हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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प्यार तो होना ही था

प्यार तो होना ही था

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आज काव्या बहुत खुश थी । खुश हो भी क्यों नहीं । आखिर चार दिनों की छुट्टी एक साथ मिल रही थी । अजमेर में पुष्कर तीर्थ पर पशु मेला लगता है । जिला कलक्टर पॉवर की छुट्टी गुरुवार को हो गयी थी और शुक्रवार को गुरु नानक जयंती की पूरे राजस्थान में छुट्टी थी । शनिवार और रविवार को वैसे ही अवकाश रहता है । इसलिए वह बुधवार को स्कूल में ड्यूटी करके जयपुर के लिए निकल पड़ी । उसकी जान जो रहती है जयपुर में । 

काव्या की जान वैदेही में बसती है । वैदेही अभी छ: साल की है और बहुत ही मासूम है । काव्या का ध्यान बस अपनी बेटी वैदेही में लगा रहता है । क्या कर रही होगी वह ? कहीं "नैना" को तो तंग नहीं कर रही होगी ? नैना माने नानी । वैदेही अपनी नानी को नैना ही कहती है । काव्या ने उसे नानी के पास ही छोड़ रखा है । 


दरअसल काव्या अजमेर के सबसे बढिया स्कूल में टीचर है । रईस लोगों के बच्चे पढ़ते हैं उस स्कूल में । काव्या अभी एक वर्ष पहले ही आई है उस स्कूल में । कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेज ले लेती थी वह अपने घर से । तब वैदेही के साथ वक्त कब गुजर जाता था पता ही नहीं लगता था । लेकिन अब स्कूल खुल गये हैं और सब बच्चे स्कूल आने लगे हैं । हालांकि वह प्राइमरी तक के बच्चों को ही पढ़ाती है और छोटे बच्चे अभी सारे नहीं आ रहे हैं । इसलिए उसने भी वैदेही को अभी स्कूल भेजना उचित नहीं समझा । 


अब समस्या यह आई कि वह वैदेही का क्या करे ? काव्या के पति गुड़गांव में जॉब करते हैं । वे शुक्रवार को डबल डेकर से देर रात तक घर आते हैं और सोमवार को डबल डेकर से चले जाते हैं । काव्या भी शुक्रवार को करीब पांच बजे तक आ जाती है और सोमवार को सुबह जल्दी चली जाती है अजमेर । वैदेही को अजमेर ले जा नहीं सकती है इसलिए उसे उसकी नानी के पास छोड़ दिया है । नानी भी अकेली रहती हैं । अभी छ: महीने पहले ही काव्या के पिता की कोरोना के कारण मौत हो गई थी । काव्या की मां कामिनी बिल्कुल अकेली रह गयी थी घर में । काव्या का छोटा भाई और भाभी पुणे में रहते हैं । दोनों जॉब करते हैं वहां पर । कामिनी को अपने घर से बेहद लगाव है क्योंकि उनके पति से जुड़ी सारी यादें इसी घर में रहती हैं । कामिनी उन यादों के सहारे ही जीवित हैं । इसीलिए वह घर छोड़कर कहीं भी जाना नहीं चाहती हैं ।


काव्या की ससुराल भी जयपुर में ही है । उसके ससुर मिलट्री से रिटायर्ड अफसर हैं । सासू मां की मृत्यु भी अप्रैल महीने में हो गयी थी जब रेमिडिसीवर इंजेक्शन की भारी किल्लत हो रही थी । काश उन्हें मिल गया होता वह इंजेक्शन तो सासू मां आज जिंदा होती । एक महीने में ही उसके पापा और सासू मां की मौत हो गई थी कोरोना से । कोहराम सा मच गया था उसकी जिंदगी में ।


लगता था कि जैसे जिंदगी थम सी गई है उसकी । मगर उसके हबी कपिल ने कितना संभाला था सबको । खासकर उसको । वह तो टूट ही गई थी इस हादसे से । सासू मां तो देवी का वरदान ही थीं । बेटी से भी अधिक प्यार करती थीं उसे । दिन भर बींदणी बींदणी करती रहती थीं । और पापा ? उनकी तो जैसे जान काव्या में ही बसती थी । काश, कोई वो मनहूस लम्हे उसकी जिंदगी के पन्नों से निकाल कर बाहर फेंक दे । 


