Meera Parihar

Others

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परिवार -23-24-25

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भाग-23


   डाक्टर साहब के यहाँ सभी कुछ सुचारू रूप से चल रहा था । वीना अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से करती थी। उन्होंने उसे कालेज जाने की छूट भी दे रखी थी। लगभग एक महीना पूरा होने को आ गया। मोटीवेशन काम कर रहा था । चीजों को यथार्थ रूप में समझने की क्षमता विकसित हो रही थी वीना में। एक दिन सुबह दस बजे करीब विचित्र हुलिया बनाए एक साधु गेट पर खड़ा था। "अलख निरंजन" ....उसके हाथ में खप्पर, रुद्राक्ष जैसी मालाएं, गेरुआ वस्त्र,मुंह पर भभूत पुती हुई,लम्बा सफेद तिलक,कमर और पैरों में घुंघरू वाली पट्टियां बंधी हुई थीं।वह स्थिर खड़ा न होकर लेफ्ट,राइट ,लेफ्ट राइट कर रहा था जिससे घुंघरुओं की झंकार वातावरण में गुंजायमान हो रही थी। अलख निरंजन.... बड़ी दूर से आये हैं बच्चा ...साधु सेवा का पुण्य कमा लो .... भविष्य,भूत ,वर्तमान सब बता देते हैं,साधु का वचन है। 


आवाज सुनकर नेपाली लड़का गेट तक जाता है और बताता है..." बाबा ! आगे बढ़ो यहाँ डाक्टर साहब अपनी पढ़ाई कर रहे हैं,शोर हो रहा है। " कह कर उसने हाथ जोड़े और दस का नोट उसे देना चाहा....


..... " भिखारी समझ रखा है बाबले! हम हैं सिद्ध... रमते जोगी ... चातुर्मास साधु भोजन का प्रबंध करवाना है डाक्टर साहब से, उनसे कहो जाकर , हरिद्वार से साधु आए हैं। क्लीनिक डबल मुनाफा देगी और एक नयी कोठी बन जाएगी अगले साल देख लेना। बाबा का वचन है.....जय काली कलकत्ते वाली ,तेरा वचन न जाए खाली कहते हुए उसने खप्पर को मुंह से लगाया और उसमें रखा पदार्थ गटागट गटक गया। बम बम भोले.... "


...." बाबा ! बड़े अंतर्यामी हैं आप तो... मेरा भविष्य भी बता दो । कोई सबूत दो जिससे पता चले कि आप सिद्ध पुरुष हैं।" नेपाली लड़के ने कहा...


.... " अलख निरंजन! बाबा से सबूत मांगता है। दो सफेद कबूतर कोठी में कैद किए हैं । वीना नाम की लड़की को डाक्टर साहब की मिसिज की सेवा में लगा रखा है। मिसिज आज से ही अपने पैरों पर चलने लगेगी, व्हील चेयर छूट जाएगी। जा बता दे अपने मालिक को...ये बाबा का आशीर्वाद है "।


...... नेपाली लड़का झट ऊपर आता है ..." मैडम जी ! नीचे एक साधु आया है जो चातुर्मास भंडारे के लिए रुपया मांग रहा है। बहुत सी बातें बताई हैं उसने... मैडम जी ! आपके लिए कह रहा है व्हील चेयर छूट जाएगी। आप अपने पैरों पर खड़े होकर चलने लगेंगी।"


....." ऐसा कहा उसने..." ले ये हजार रुपए दे दे उसे जाकर। रसीद रखते हैं तो लेते आना।"


..... नेपाली लड़का हजार रुपए देता है। रुपए देखकर साधु कहता है ," इतना बड़ा नाम है और दक्षिणा हजार रुपए,बस..!" .."कोई बात नहीं,जैसी दक्षिणा वैसा फल " 


..... दक्षिणा मिलते ही वह झट से दरवाजे से अलग चला जाता है। नेपाली लड़का आवाज देता रहा जाता है,बाबा ! मेरा भविष्य.....वह रुपया देकर मैडम जी के पास आकर बताता है....कोई सिद्ध साधु लग रहे थे,भूत, भविष्य सब बता देते हैं। रसीद तो नहीं दी है। 


...." क्या -क्या बताया था उन्होंने ?" मैडम ने उत्सुकता से पूछा।


....." बता रहे थे कि हरिद्वार से आये हैं । सफेद कबूतर के बारे में भी मालूम है उन्हें और वीना के बारे में भी। "


