पूर्व-संध्या
पूर्व-संध्या
श्रीकांत,गुनवंता और अरुण ये सभी नागपुर में स्थाई हो गये थे.सेवानिवृति के बाद, उनके पास समय ही समय था.वे बीच-बीच में मिला करते थे.उन्ही तीनों की प्रबल ईच्छा थी कि सभी उनके वर्गमित्र एक साथ उनके पुराने स्कूल में मिले. सभी एक –दूसरे का हाल-चाल जाने. इस ईच्छापूर्ती के लिए श्रीकांत,गुनवंता और अरुण ने भरसक प्रयास किये थे.इस में श्रीकांत का शेयर का हिसा था.लेकिन किस्मत ने उसका साथ नहीं निभाया था. उसे हार्ट अटैक आने से वहा इलाज के बाद, स्वास्थ लाभ कर रहा था. हम सब श्रीकांत की अनुमती लेने के बाद, नागपुर से अपने जन्म भूमि की और निकल चुके थे. हमारे साथ हमारा चैन्नई का मित्र पदमनाभन भी था. प्रवास के दौरान हम तिनों मित्रों की बाते चल रह्री थी. पदमनाभन ने बार –बार कह रहा था.ऐसे कोई अनपेक्षित कार्यक्रम के लिए मुझे कभी आना पडेगा और सभी से मुलाकात का मौका मिलेगा ऐसा मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. हमारी इसके लिए वो तहे दिल से तारिफ भी कर रहा था. नागपुर छोड के उसे एक अरसा हो चुका था. उसने पहिले दिन अपाने मित्र अरुण के साथ नागपुर की सैर-सपाटा किया था. वह नागपुर शहर में आये बदलाव को देखकर भौचक्का हो चुका था. आज वह शहर से बाहर के दृष्य को देख रहा था. लंबी-चौडी सडके देखकर कॉफी प्रभावित हूँ आ था. बाते करते – करते ,हम अपने गंतव्य स्थान के काफी नजदीक आ चुके थे. उतने में ही स्थानीय मित्रो के फोन आने शुरु हो गये थे. हमने, उन्हे कहा ,हम सभी शीघ्र पहूँ चने वाले हैं. आप सब हमें स्कूल में ही मिलो.बस हम अभी पहूँ चनेवाले है. थोडी देर बाद हम अपने पुराने स्कूल पहूँ चे, जहां हमे अच्छी शिक्षा के साथ- साथ अच्छे संस्कार भी मिले थे. जीस स्कूल के शिक्षकों ने एक ज्ञान का पौंधा हम सबके मस्तिष्क में लगाया था. हमे प्रगती की राह दिखाई थी. वो पौधा अभी परिपक्व हो चुका था. सबने अपने- अपने क्षमतानुसार अपने- अपने भविष्य को संवारा था. वहां पहूँ चने पर सभी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया था. उसी के साथ कल के कार्यक्रम में अपना नेता, श्रीकांत नहीं रहेगा इसके लिए अपना दुःख व्यक्त करे रहे थे. अंडे सेवे कोई ,बच्चे लेवे कोई. हम सभी उनका साहस बढाते हुयें कह रहे थे कि श्रीकांत का जो सपना था. उसे पुरा करके, उसे यादगार बनाना है !. चलो काम पर लगते है. दिन भर हम सब काम में लगे रहे. लग-भग सभी तैयारीयां हो चुकी थी. एक-एक करके सभी बाहर से आनेवाले मित्रों की जानकारी प्राप्त हो रही थी.
मुझे और गुनवंता को जिस की तलाश थी वो भी आ चुकी थी. लेकिन वो अपने बहन के गांव उसे मिलने चली गई थी. हम उसका बहूँ त बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. क्योंकि कल के कार्यक्रम की एंकरिंग का जीम्मा उसे सोपना था.उससे मिलने की भी बहूँ त चाहत थी. वो अभी कैसी दिखती है,उसकी सेहत कैसी है, वो क्या पहिले जैसे ही बाते करती हैं ?. क्या वो मुझे से खुलके बात करेगी !. ये सब सवाल मेरे मन- मस्तिष्क में चल रहे थे. फिर थोडी देर बाद उसका फोन गुनवंता को आया था.
