प्रकृति का श्रृंगार
प्रकृति का श्रृंगार


आज अचानक घनघोर बारिश के साथ जोरदार बिजली कड़क रही थी थोड़ी ही देर बाद बड़े-बड़े ओले गिरने शुरू हो गई समझ में नहीं आ रहा था प्रकृति क्या संदेश दे रही है।
शायद इंसान खुद को सर्वे सर्वा समझकर प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ कर रहा था उसकी भयावहता का सूक्ष्म रूप देखने को मिल रहा था।
साथ ही साथ मन संकल्पित होने को बाध्य हो रहा था कि कुछ समय या जीवन के कुछ पल प्रकृति के साथ बिताने पर हमें कितना सुकून और शांति मिलती है कहीं ना कहीं प्रकृति भी तो मां के जैसा दुलार देती है तो फिर क्यों ना हम सभी संतान मिलकर अपनी प्रकृति मां को बचाने के लिए संकल्पित हो।
इन्हीं सब सोच में खोई हुई थी कि अचानक से छोटी बेटी रेवा ने पूछा मां हम सभी आजकल बाहर क्यों नहीं जाते मैंने भावुक होकर प्रेम से अपनी बेटी को समझाया की रेवा जो हमारी प्रकृति है उसको भी कुछ क्षण कुछ पल चाहिए थे एकांत के हम सभी के कल्याण के लिए इसीलिए हम सभी को कुछ दिन के लिए सब कुछ छोड़ कर घर में बंद रहना है।
आज प्रकृति संवर रही है पुष्प नया नूर लेकर खिल रहे हैं हमसे नये रूप में मिलने के लिए प्रकृति भी श्रंगार कर रही है । नदियां अपना स्वच्छ जल लेकर कल कल कर रही है बरसों की दूषित हवा शुद्ध हवा में बदल रही है सचमुच प्रकृति श्रृंगार कर रही है।हम से मिलने के लिए अपने नए रूप में संवर रही है
प्रकृति खिल खिल कर
कर रही नित नया श्रंगार
खिली खिली उषा है देखो
संध्या लालिमा के साथ
पुष्पों में संचार हो गया
नए प्राणों का
पत्ते भी निखर रहे हैं
शुद्ध हवा के साथ।