...... " इसका मतलब मेरा अनुमान सही निकला, किसी ने ये कबूतर हमारी जासूसी करने के लिए ट्रांसमीटर लगा कर भेजे थे। निश्चित रूप से हमारे घर की रेकी की जा रही है। "


....." क्या मैडम जी ? वह साधु के वेश में हमारी जासूसी करने आया था! तब तो सतर्कता रखनी पड़ेगी।"


************


.....शाम को वीना जब मैडम के पास पहुँचती है तो वह उससे कहती हैं...." वीना अपने बारे में सभी बातें स्पष्ट और सही-सही बताना। देखो! मैं जो किताब लिख रही हूँ , उसमें हमारे -तुम्हारे जैसे रोगियों का मानसिक विश्लेषण लिखा जाएगा जिससे आगे आने वाले रोगियों को लाभ मिल सके।"


....." मैडम जी! जो कुछ भी है,सभी कुछ आपके सामने है। पड़ोस में आये लड़के के बहकावे में आकर मैं तंत्र मंत्र जानने के लिए एक बाबाजी के आश्रम उसके साथ चली गयी थी । उसके कुछ दिन बाद वह लड़का अपने कबूतरों सहित गायब हो गया। मुझसे कह कर गया था ,मेरा इंतजार करना । मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूँ ... मेरे दिल में भी सभी बुराइयों के बाद उसके लिए हमदर्दी जन्म लेने लगी थी। मैं अपनी मम्मी की डांट से इतना डरती थी कि गलती होने का कोई सबूत उनके लिए नहीं छोड़ना चाहती थी। कभी - कभी मेरे मन में उनके लिए विद्रोह जन्म ले लेता था और उनसे बदला लेना और नीचा दिखाने की योजना भी बनाया करती थी। "


....." किस तरह से वीना..?"


....." जैसे कि जब उनके द्वारा नमक की हांडी फैंकने से मेरे सिर पर खून निकला तो मैंने उसे निगल लिया। मैं चाहती थी कि इससे शायद मैं मर जाऊंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर पड़ोसी लड़के‌ ने बताया कि कबूतर का खून पीने से ताकत आती है ,तो मैंने उसे भी आजमाकर देखा , लेकिन कोई नुक्सान नहीं हुआ और मुझे धीरे धीरे उसकी आदत पड़ गयी क्यों कि मैं ताकतवर बनना चाहती थी । साथ ही महत्वपूर्ण भी , जिससे लोग मेरा आदर और सम्मान करें। लेकिन मैडम सच कह रही हूँ ... मैं अब उस दौर से बाहर निकल आयी हूँ। मैं खुद से और अपने परिवार से बेइंतहा प्यार करती हूँ। प्लीज़ मुझे काम पर लगाए रखिए। मैं हर काम कर सकती हूँ। झाड़ू पोंछा भी और आपका ख्याल भी "....ऐसा कहकर उसने अपनी गर्दन नीचे करली और अपनी आंखें अपनी हथेलियों से ढंक लीं।


....." कुछ याद करते हुए...मैडम ने कहा ....


......" मै प्रकट होता हूंँ , जब -जब धर्म की हानि होती है, तब -तब मैं आता हूंँ। जब- जब अधर्म बढता है तब- तब मैं आता हूंँ। सज्जन लोगों की रक्षा के लिए , दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूंँ, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूंँ और युगों- युगों में मैं जन्म लेता हूंँ।"


   ‌‌..." यह किसने कहा है वीना ?"


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥


...."यह गीता में कहा गया है श्री कृष्ण जी के द्वारा मैडम जी।"


..... " वीना इतने अच्छे संस्कार और ज्ञान के बाबजूद तुमने तामस वृत्ति कैसे अपना ली बच्चे ? "


..... " लालच ... मैडम जी , प्रसिद्धि की चाहत , बिना कमाए पैसे पाने की चाहत.... शक्ति की चाहत ... दूसरों को प्रभावित करने की ललक...फ्रश्ट्रेशन , रिवेंज, उत्तेजना, निसहाय होने की भावना, अपना अस्तित्व शून्य होने का भाव...दयनीयता बहुत कुछ था मन में। " 


......" ओह ! दुख है मुझे एक अच्छी लड़की को इस स्थिति में देखकर । भय मत रखो ... मुझे तुम्हारी जरूरत है। "


......" डाक्टर साहब की मिसिज से आश्वासन पाकर वह आश्वस्त हो गयी और उनसे पूछा, मैम ! मुझे क्या करना है। बताइए प्लीज़ "।