रीना : हैलो गुनवंता ,मैं अभी निकली हूँ . एक डेढ़ घंटे में पहुंच जाउंगी.फिर हमेने राहत सांस ली.
गुनवंता ; अरे रीना का फोन था. वो एक देड घंटे में पहूँचने वाली है.
अरुण: मैंने कहा चलो अपने सभी सोचे काम हो गये हैं. एंकरिंग करनेवाली भी पहुंच रही है. उसके आने के खबर ने मुझे तरोताजा कर दिया था. हमने कहां आप सभी स्थानीय मित्र फ्रेश होकर आ जावो. फिर हम सभी रात्रीभोज पुना से आई फटाके के साथ मिलकर करेंगे !. कोई भी मेरे इस बात को समझ नहीं पा रहे थे.
मित्रों : अरे अरुण क्या कह रहा है ?. कौन सा फटाखा ऐसा सवाल सभी ने करा. गुनवंता ; अरे वो रिना की बात कर रहा है. वो पहूँ चने वाली है.
धीरे- धीरे अन्य बाहरी मित्र और सहेलीयां हॉटेल में पहूँ च रहे थे. हम सबका स्वागत करते हुयें उन्हे अपने- अपने कमरे में भेज रहे थे. वो इंतजार की घडी खत्म हुई. जब मेरे पिछे एक ऑटो आके खडा हुआ था. जैसे ही ऑटो खडा हुआ.
गुनवंता ; ने कहा. अरे, रीना तू ने कितनी देर लगा दी है. हम सब तेरा कब से इंतजार कर रहे है.
रीना : उसने कहां, मुझे नहीं लगता कि सभी मेरा यहां इंतजार कर रहे हैं. मेरे तरफ, हलकी तिरछी आंखो से इषारा करते हुयें कहां. मौके का फायदा उठाते हुयें.
अरून: मैंने कहा, तेरे इंतजार में मैं कब से अपनी आंखे बिछायें खडा हूँ ?.
रीना : उसने कहां, तुझे मैं जानती हूँ . तु ऐसा कुछ नहीं कर सकता. झूठा कहीं का.
अरुण: मैंने कहा झूठा ही सही, लेकिन इंतजार कब से कर रहा था.
रीना: यह मुझे मालुम नहीं. मुस्कुराते हुयें उसने कहा. ऐसा हैं तो, हमारे आज भाग्य खुल गये समजो !.
अरुण :मैंने ने कहा , लाव तेरी बॉग कमरे तक ले चलता हूँ .
रीना: अरे नहीं ,मेरी इतनी सेवा मत कर.
अरुण: फिर भी मैंने हंसते हुये कहां , जनाब इस गरिबदास को इतना तो सेवा का मौका मिलना चाहिएं.हम सब उसके कमरे तक, बाते करते हुयें गये. कहा आप फ्रेश हो जाव फिर कुछ कार्यक्रम सबंधी बाते करनी है.
रीना: अरे अरुण , मैं, रीना बोल रही हूँ . मैं, फ्रेश हो चुकी हूँ , आप सब आ जाव. हम सब बाद में उसके कमरे में पहूँ चे.फिर कल के कार्यक्रम पर चर्चा शुरु हुई थी.
