" रिश्ते"

" रिश्ते"

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"क्या हुआ हरीश तुम इतने उदास क्यों रहते हो और कक्षा में सबसे अलग भी बैठते हो..? तुम लंच भी सब के साथ नहीं करते ..।" गौतम ने लंच टाइम में हरीश के पास जाकर पूछा।

"मुझे नहीं मालूम गौतम ..। मेरे साथ ना तो कोई बैठना चाहता है और ना ही कोई लंच करता है ।" हरीश ने उदासी भरे शब्दों में कहा । 

गौतम ने हाल ही में शहर के सबसे नामी श्रेष्ठतम स्कूल में दाखिला लिया था और उसके व्यवहार को देखकर सब उससे दोस्ती की इच्छा रखते थे। पर सिर्फ एक हरीश ही था जिससे उसकी बात नहीं होती थी। वो अक्सर हरीश को कक्षा में सबसे अलग और उदास बैठे हुए पाता।

"अच्छा..! ये बताओ क्या शुरू से ही तुम से कोई बात नहीं करता ...??"

"ऐसा नहीं है गौतम ! दाखिला के समय सब मुझसे बात करते थे पर मालूम नहीं क्यों धीरे-धीरे सब मुझसे दूर हो गए। "

" कोई बात नहीं हरीश आज से मैं तुम्हारा दोस्त हूँ।" गौतम ने उसकी तरफ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा।

"सच..!"

"हाँ हरीश..!" 

इतना सुनते ही हरीश खुशी से उछल पड़ा। सभी बच्चे छुट्टी के समय भागकर गौतम के पास आए और सब उसे कुछ खुसुर- पुसुर करने लगे। यह सब देखकर कुछ ही समय पहले खुश दिख रहे हरीश,के चेहरे पर मायूसी छा गई ।

दूसरे दिन हरीश जब स्कूल पहुँचा उसका मन उदास था । रह - रह कर यही ख्याल आता.., पता नहीं और बच्चो की भाँती गौतम भी कहीं दोस्ती का हाथ ना छोड़ दे..! हरीश क्लास में पहुँचकर यथावत अपनी सबसे आखिरी बेंच पर जाकर बैठ गया। पर उसकी नज़रें गौतम पर ही टिकी हुई थी। सारे बच्चे क्लास में पहुँच गए थे । गौतम भी आकर अपने अन्य दोस्तों के साथ बैठ गया । ये देखकर हरीश की आशा टूट गई। तभी टीचर भी क्लास में पहुँची और बच्चों की हाजिरी लेने लगी।

गौतम ने बीच में ही उठकर कहा, "मैम मेरी सीट हरीश के साथ कर दीजिए । आज से मैं वहीं बैठूंगा।"

सुनते ही सारे बच्चे आश्चर्य भरी नजरों से गौतम को घूरने लगे। टीचर समझ गई और उन्हें गौतम के फैसले पर प्रसन्नता हुई और गौतम की पीठ थपथपाते हुए कहा ,"ठीक है, गौतम आज से तुम वहीं बैठना।"

गौतम अपना बैग लेकर हरीश के पास चला गया । "मै सब जानता हूँ दोस्त तुम्हारे पापा इस स्कूल में एक बहुत ही छोटे ओहदे पर काम करते है ना.. और शायद इसी वजह से बच्चे ना तो तुम्हारे साथ बैठना चाहते है और ना ही लंच शेयर करते है।"

यह सुनकर हरीश के मुख पर उदासी छा गई..।

"उदास मत हो हरीश ,आज से हम पक्के दोस्त हुए और अपना लंच भी हम मिल बाँटकर खाएंगे..।"

यह सुनते ही हरीश के मुख पर खुशी की चमक आ गई ।



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