...... " वीना आज मैं प्रयोग कर के देखती हूँ। क्या बिना तुम्हारे सहारे चल सकती हूँ या नहीं... अगर लगता है कि कुछ गड़बड़ी है तो मुझे सम्भाल लेना प्लीज़।"


....." जी मैडम जी "


.... मैडम ने अपनी कमर पर बँधी हुई बैल्ट हटा दी और पलंग का सहारा लेकर धीरे - धीरे जमीन पर खड़ी हो गयीं। जिंदगी में बहुत से नाटकों का अंत करना पड़ता है वीना। जिस नाटक की शुरुआत हमने स्वयं की है तो उसे वास्तविक दिखाने के लिए नाटकीयता भी तो जरूरी है। क्या ख्याल है वीना?" डाक्टर साहब की मिसिज ने उसे रहस्यमय मुस्कान के साथ देखा।


..." यानि आप भी एक सब्जेक्ट हैं मेरी ही तरह मैम ? "


...." एक्जैक्टली "


....." मैम इन कबूतरों से क्या करती है.... आप ? "


....." ये कबूतर अच्छे हैं, शांतिदूत। अपने आप आये हैं, स्वयं चले जाएंगे। मुझे लगता है मेरी पुस्तक का आखिरी अध्याय पूरा हो गया है और अब हमें ये कबूतर पिंजरे से बाहर कर देने चाहिए पर बिल्ली द्वारा मारे जाने का खतरा है। तुम चाहो तो चिठ्ठी बांध कर भेज सकती हो इनके गले में। गीत भी गा सकती हो....कबूतर जा जा जा कबूतर .....


...." पहले प्यार की पहली चिट्ठी.....हो ओ हो "ना" "ना""ना"जाकर कह आ."... मीना ने जोड़ा....

क्रमशः


भाग-24



..... आखिर वह दिन आ गया जब डाक्टर मंशा जी अपनी पुस्तक "मंशा की मंशा" अपने अंतिम चरण में पहुँच गयी थी। उन्होंने वीना को अपने पास बुलाया और उससे पूरी पुस्तक पढ़ने और उसकी गलतियां नोट करने के लिए कहा। 

वीना ने यह कार्य ख़ुशी -खुशी अपने हाथ में ले लिया। उसे अच्छा लगा कि मैडम ने उसे इस काबिल समझा। उसने यह काम रात दो बजे जाग कर किया फिर भी ऐसा नहीं लग रहा था कि काम पूरा हो गया है। उसे आज यह समझ में आ रहा था कि पुस्तक लिखने का कार्य और उसे पाठक तक पहुंचने की यात्रा कितने अलग अलग दौर से होकर गुजरती है और तथ्य जुटाने में अन्य पुस्तकें देखने की भी जरूरत पड़ती है। सचमुच दुनिया कितने वर्गों में बंटी हुई है। एक ओर खाने -पीने तक ही अपनी दुनिया समझ लेते हैं कुछ लोग तो दूसरी ओर किताबें लिखकर समाज और स्टूडेंट्स को अपना योगदान मौन रूप से देकर अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं।


.....पास बैठी टीना भी जाग ही रही थी। उसने पूछा, "ये क्या कर रही हो दीदी?" 


......" बस कुछ न पूछ बहिनी ....यूँ समझ ले ,किताब लिखने की बारीकियां सीख रही हूँ। ज्ञान का क्षेत्र कितना आकर्षक है और ढेर सारे घरेलू कार्यों में अपनी समस्त ऊर्जा लगा देने से भी हमें अपनी वह खुशी नहीं मिलती जो मनपसंद कार्य करने से मिलती है।"


....." तब तो एक पुस्तक लिखने की शुरुआत कर देनी चाहिए आपको भी।" 


....."वही मैं भी सोच रही हूँ,पर डाॅ वीना बनने के लिए एक लम्बा रास्ता तय करना होगा। अभी तक तो मेरा ध्यान सिर्फ इसी बात पर है कि मुझे यह माहौल मिला रहे जिससे मैं अपनी आगे की पढ़ाई कर सकूँ। लेकिन चिंता न कर , कोई न कोई रास्ता अवश्य मिलेगा। मुझे पूरा विश्वास है।"


**********

...... डाक्टर मंशा जी की पुस्तक का विमोचन होटल गगन में होना तय हुआ है। शहर के नामी गिरामी प्रैक्टिसनर, नेता,व्यवसायी , स्टूडेंट्स आमंत्रित थे।

