रिश्ते तो बहुत हैं बदनाम सास-बहु
रिश्ते तो बहुत हैं बदनाम सास-बहु
देव अपनी माँ का लाडला बेटा था। चार बहनों में इकलौता था। सब देव का बहुत ख्याल रखते थे। बहने बड़ी थी सबकी शादी हो गयी थी। लेकिन देव को अकेले अपनी ससुराल तक नहीं आने देती थी। कहीं रास्ते में मेरे भाई को कुछ हो न जाये। नौकर चाकर सब लगे थे। देव को कहीं जाने नहीं देते थे।
एक दिन देव के जीजा जी आये और बाइक की चाभी टेबल पर रख कर अंदर सासु माँ के पास बैठकर कुछ बातें करने लगे। तब तक देव बाईक उठाया और अपनी बहन के घर चला गया। वहाँ पहुँचा तो बहन मीनाक्षी से उसकी सास और ननद में कुछ बात बहस चल रही थी। यह देख देव अचंभित रह गया।कि दीदी तो कभी बुराई नहीं करती अपनी सास और ननद का फिर यह आज क्या देख रहा हूँ।
देव को देख सब लोग चुप हो गए। और अपने अपने काम मे लग गए। मीनाक्षी ने चाय बनाया और पानी सब दी। पूछने लगी कि आज तुम यहाँ कैसे किसके साथ आये हो। नहीं दीदी अकेले आया हूँ। तुम्हारे पति देव मेरी माँ से कुछ बात करने लगे उनकी बाइक लेकर मैं तुम्हारे पास आ गया। अच्छा अब मैं चलता हूँ। पापा को पता चलेगा तो बहुत नाराज़ होंगे।
अच्छा आराम से जाना। और आज के बाद इस तरह से कभी मत आना। वो भी अकेले समझे पापा परेशान हो रहे होंगे। जाओ और सुनो! यहाँ की कोई बात घर पर माँ और पापा के सामने करने की कोई जरूरत नहीं है। जो चीज अब तक छुपाई रही उसे तुम मत खोलना नहीं तो मेरे ससुराल वालों की इज़्ज़त कम होगी। इन लोगों को गलत भाव से माँ देखेगी। और "माँ और पापा भी दुखी होंगे। यह मेरी किस्मत में जो लिखा था वही मिला है। हम नहीं चाहते कि मेरी वजह से तुम लोग परेशान हो।"
देव अपने घर आया और चाभी टेबल पर रख दी। चुपचाप अपने कमरे में चला गया। यहां चाभी की खोजबीन चल ही रही थी। बाहर से पापा चिल्लाते हुए अंदर प्रवेश किये। कहाँ गया था। बिना बताए इस तरह से कोई जाता है। हम सबकी जान निकल गयी थी। आज के बाद इस तरह से कभी मत जाना । और तुम्हें जाना कहाँ था। जो तुम अकेले गए थे। किससे मिलने गए थे।
देव ने किसी के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दिया। और गुमसुम सा दिन भर रहा। रात का खाना निकाला गया। सब साथ मे बैठे। तो देव ने अचानक रामू काका को जाने के लिए बोला। रामू काका आप खाना रख कर जाइये हमे कुछ बता करनी है।
फिर मौका मिला तो अपनी माँ और पापा से एक ही प्रश्न किया। "कि एक बात मेरे समझ मे नहीं आती कि इतने सारे रिश्ते होते हैं, उनमें से केवल सास -बहू, ननद -भाभी ही क्यों बदनाम होती हैं। क्यों इन्ही के रिश्तों में खटास भरी होती है। माँ ने बोला-आज अचानक तुम ये कैसा सवाल किए जा रहे हो।
किसी ने कुछ कहा है या किसी के घर गए थे। वहाँ कुछ विशेष देखे हो तुम इधर उधर न घुमाओ सीधी बात बताओ। फिर देव ने बोला पापा आपने कभी अपनी बेटियों से पूछा कि बेटा तुम्हें कोई कष्ट तो नहीं है? पापा ने बोला -नहीं बेटा इस प्रकार का कोई मौका ही नहीं आया।
सब अपने अपने घर गृहस्थी में खुश हैं। बस यही बात पापा आपकी कमी है। आज आपको कुछ सच्चाई बताने जा रहा हूँ। जो दिखता है वह वैसा बिल्कुल भी नहीं होता। मीनाक्षी दीदी के घर अचानक उन्ही की बाइक लेकर पहुँच गया। वहां दीदी से उनकी सास और ननद दोनो लड़ रही थी। मुझे देखते ही चुप हो गयी। जिस तरह से आज दीदी के साथ हो रहा है। कल को मेरी शादी होगी तो यहां भी वही सब चलेगा। हो सकता है मेरी पत्नी दीदी की तरह न हो वह जाकर आप सबकी मेरी बदनामी करे।
पापा जी ने बेटे को समझाया। बेटा कोई भी रिश्ता हो जहाँ परिवार की इज़्ज़त और सम्मान नहीं होता। वहां पर हर एक रिश्ता बदनाम होता है। बस फर्क सास बहू ननद भाभी में हैं कि ये दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर मे जब पड़ जाती हैं तब यह रिश्ता बदनाम हो जाता है। और कई घरों में यही सास- बहू ननद- भाभी का रिश्ता दोस्ती की मिसाल बनी है। हम सब उसके घर के मामले में न पड़े तो बेहतर होगा।
आज तक मीनाक्षी ने जैसे सम्भाला है, मुझे पता है आगे भी बहुत ही बारीकी और प्यार से निभा लेगी। हमने अच्छा घर परिवार देख कर शादी कर दी अब आगे उसकी किस्मत है। बेटा जहाँ तक "इन रिश्तों के बारे में मैं कुछ ज्यादा नहीं कह पाऊंगा। लेकिन यह बहुत पुरानी प्रथा थी कि बहुओं को सताया जाता था। अब जमाना और लोग बहुत ज्यादा जागरूक हो गए हैं।"
"अब इस तरह का व्यवहार कुछ कम हुआ है। धीरे धीरे सब खत्म होगा। जिसे हम आप मिलकर बदनाम कर दें। वही बदनाम हो जाता है।"
"तुम ज्यादा इस विषय पर न सोचो ये इस दुनिया की रीति है।"
