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Arun Gode

Others

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Arun Gode

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साक्षात्कार.

साक्षात्कार.

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     एक साधारण परिवार से ,एक साधारणसा दिखनेवाला,अपनी स्कूली शिक्षा अपने ही छोटे से जन्मगांव में पुर्ण करता हैं. आगे क्या करना उसे पता नहीं होता हैं. ना उसका कोई खास बडा सपना था, ना कोई बडी जीवन में पाने कोई मंजिल तय की थी. गांव में आगे की शिक्षा न होने के कारण, वो जिल्हा स्तर के सायंस कॉलेज में दाखला लेता हैं. आर्थीक परिस्थिति ज्यादा मजबूत न होने के कारण, वो अपने ही गांव से रोजाना रेल से कॉलेज में जाना-आना करता था. आन-जाना करने में बहुंत समय और उर्जा खत्म हो जाया कराती थी. उसी सायंस कॉलेज से वो अपनी स्नातक की पदवी हासिल कर लेता हैं. अभी वो रेल से रोजाना आना-जाना करने का आदी हो चुका था. इसलिए हिम्मत करके नागपुर के सायंस कॉलेज में स्नातकोत्तर के अभ्यास क्रम में दाखला लेता हैं. वहाँ उसे कई बाहरी राज्य के विद्दार्थी भी मिलते हैं. सभी अपने-अपने घर और राज्य की शिक्षण व्यवस्था से ग्रस्त और पस्त थे. अभी वो पढाई में कम और जॉब की तलाश में ज्यादा रुची लेने लगा था. कई स्पर्धा परिक्षाओं में वो अपनी किसमत अजमा रहा था. उसे एक-दो जगह केंद्र सरकार के दफ्तर में जॉब भी मिला था. लेकिन तैनाती गृह राज्य से परप्रांत में कॉफी दूर मिली थी. कभी वो अपने दो शहरों को छोडकर अन्य जगह उस समय तक नहीं गया था. अचानक उसे नागपुर में ही भारत मौसम विभाग में वैज्ञानिक संवर्ग तैनाती मिली थी. वो इस तैनाती से बहुत खुश था. उसने सोचा नागपुर में ही जॉब होने के कारण वो अन्य स्पर्धा परिक्षाओं की तैयारी कर सकता हैं. अभी जॉब मिलने से वो खुश हुआ था. लेकिन इतने लंबे शैक्षणिक सफर के बाद उसके जोश में थोडी शितिलता आई थी क्योंकि दाल –रोटी की समस्या का समाधान हो चुका था.जो उस वक्त भी सभी लिखे-पढे नव-जवानों की ज्वलंत गंभिर समस्या थी.

        लेकिन कुछ समय पश्चात उसे एक विशेष प्रक्षिशन के लिए दिल्ली भेजा गया था. उधर से लौट ने के बाद उसका परप्रांत में स्थानांतर किया गया था. धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट जैसी स्थिति बन चुकी थी.अभी वो दुविधा में फस चुका था. आगे का भविष्य उसे अंधकारमय दिख रहा था. उसने जो ध्येय निश्चित किये थे. उसे पलीता लगने वाला था. उसे अभी वहाँ जानाही था.उसके पास कोई विकल्प बचा नहीं था. अभी उसके ऊपर आसमान टुट पडा था. मजबुरी में वो उस कार्यालय में तबादले पर चला जाता हैं. माता-पिता अभी सोचते हैं कि बेटे की शादी कर देने में ही भलाई हैं. अन्यथा इतने दूर वो अकेला कैसे रह पायेंगा !.शादि होने के बाद वो पारिवारिक जिम्मेदारियों के दल-दल में फस जाता हैं. उसके देखे सपने चकना-चुर हो जाते हैं. फिर भी वो विभागीय स्पर्धा परिक्षा पास करके अगले संवर्ग में पदोन्नती समय से पहिले पा जाता हैं. फिर उसका अन्य जगह तबदला होता हैं. नये –नये शहरों के कार्यालयों में तबादले पर जाना अभी उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था. जब एक बार आदमी मौत के मुंह से निकल आता हैं. तब उसे मौत से डर नहीं लगता !. अभी उसका डर लग-भग खत्म हो चुका था.

      अचानक उंट करवट बदल लेता है. उसे बढती पर नागपुर पर तैनाती मिलती हैं. पुरा परिवार खुश हो जाता हैं. नागपुर में वो बडे अधिकारी के निचे मौसम पूर्वानुमान इकाई में काम करता हैं. उसकी कार्य-शैली और कार्यालियन काम के प्रति समर्पण को देखते हुयें उसका बॉस उसे एक महत्वपूर्ण सिट पर उसकी तैनाती करता हैं. अभी बॉस और उसके बिच में पहिले से ज्यादा संपर्क होता था. कोई भी महत्वपूर्ण कार्य को बॉस उसे बताते थे. अभी वो बॉस के गूड-बूक में शामिल हो चुका था. बॉस को अकसर मीडियां कार्मियों से साक्षत्कार करना पडता था. बॉस पुरे देश के मध्यवर्ति संभागा का मुख्य पूर्वानुमानकर्ता था. पुरे संभाग की मौसम की भविष्यवाणी करना उसकी जिम्मेदारी थी. जब कभी मौसम के हालत बदलते नजर आते थे. मीडिया कर्मि उनका साक्षात्कार लेने आ जाते थे. बॉस को लगनेवाली सभी आवश्यक जानकारी उपलब्द कराने का जिम्मा उसी पर आता था. वो अकसर जब बॉस का जब बाईट चलता रहा था. उसी कमरे में उपस्थित रहता था. बाईट होने के पहिले उसकी और बॉस की बहुंत सारे बिंदुओ पर चर्चा भी होती थी. उस चर्चा के दौरान बहुंत सारी मौसम पूर्वानुमान और साक्षात्कार की अहम बारिकियां का ज्ञान हो जाता था. हमेशा आनेवाले मीडिया कर्मियों की जान-पहचान भी हो चुकी थी. उनके लिए उसका नाम और चेहरा तब अपरिचित नहीं था.