अपने वक्तव्य में डाक्टर मंशा जी ने सभी आगंतुकों का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया...कहा, मित्रो ! अभी तक आप सभी मुझ मंशा को व्हील चेयर पर चलने वाली डाक्टर साहब की पत्नी के रूप में जानते हैं। सोच रहे होंगे... यह अपने पैरों पर चलने वाली मंशा कौन है ? सच मानिए व्यक्ति अपने बनाए खोल में जीने का अभ्यस्त हो जाता है। हम में से अधिकांश लोग दोहरी जिंदगी जी रहे होते हैं। सबकी अपनी परेशानियां होंगी। अपने विचार होंगे, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं होंगी। मेरी भी थीं... मैं अपने पति डाक्टर साहब से प्रेम करती थी। साथ ही प्रतिस्पर्धी भी थी, और उनके प्रेम की अपने प्रति सच्चाई को भी परखना चाहती थी। हम दोनों ही एक ही विषय की पढ़ाई कर रहे थे,मगर डाक्टर साहब की परसेंटेज हमेशा मुझसे ऊपर आती थी। बराबरी करने में असमर्थ होने पर मैंने अपने लिए सुरक्षा कवच तैयार कर लिया। मुझे गंभीर रूप से रीड की हड्डी में दर्द होने का बहाना बना कर बिस्तर पर रहने का दिखावा भी करना था जिससे मैं अपनी पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाती हूँ का बहाना मिल गया मुझे और डाक्टर साहब के प्रेम की परीक्षा भी हो गयी। कोई दो राय नहीं..वे अपनी परीक्षा में यहाँ भी अब्बल आ गये। प्रेम आज के दौर में शरीर की जरूरत का पर्याय बन गया है और उसे वैसी ही मान्यता हमारे समाज ने दी है।यह तो एक अहसास है जो सीधे हमारे हृदय में अवस्थित हो जाता है और हमारी धड़कनों में आखिरी सांस तक रवां रहता है। मैं अपने पति की हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मुझे वैसे ही स्वीकार किया जैसी मैं थी ...हाँ मुझे खेद है कि मैं अपनी परीक्षा में खरी नहीं उतर सकी। मैंने प्रेम को एक सब्जेक्ट बना दिया जिस पर डाक्टर साहब ने बढ़िया रिसर्च की और मुझे भी अपने बराबर खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी पुस्तक मेरे हर पहलू से रूबरू करवाएगी और हमारे समाज में व्याप्त ऐसे बहुत से विकारों, विचारों पर प्रकाश डालेगी जिससे मनोवृत्तियों, मनोविकारों का पता चलेगा। हर प्रकार के भय को, प्रवृत्तियों को विविध मनोरोगियों पर रिसर्च करके यह पुस्तक लिखी गयी है। 

उम्मीद है सभी को यह पसंद आएगी। एक बात और ...जो भी यहाँ अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं,कर सकते हैं।


....." तभी वीना ने अपने विचार व्यक्त करने के लिए समय मांगा। हाजिर सभी संभ्रांत गुणी जनों को वीना का हाथ जोड़कर नमस्कार।

.....मेरी स्थिति के लिए भी मैं ही जिम्मेदार थी लेकिन मैंने गलत राह पकड़ ली और उसे ही सही समझ कर आगे बढ़ती जा रही थी कि मेरे पिता जी मुझे डाक्टर साहब के पास ले आए और मेरी जिंदगी सामान्य हो गयी। अन्यथा मैं अपने ही बनाए विभिन्न चक्रव्यूह में फंसती जा रही थी, लेकिन अब मैंने चीजों को उनके मूल स्वरूप में समझना शुरू कर दिया है। हाँ मैं स्वीकार करती हूँ कि लल्लन जो कि एक तांत्रिक का शिष्य था, उसके सम्मोहन में समर्पण की भावनाएं पल्लवित होने लगीं थीं। वह सब बीते जमाने की बात हो गयी हैं अब। कोई कहता है कि वह जीवित है तब भी मैं उसे अपनी स्मृति से मिटा दूंगी। प्यार होता तो शायद यह मुमकिन नहीं होता... लेकिन प्यार हमारे बीच शायद कभी था ही नहीं। हम एक दूसरे की जरूरत बन गये थे और उसी जरूरत की पूर्ति के मिलन को हम प्रेम समझने लगे थे। 


......." मैडम जी! मेरा प्रश्न यह है, किसी आडम्बर को हम कितने लंबे समय तक आगे बढ़ा सकते हैं ? "


