तीन कहानियांं-भाग १ - राखि
तीन कहानियांं-भाग १ - राखि
कहते है प्रेम की कोई भाषा नही होती। दुनिया के हर देश में हर शहर में हर गली में इसकी बस एक ही भाषा है और वो है मन की भाषा। इसको समझने के लिये आपको किसी भाषा विशेष की जानकारी होना आवश्यक नही है। इसे कहने के लिये ना तो अपको अपने लब हिलाने की जरूरत है और ना ही समझने के लिये किसी अनुवादक की आवश्यक्ता होती है। ये तो चाहने वालों के हाव-भाव से ही समझ में आ जाती है। जब कोई दो लोग प्रेम में होते है तो ये बात उनके आस पास के लोगों से छुपी नही रह सकती। हाँ मगर ये मुमकिन है की उन दोनों को ये बात समझने मे थोडा समय लग जाये। प्रेम की एक और खास बात है इसके लिये उम्र की कोई सीमा तय नही होती ये किसी को भी कभी भी कहीं भी हो सकता है। कूल मिलाकर प्रेम मे पडने वालो के लिये उम्र, भाषा, संस्कृती कुछ भी मायने नहीं रखता। बस एक ही बात मायने रखता है कि जिसे हम चहते हैं क्या वो भी हमें चाहता है। इस पूरे संसार मे एक भी मनुष्य ऐसा नहीं हो सकता जो कभी प्रेम में नही पडा हो। कभी-ना-कभी कहीं-ना-कहीं किसी-ना-किसी से हरेक व्यक्ति को प्रेम जरूर हुआ होता है। कुछ का प्रेम सफल हो जाता है तो कुछ लोगों का सफल नही हो पाता। कुछ ऐसे होते है जो खुल कर इस विषय पर बात करते हैं और कुछ अपने ज़ज़्बात अपने अंदर ही दबा कर रखना सीख जाते है। मगर प्रेम करते तो सब है। कुछ लोग प्रेम करके शादी करते है तो कुछ लोग शादी के बाद प्रेम करते हैं । कुछ लोगों को शादी के बाद सच्चा प्रेम मिलता है तो कुछ को शादी के बाद सच्चा प्रेम हो जाता है। मगर प्रेम क हर रुप पवित्र होता है फिर चाहे वो किसी भी उम्र मे हो किसी भी स्थान मे हो किसी भी व्यक्ती से हो ये हमेशा साफ और पवित्र होता है।
