रीतु
रीतु
हमारी रीतू ,हाँ हमारी रीतु ,हमारी बेटी सरीखी रीतू, हमारे घर को सभालने वाली रीतु,हमारा घर तो ना कहूँगी पति के घर को संभालने वाली रीतू,रचार बालकों की माँ हंसती खिलखिलाती रीतु,बेपरवाह सी रीतु ।पर पता नहीं विधाता को क्या सूझा, उसकी हंसी छीन ली,और अचानक से सबकुछ छीन लिया उससे और असहाय कर दिया।
अब कया बताऊँ, उसका पति जो बीमार तो पड़ा, वो इलाज कर रही थी, लगातार सेवा करती रही पर पता नहीं कैसे अचानक काल के गाल में समा गया। अब कैसे जीवन यापन करेगी ?यह बहुत बड़ी बात है।कल भी कमाती आज भी कमायेगी पर जिसके लिये घर भागती थी वह ही नहीं रहेगा।मतलब एक खालीपन आ गया उसके जीवन में वह कौन भरेगा? यही सवाल हमको खाये जा रहा है। कैसे जीवन कटेगा ?लोगों की निगाह अब और भी बुरी हो जायेगी पर रीतु हौसले वाली औरत है, और साहस से सामना करेगी यही आशा करते हैं।