......" उतने समय तक ,जब तक हम भय को नहीं जीत लेते या फिर उसका परिणाम हमारे सामने नहीं आ जाता। समझ लीजिए, जैसे बिल्ली घर से बाहर निकलते समय हमारा रास्ता काट जाती है। मान्यतानुसार उस दिन हमारे सभी काम आसानी से हो जाते हैं जैसे एटीएम मशीन से पैसे लेने गये तो मिल गये, पासबुक में एंट्री हो जाती है, बिजली के बिल के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता है तो हम भूल ही जाएंगे कि बिल्ली हमारा रास्ता काट गयी थी।"


....." मैडम जी दान के विषय में आपकी क्या राय है? "


......" अवश्य करना चाहिए, अगर हम किसी की मदद कर सकते हैं तो इससे अच्छी बात कोई हो ही नहीं सकती। मगर जब यही दान धोखाधड़ी के लिए दिया जा रहा हो ,काले को सफेद करने के लिए किया जाता है तो उसका कोई औचित्य नहीं रह जाता है। कबीर दास जी दान देकर या लेकर तो ख्याति प्राप्त नहीं किए हैं। "


......" भूत प्रेत में विश्वास करती हैं आप ? " एक डाक्टर साहब ने पूछा..


....." देखिए यह धारणा कि भूत रात में निकलते हैं या रास्ते में दिखाई देते हैं। इसका सीधा संबंध हमारी मानसिक अवस्था से होता है। मान लीजिए किसी ने यह खबर फैला दी है कि अमुक पेड़ पर भूत रहता है तो हम उस पेड़ के पास उसी अवधारणा को लेकर जाएंगे। तब अगर उस पेड़ की पत्ती भी गिरेगी तो हमें भूत के द्वारा गिराई गई नजर आने लगेगी। किसी पक्षी का बोलना या सांप का दिखाई देना,सभी कुछ भूत का किया लगेगा। " मैंने कहा कि आपके ऊपर चुड़ैल का साया है... तब आप यह जरूर स्वीकार करेंगे, क्योंकि कहीं न कहीं आपको विफलता अवश्य ही मिली होगी और उस असफलता का श्रेय आप चुड़ैल के सिर पर रख कर निश्चिंत हो जाएंगे और हर हाल में चुड़ैल के कारनामें पढ़ कर उन्हें घटित भी करेंगे जिससे चुड़ैल का साया सही साबित हो सके। सिम्पल सी बात है...


...... आज का कार्यक्रम यहीं समाप्त करते हुए सभी आगंतुकों का धन्यवाद करती हूँ। आग्रह भी कि पुस्तक के सम्बन्ध में अपने विचार मेरे ईमेल पर अवश्य शेयर कीजिए।



क्रमशः 



वैम्पायर लव स्टोरी भाग -25


विमोचन कार्यक्रम के पश्चात सभी घर पहुंच जाते हैं। डाक्टर मंशा जी के नव अवतार से सभी अचम्भित थे। स्वयं डाक्टर साहब भी ... यद्यपि वे जानते थे लेकिन उन्होंने मंशा जी के मुख से सुनना चाहा। "यह सब परिवर्तन कैसे हुआ डियर !

हमें भी तो मालूम हो जरा। " 


.... मंशा जी मौन रहकर ही सब कुछ कह देना चाहती थीं। वह बस मुस्कुरा भर दीं। नेपाली लड़का पास में ही खड़ा था। उसके पेट में मरोड़ें उठ रही थीं। उसने कहा," मैं बताऊं डाक्टर साहब , मुझे पता है।"


.... उन्होंने कहा " हाँ हाँ , बताओ ना ।"


......"डॉक्टर साहब ऐसा है,एक दिन पहुँचे हुए, साधु महात्मा आए थे । उन्होंने कहा था... कि "आपकी मैडम अपने पैरों पर चलने लगेंगी । उन्हीं के आशीर्वाद से यह संभव हुआ है।"


 मैडम मनसा ने कहा," हांँ डॉक्टर साहब ! हम सभी बीमारों को कोई ना कोई बहाना तो चाहिए ही होता है और मुझे भी अपने इस दर्द से छुटकारा पाना था । ईश्वर की कृपा से साधु बाबा ने जो बात कही थी ,उसे ही वास्तव में मैंने सही अवसर समझ कर समस्त आडंबर उतार कर खूंटी पर टांग दिए हैं। अब मैं अपने बनाए दायरे से बाहर आ चुकी हूँ और सामान्य जिंदगी जीना चाहती हूँ। फिर भी मैं आपसे जानना चाहूंगी कैसी लगी मेरी एक्टिंग ? क्या मैं उस में सफल रही ? या आपने पहले ही समझ लिया था"। 

 

.....डॉक्टर साहब मुस्कुरा कर रह गए और उन्होंने कहा, "एक्टिंग से बाहर की दुनिया में आपका स्वागत है डाक्टर मंशा जी!"


