दिन गिन रहे थे। इस बार बेटा आयेगा तो फिर उसे जाने नहीं देंगें। आखिर क्या करना इतने पैसे का। हमारे पास कौन सी कमी है।

 उस दिन दयाशंकर के व्हाटसअप पर सुरेश की काॅल आयी। दोनों पति पत्नी की खुशियाँ हवा में उड़ गयीं जब उन्हें पता चला कि सुरेश नहीं आ रहा है। उसकी नौकरी लग गयी हैं। पति और पत्नी उसे समझाते रहे। अगर लंदन में ही नौकरी करनी है तो भी ठीक। पर कुछ दिन घर घूम जा। पर सुरेश के पास हर बात का उत्तर था। एक तो ऐसी नौकरी जल्दी मिलती नहीं है। फिर शुरुआत में ही छुट्टी मनाने लगूं तो नौकरी हाथ से गयी। नियोक्ता पैसे तभी देता है जब मेहनत बसूल कर ले।

फिर सुरेश नहीं आया। एक बार दयाशंकर और उमा का मन हुआ कि बेटा नहीं आ पा रहा तो क्या है। हम ही वहाँ घूम आते हैं। जाने की पूरी तैयारी कर ली। सुरेश को फोन किया तो उसने उठाया नहीं। बाद में उसका फोन आया।

 " यहाॅ क्या करोगे आकर। मेरे पास अभी बिलकुल समय नहीं है। ओफकोर्स आजकल तो दो दो दिन आवास पर ही नहीं आ पा रहा हूं ।कंपनी में रुकने की पूरी व्यवस्था है। काम करके वहीं रुक जाता हूं। जब फुर्सत होगी तो बता दूंगा।"

सारा प्रोग्राम कैंसिल हो गया। फिर कभी दयाशंकर व उमा की उससे पूछने की हिम्मत नहीं हुई। और न सुरेश को कभी फुर्सत हुई।


लगाता रबेरुखी अक्सर प्रेम को खत्म कर देती है। विशुद्ध प्रेम केवल लोकाचार तक सीमित रह जाता है। बेटे की उदासीनता से उससे प्रेम जरूर न रहा पर माता पिता होने के नाते यह जानना जरूरी था कि सुरेश का विवाह के विषय में क्या विचार है। सही बात तो यह है कि दयाशंकर जी ने सुरेश से यही पूछा कि वह उसके लिये किसी लड़की बाले से बात करें। यदि सुरेश ने लंदन में अपनी इच्छा से ही विवाह कर लिया है तो भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। पर उन्हें सच बता दे। आखिर सुरेश के माता पिता होने के कारण लड़की बाले उन्हें ही संपर्क कर रहे हैं। किसी को ज्यादा समय धोखे में रखना ठीक नहीं है।

आखिर सुरेश की रजामंदी के बाद उसकी शादी सुनयना से हो गयी। सुरेश ने पहले ही बोल दिया था कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है। शादी के बाद वह तुरंत अपनी पत्नी को अपने साथ ले जायेगा। पासपोर्ट, बीजा की पूरी प्रक्रिया शादी से पूर्व ही पूरी हो गयी।

सुनयना थोड़े सांवले रंग की पर अच्छे नाक नक्शै की थोड़ी आधुनिक टाइप की लङकी थी। सुरेश से उसके विवाह का आधार भी सुरेश का एन आर होना था। आखिर दयाशंकर और उमा को अब और क्या चाहिये। बच्चों की खुशी में खुशी देखना वह सीख चुके थे।

 पर उन्हें क्या मालूम कि बच्चों की खुशी में अपनी खुशी देखना उन्हें कितना भारी पड़ सकता है। सुरेश पर तो उन्हें ज्यादा भरोसा वैसे भी नहीं था। पर सुरेश उन्हें इस तरह धोखा देगा, इसपर भरोसा करना भी आसान नहीं था। सुरेश ने तो लंदन में पहले ही विवाह कर रखा था। तथा दोनों पति पत्नी ने मिलकर भारत में शादी का प्लान तैयार किया था। लंदन में काम वा ली बहुत मंहगी मिलती हैं। सुनयना का वीजा भी काम बाली के रूप में तैयार कराया था। योजना यही थी कि काम बना तो ठीक, नहीं भारतीय लड़की विदेश में उनका क्या बिगाड़ पायेगी। बात सही भी रही। सुनयना लंदन में सुरेश के खिलाफ कुछ भी सिद्ध नहीं कर पायी जबकि सुरेश की अंग्रेज़ पत्नी भी सुरेश के साथ थी। पर अपने घर में तो कमजोर भी शेर होता है। लंदन में सुरेश का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकने बाली सुनयना भारत आकर दयाशंकर और उमा का बहुत बिगाड़ने की ताकत रखती थी। बेटे के कृत्यों में माता पिता को निश्चित दोषी माना जाता है।