गुनवंता ; गुनवंता ने उससे कहा कल के कार्यक्रम की एंकरिंग तुझे करना है.बिना कोई आना –कानी करते हुयें, उसने ये जीम्मेदारी ले ली थी. लेकिन कैसे शुरुवात करनी है, इस पर चर्चा होने लगी. चर्चा करते- करते कार्याक्रम को अंतिम रुप दिया जा रहा था. हमारे पास कुछ मित्रों के नाम आये थे. जो कुछ अपने विचार, अनुभव साझा करना चाहते थे. उनकी सुची बनाई गई थी. इस कार्यक्रम में मेरा कविता संग्रह का भी विमोचन करना है और इसका विमोचन पदमनाभन द्वारा किया जाएगां. ये सब तय होने पर उसने कहा मैं अभी लिखकर अंतिम रुप देती हूँ .
अरूण : अरे सुन, तु बहूँ त अभी थक गई होगी. तुझे अभी उर्जा की आवशकता है. चलो हम सब खाना खा लेते है. बची हुई बाते खाने पर ही करते है.
रीना ; मुस्कुराते हुये, उसने गुनवंता को कहा, अरे अरुण आज बहूँ त मेरी चिंता कर रहा है. पता नहीं क्यों इतना भाव भी दे रहा है ?.
गुनवंता : अरे कल तुझे उसकी तारिफ करनी है क्योंकि उसके कविता संग्रह का विमोचन करना है. शायद अपने मतलब के लिए तुझे मख्खन लगा रहा हैं.
रीना ; जब मख्खन लगाने के दिन थे. तब तो नहीं लगायां. तब बहूँ त अकडता था. अपनी खिचडी अलग पकाता था. अब बुढापे में शायद सुधर गया है.
अरूण : अरे मख्खन, तब भी मैं लगाता था. लेकिन लगाने का तरिका दुनीया से हटके था. तब तुझे समझ में नहीं आया. शायद यह हमारी बदकिस्मती थी. चलो भूल सुधार लेते है. अभी मौका फिर किस्मत ने दिया है. अब मौका जब तक है , तब तक मख्खन लगाने दो. सभी छेड- छाड के माहोल से आनंदी हुयें. सब खाने पर गये.
खाने पर चर्चा होती रही. कार्यक्रम को अंतिम रुप दिया गया था. सभी अभी थक चुके थे. सुबह जल्दी उठकर स्कूल भी जाना था. नाश्ता,चाय और सजावट का भी जायजा लेना था. सभी मित्र एक दूसरे से शुभ रात्री के संदेश के साथ चले गये थे.
रीना ; हैलो,अरे गुनवंता, मैं रीना बोल. देर रात को उसका फोन आया. हम लोग , गुनवंता के दातों में दर्द होने के कारण सौ नहीं पा रहे थे. उसके साथ हम भी जाग रहे थे. अरे मुझे ये बताव कि ये कार्यक्रम करने की कल्पना कैसे आई, इसके बारे में कौन बोलेगा ?.
गुनवंता : मुझसे बोला, अरे वो ये पुछ रही है कि ये कार्यक्रम करने की कल्पना कैसे आई, इसके बारे में कौन बोलेगा, मैंने कहा मेरा नाम बता दे. उसे ये भी बता दे कि श्रीकांत का संदेश भी आया है उसे भी पढना है. वो तु खुद पढेगा. उसे कह दे, कुछ और समस्या होगी तो सुबह हल कर लेगें. उसे कह दे कि जल्दी से सो जा. उसे कल फ्रेश भी दिखना है.
गुनवंता : अरे रीना, उसके लिए तु अरुण का नाम लिख ले. श्रीकांत का संदेश, मैं पढुंगा. तुझे से वो कह रहा है कि जल्दी –जल्दी सो जा. कल अच्छी फ्रेश भी दिखने को होना !. ऐसा अरुण कह रहा है.
रीना ; अरे वो बदमाश कि अभी भी छेड़ छाड़ करने की आदत गई नहीं है. उम्र बढ गई है. बाल भी सफेद हो चुके है. लेकिन दिल उसका बुढापे में शायद जवान हो रहा है. और उसका जवानी में बुढापे का दिल था. कल उसको देखती हूँ . हसकर उसने फोन रख दिया था. अंत भला तो सब भला.