.... "आपने मेरे लिए तीमारदार मेरे लिए जो तीमारदार लगाए हैं,उनका क्या करूँ?"


....." ड्रामा समाप्त हुआ तो पात्र भी अपने- अपने घर ही जाएंगे।" 


...." मगर मुझे लगता है वीना को हमारी जरूरत है। वह पढ़ना चाहती है और उसकी निगरानी भी हम कर सकेंगे।

अगर किसी एक का जीवन हमारी मदद से बन सकता है तो हमें यह कार्य ख़ुशी -खुशी कर लेना चाहिए।"


....." पेशेंट के पर्चे आदि बनवाने के लिए या काउंटर पर रहने के लिए रख लेंगे उसे।" डाक्टर साहब ने आज शाम को भी बच्चों के लिए एक क्लास रखी थी जिसका विषय था "एलोडाॅक्साफोबिया" बड़े से स्क्रीन पर बहुत से मनोरोगियों के विचार और थैरेपी के विषय में था यह लेक्चर...


....." दुनिया का सबसे बड़ा रोग है ,"मेरे बारे में क्या कहेंगे लोग ?" यह एक प्रकार का मानसिक विकार है जिसमें लोगों को इस बात का भय लगा रहता है कि दूसरे उनके बारे में क्या सोचते होंगे। कहीं लोग मेरे बारे में गलत धारणाएं तो नहीं बना रहे हैं। कहीं उसके कपड़ों को लेकर या रंग रूप को लेकर पीठ पीछे बातें तो नहीं करते हैं। यद्यपि ऐसे व्यक्ति अपने बनाए दायरे से बाहर निकलना चाहते हैं मगर चाह कर भी वे अपनी बनायी सोच से बाहर नहीं निकल पाते हैं। जो बच्चे हमेशा घरवालों के कठोर नियंत्रण या निगरानी में रहते हैं। वे भी हमेशा डरे हुए और समाज के सामने आने में हिचकते हैं। "एलोडाक्सोफोबिया" कहा जाता है इसे। यहाँ सोचने की बात यह है कि रोगी अपने बारे में स्वयं ही राय बना लेता है और पूरी ऊर्जा यही प्रमाणित करने में निकल जाती है कि सामने वाला व्यक्ति जरूर उसके ही बारे में सोच रहा है।"


....इस तरह डाक्टर साहब विविध रोगियों के विविध पहलुओं को अपने स्टूडेंट्स से परिचय करवाते थे और उन्हें मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया करते थे। एक उदाहरण उन्होंने बताया कि एक इंजीनियर छात्र ने अपने जीवन को सिर्फ इसलिए दांव पर लगा दिया कि उसे यह भ्रम हो गया था कि उसके पिता के पास बहुत पैसा है और उन्होंने उसके खाते में दस लाख रुपए जमा कर दिए हैं। उसके दोस्त उससे कहा करते थे कि" तुझे काम करने की क्या जरूरत है...तू तो बड़े आदमी का बेटा है। खूबसूरत भी इतना है कि फिल्मों में काम मिल जाएगा ।" यह बात उसके दिमाग पर असर कर गई और उसने अपनी सभी डिग्रियां आग के हवाले कर दीं और कहीं पर भी जाॅब करने से साफ इंकार कर दिया। नतीजा आए दिन के झगडे़ और विवाद होने लगे। कुछ भी कहने पर यही बात कि पहले मेरा दस लाख रुपया ब्याज सहित चाहिए, मुझे बम्बई जाना है। माता पिता भी यही कहकर उसके दोष को छुपाने लगे कि किसी ने लड्डुओं में कुछ खिला दिया है जिससे उनका बच्चा ऐसे व्यवहार करने लगा है। उन्होंने अखंड पाठ, रुद्राभिषेक आदि कराया, तांत्रिक से पूजा करवायी लेकिन मनोचिकित्सक के पास इसलिए नहीं लेकर गये कि बच्चे पर मनोरोगी होने का स्टिगमा लग जाएगा। परिणाम स्वरूप पूरा जीवन ऐसे ही निकाल दिया।





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