सुरेश को दयाशंकर और उमा की परेशानियों से क्या पड़ी थी। वह लंदन में ऐश्वर्य पूर्ण जिंदगी जी रहा था। दयाशंकर और उमा की जमानत भी बहुत कठिनाई से हुई। समाज में वैसे ही वह अपना सम्मान खो चुके थे। पहले तो भी सोशल मीडिया का सहारा था। अब सोशल मीडिया से दूरी बनाना ही ज्यादा सही लगा।

सुनयना कई बार से मुकदमे की तारीख पर नहीं आ रही थी। वैसे इससे उन्हें क्या। पर यह पता चलने पर कि सुनयना एक गंभीर बीमारी से पीड़ित है, न जाने क्यों दोनों अपने को रोक नहीं पाये।

अस्पताल में घुसने से पूर्व एक बार दोनों रुके। मन में भरा द्वेष उन्हें रोक रहा था। उस दिन किस तरह वे सुनयना के सामने हाथ जोड़कर खड़े थे। पर सुनयना ने अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर रिपोर्ट दर्ज कराकर उन्हें गिरफ्तार भी कराया। सुनयना के साथ उसका भाई भी बहुत बत्तमीजी कर रहा था। क्या उस अपमान को भूल जाना संभव है।

 विचारों ने फिर से पलटा खाया। सुरेश की बजह से बेचारी की तो जिंदगी ही बेकार हो गयी है। सुना है कि लंदन में भी उसने सुरेश और उसकी अंग्रेज पत्नी के बहुत अत्याचार सहन किये। किसी तरह भारत आ गयी, यही बड़ी बात है। फिर उसके स्थान पर कोई भी लड़की होती तो शायद यही करती।

सुनयना सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर लेटी अपनी किस्मत को कोस रही थी। कभी उसे सुरेश और उसके माता पिता पर सबसे ज्यादा गुस्सा आता था। रोज उनकी गालियों की पूरी माला फेर लेती थी । पर कुछ दिनों से उसका भाई और भाभी गुस्सा के ज्यादा पात्र बन रहे थे। जब खुद का सगा भाई इतना स्वार्थी निकला तो संसार में सभी स्वार्थी हैं। कह दिया कि इलाज कराने के पैसे नहीं हैं। वैसे मेरी शादी में लगा सारा धन सुरेश के पिता ने अदालत में जमा कर दिया था। सरकारी अस्पताल में भी कई दिनों तक कोई देखने नहीं आता है।

 सामने  दयाशंकर और उमा को देखकर सुनयना सकपका गयी। उठकर बैठने लगी तो उमा ने उसे कंधा पकड़कर रोक दिया।

  " अरे। लेटी रहो बेटी। कैसी हो।"

 सुनयना मुंह से उत्तर नहीं दे पायी। पर आंखों के आंसुओं ने बहुत कह दिया।  फिर दयाशंकर जी के इलाज व उमा की सेवा के बाद सुनयना ठीक हुई। उनके घर की उदासी फिर से दूर हो गयी है। बेटा न सही पर अब उनके घर में बेटी रहती है। धर्म शास्त्रों में कन्या दान को बहुत बड़ा दान कहा गया है। वे मनुष्य बहुत सौभाग्यशाली कहे जाते हैं, जिन्हें ईश्वर ने कन्या दी हो। ऐसे ही सौभाग्यशाली लोगों की सूची में अब दयाशंकर व उमा भी शामिल हो गये हैं। वैसे वे भी जीवन में अपनी सांवली बेटी का कन्यादान करना चाहते हैं। पर खुद के कल्याण के लिये बेटी की इच्छा का निरादर नहीं किया जा सकता। तथा दयाशंकर और उमा जी की सांबली बेटी उन्हें छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहती।



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