ऐसे किठन समय में कपिल ने उसका हौंसला बढ़ाया । कपिल उसके पति नहीं अपितु जीवन साथी हैं जो हर वक्त उसके साथ होते हैं । भगवान ने विशेष रूप से बनाया था कपिल को । ऐसा लगता है उसे । कपिल तो जैसे उसके लिए भगवान ही हैं । कपिल का स्मरण होते ही उसे पुरानी बातें याद हो आयीं । 


लगभग दस साल पहले की बात है । काव्या और उसके मम्मी पापा एक शादी में गये थे । उसी शादी में कपिल और उनका परिवार भी आया था । पता नहीं दोनों के मम्मी पापाओं में कब बात हो गई उसी शादी में और उन दोनों की मुलाकात भी अरेंज करा दी थी उसी दिन । काव्या तो कपिल को देखते ही लट्टू हो गई थी । कितनी जबरदस्त पर्सनैलिटी थी कपिल की । लंबा ऊंचा कद । गोरा चिट्टा । तीखे नाक नक्श । मन मोहिनी मुस्कान । और ड्रेसिंग सेंस तो कमाल का था । मिलने पर व्यवहार का पता चला । कपिल से मिलकर उसे एकदम से विश्वास नहीं हुआ कि ऐसी पर्सनैलिटी भी हकीकत में होती हैं क्या ? और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि वो "कोहिनूर" अभी तक तन से भी अनछुआ ही था । आज के जमाने में ऐसे हैंडसम को कौन लड़की छोड़ती है । मगर कपिल तो न जाने किस मिट्टी के बने थे । 


उधर कपिल ने भी काव्या को देखा तो बस देखता ही रह गया था । इतनी मासूम तो बस हया ही होती है । काव्या तो उससे भी अधिक मासूम लग रही थी । वो बड़ी बड़ी काली काली आंखें , तीखी नाक , कश्मीरी सेव से लाल गाल , गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल अधर , गालों में पड़े हुए छोटे छोटे दो गड्ढे । सुराहीदार गर्दन और कमर से नीचे तक लहराते काले घुंघराले बाल । कपिल को लगा जैसे वह जन्नत में आ गया है और उसके सामने उर्वशी खड़ी हुई है । 


दोनों एकटक एक दूसरे को देखते रहे । कपिल थोड़ा मैच्योर था इसलिए उसने अपने चेहरे पर भाव आने नहीं दिये मगर काव्या तो बचपन की तरह मासूम थी । उसके अंग प्रत्यंग से उसकी हां झलक रही थी । 


जब मां ने पूछा तब वह एक ही सांस में कह गई कि काश वो मिल जायें । मां समझ गई कि काव्या के मन मंदिर में कपिल की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है । उसने काव्या के पिता को काव्या की भावनाओं से अवगत करवा दिया और दोनों की सगाई वहीं पर उसी दिन हो गई । 


काव्या को सब कुछ कितना याद था । वह उन पलों को अपनी आंखों में हर समय कैद रखती है । जब भी उसे वो पल याद आते हैं उसके अधरों पर बरबस एक मुस्कान थिरक जाती है । 


बस जयपुर शहर में प्रवेश कर चुकी थी । थोड़ी देर में 200 फुट रोड़ आ गयी जहाँ उसे उतरना था । उसके ससुर जी गाड़ी लेकर तैयार खड़े थे । मां और वैदेही भी साथ ही थीं । काव्या ने झुककर ससुर जी के पैर छुए और मां के गले लग गई । इतने में वैदेही ने उसे कसकर लिपटा लिया । बच्चे अपने भाव अपनी हरकतों से ही बयां कर देते हैं । सब लोग कार की ओर चल पड़े । कार फर्राटे भरती हुई उन्हें लेकर उड़ चली अपने आशियाने की ओर । 


शेष अगले अंक में 



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