        अचानक एक रविवार के दिन बॉस को बहुंत जरुरी घरेलु काम था. वो समय से पहिले कार्यालय में आकार अपना मौसम पूर्वानुमान का कार्य निपटाकर शीघ्र चले गये थे. उस दिन दोपहर को कुछ मीडिया कर्मियों को बदले मौसम पर उनका बाईट के लिए आनेका फोन कर्तव्य अधिकारी को आया था. तभी नियमनुसार उसने बॉस को खबर दी थी. उस वक्त बॉस कही बाहर जरुरी काम से होने के कारण आने में असमर्थ थे. तभी बॉस में पुछा था कि कार्यालय में और कौन अधिकारी उपस्थित हैं ?. ऐसा पुछा था. तभी उसने बॉसे के गुडबुक में जो अधिकारी था. उसकी जानकारी उसने दी थी. तभी बॉस ने उस अधिकारी को उनसे बात करने को कहाँ था. उस अधिकारी ने जब बॉस को फोन किया था. तब बॉस ने उसे बाईट देने को कहाँ था. संबंधीत मौसम के लिए आवश्यक सुचनायें भी की थी. उसी वक्त शायद मीडिया कर्मियोंने उनसे भी संपर्क किया था. मीडिया कर्मियों को पता था कि आज कोई अन्य अधिकारी बाईट देनेवाला हैं. तभी वो उसे पुछते हुयें कार्यालय में प्रवेश करते हैं. उस अधिकारी ने बाईट की पुरी तैयारी कर ली थी. ओपचारिकता पुरी होने पर उस अधिकारीने उस दिन के बाईट की प्रश्नावली उनसे पुछी थी. प्रश्न पर एक नजर दौडाने पर उसने देखा की सभी सवालों के जवाब तैयार थे.

     कार्यालय के अन्य अधिकारी और कर्मचारी इस बात के लिए उत्सुक्त थे कि बॉस के अनुपस्थिति में वो मीडिया कर्मियों को कैसे संभालता हैं?. वो अधिकारी भी अंदर से बहुंत डरा हुआ था. उसे लग रहा था. कहीं अगर उसने कुछ उलटा –सुलटा जवाब दिया तो मीडिया में बॉस के साथ कार्यालय की भी बदनामी हो सकती हैं. उसे ये भी पता था कि हर प्रकार के प्रवास की शुरुआत पहिले कदम से ही होती हैं. जब कभी मौका मिलता हैं. उसे भुनाने में ही जिम्मेदार कर्मि की परिक्षा होती हैं. उसे पता था. जब ये बाईट टेलीविजन पर चलेगी !. उसे हजरो दर्शक भी देखेगें !. उसे उसके सगे संबंधी, दोस्त-यार भी देखेगें. यह उसके लिए सुनहरा मौका था. इसे उसे जिम्मेदारी के साथ निभाना ही था.


     मीडिया कर्मियों द्वारा बाईट की पुरी तैयारी कर ली गई थी. उन्होने उसे एक-एक करके सवाल पुछ्ना शुरु किया था. उनके सभी सवालों का वो दृढता पूर्वक, तर्क के साथ जवाब दे रहा था. अभी उनकी सवाल पुछनी की लालसा और बढ गई थी. कुछ ऐसे सवाल उनके जहन में थे.वे सभी उसका जवाब जानना चाहते थे. ये सभी सवाल उनके द्वारा पुछे जानेवाले सवालों के अतिरिक्त थे. उस अधिकारी ने उनके सभी सवालों का समाधान करके जवाब दिऐं थे. वो सभी खुश होकर चले गये थे. कार्यालय के सहकर्मियोने भी उसकी कॉफी प्रशंसा की थी.

      उस शाम बॉस का उसे फोन आया था. वो फोन देखकर थोडा मायुस हुआ था. फिर भी उसने फोन हिम्मत जुटा के उठायां था. बॉसने उसे सफलता पूर्वक बाईट देने के लिए फोन किया था. बॉस ने उसका खुले दिल से हृदयपूर्वक अभिनंदन किया था. अभी उसका आत्मविश्वास बढ गया था.मीडियवालों को ये पता नहीं था कि उसका ये प्रथम बाईट था. वे सभी उसे अकसर बॉस के साथ देखा और मिला करते थे. उन्हे ऐसा लगा कि बॉस के अनुपस्थिति में शायद यह कार्य उनको दिया हो !. उस के बाद उसके छोटे से शहर के मित्रों, परिचितों और अन्य जागरुक नगरवासियों को अभिमान हुआ था कि उनके मिट्टी में पैदा हुआ बालक आज देश के राष्ट्रिय टेलीविजन पर दिखा था.उन्हे भी उस पर फक्र हो गया था.इस तरह उस अधिकारी को अचानक साक्षात्कार देने का सुनहरी अवसर प्राप्त हुआ था. बाद में ये सिलसिला सेवानिवृत्ति तक चलता रहा था.



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