Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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परिचय - हेमेंद्र कुमार श्रीवास्तव

परिचय - हेमेंद्र कुमार श्रीवास्तव

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परिचय - हेमेंद्र कुमार श्रीवास्तवआपका जन्म बंडा (सागर) के ग्रामीण एवं कृषक परिवेश वाले परिवार में 22 जून 1960 में हुआ था। आप अपने माता-पिता के दो पुत्रों में छोटे बेटे थे। आपके पिता जी शिक्षक थे। वे सरल स्वभावी एवं उच्च विचारों के धनी थे। उन्होंने आप सहित अपने बेटों का लालन-पालन, दोनों में नैतिक बोध को प्रमुख रखते हुए किया था। 

आपने पढ़ने की रुचि होने से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था। तत्पश्चात वर्ष 1984 में आपने जूनियर इंजीनियर (प्रशिक्षु) के रूप में म.प्र. विद्युत मंडल में सर्विस ज्वाइन की थी। 

आरंभिक कुछ वर्षों की नौकरी सागर/करेली आदि स्थानों में करने के बाद आपका स्थानान्तरण (Transfer) जबलपुर हो गया था। इस तरह एक बार जबलपुर आ जाने के बाद आपकी कर्तव्य निष्ठा, स्वच्छ कार्यशैली एवं कर्मठता के बल पर, बाद के 30 से अधिक वर्ष में आपने अपनी सेवाएं जबलपुर के विभिन्न कार्यालय में ही दीं हैं। 

मेरा आपसे परिचय वर्ष 2004 में हुआ था। मुझे सीबीजी टीम का हिस्सा होकर कर्तव्य पालन का आदेश मिलने के बाद जब मैं वहाँ पहुँचा, आप पहले से ही इस टीम के सदस्य थे। 

तत्पश्चात जून 2004 से अगस्त 2018 तक के लंबे समय में आप और मैं अपने विभागीय कर्तव्य पालन साथ साथ करते रहे थे। हमारे इसी साथ में, मैं आपके व्यक्तित्व और विशेषताओं से परिचित एवं प्रभावित हुआ था। 

आप लंबे कद के साथ ही अच्छे डील-डौल वाले व्यक्ति हैं। मेरी अपेक्षा आप कम बोलने वाले तथा सामान्यतः सौम्य-शांत रहने वाले सज्जन व्यक्ति हैं। हो सकता है जो कम समय के लिए आपके संपर्क में रहा हो वह यही जानता हो कि आप सौम्य एवं मृदु भाषी व्यक्ति हैं। किंतु हमारे लंबे समय के साथ में, कुछ अवसरों पर मैंने पाया था कि किसी बिल्कुल ही गलत बात पर आपका क्रोध अनियंत्रित हो जाता था। तब आपका मुख क्रोध से तमतमा जाता और स्वर बुलंद हो जाता था। 

यद्यपि मैंने आपको तब भी अपशब्दों का प्रयोग करते हुए सुना-देखा नहीं था मगर ऐसे अवसरों पर आप अपनी बात बुलंद स्वर में कहने का साहस रखते थे। यहाँ यह भी लिखना उचित है कि यद्यपि आप अपने वरिष्ठ साथियों एवं बॉस का यथोचित आदर करते थे, मगर गलत बात के लिए उनके भी किसी दबाव को स्वीकार नहीं करते थे। 

2009 में इस सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट टीम के, टीम लीड का दायित्व मुझे दिया गया था। उसके बाद आपका जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर पद पर प्रमोशन (पदोन्नति) का आदेश हुआ था। 

सामान्यतः जिस कार्यालय में हम पदस्थ होते हैं, पदोन्नति पर नए दायित्व के निर्वहन किए जाने के लिए हमारा (एक ऑफिसर का) अन्यत्र कार्यालय में स्थानांतर करने के आदेश किया जाता है। आप इसी कंप्यूटर कार्यालय में आगे भी काम करने के इच्छुक थे। आपने इस हेतु मुझसे कहा था। 

हमारे बॉस, कार्यपालक निदेशक महोदय जी से, उस समय मेरे संबंध अच्छे नहीं थे। फिर भी यह मैं जानता था कि आपके इस कार्यालय में रहने की इच्छा से अधिक हमें, आपके कार्य एवं सहयोग की आवश्यकता थी। हम ही आपके अन्यत्र ट्रांसफर को सहन करने की स्थिति में नहीं थे। हम जानते थे कि आपके ज्ञान एवं गुण वाला सब्सिट्यूट हमें नहीं मिलेगा। 

मैं आपको साथ लेकर कार्यपालक निदेशक महोदय से मिलने गया था। मैंने उन्हें वस्तु स्थिति बताई थी और आपकी प्रमोशन के बाद भी पोस्टिंग अपने ही कार्यालय में करवाना सुनिश्चित करने के लिए अनुरोध किया था। बॉस ने हमारी आवश्यकताओं को समझा था। तब आपकी नए डेजिगनेशन के साथ पोस्टिंग यथावत रही थी। 

आपने इस कार्यालय में आने के पूर्व काफी समय पश्चिम संभाग जबलपुर में सेवाएं दीं थीं। उन्हीं वर्षों में, म. प्र. विद्युत मंडल में पहले आई. ए. एस., सी एम डी जुलानिया साहब आए थे। वे ऐसे तेजतर्रार व्यक्ति थे कि उनसे मिलते हुए हमारे अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी थर्रा जाते थे। 

ऐसे जुलानिया साहब ने, एक दिन आपको मीटर वाचन डायरी सहित बुलवाया था। वास्तव में बड़े भार वाले विद्युत संयोगों (Connections) , जिनसे मंडल को राजस्व अधिक मिलता था, आपको अन्य कार्यों सहित उनकी भी जाँच एवं मासिक रीडिंग करना होती थी। 

आपकी यूँ पेशी होने को लेकर आपके बॉस कार्यपालन/अधीक्षण यंत्री घबराए हुए थे। इनके विपरीत, आपको अपने निष्ठापूर्वक किए काम पर विश्वास था। आप निर्भीक, डायरी सहित जुलानिया साहब के सामने उपस्थित हुए थे। जुलानिया साहब द्वारा मीटर रीडिंग डायरी के गौर से पृष्ठ दर पृष्ठ अवलोकन किए जाने पर भी कोई त्रुटि नहीं मिली थी। 

परीक्षा की उस घड़ी में आपकी कोई गलती नहीं पाने से, विभाग में आपकी छवि उज्जवल हुई थी। 

इन हाउस सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट का सीबीजी ऑफिस का निर्मित किया जाना, जुलानिया साहब का ही एक ड्रीम प्रोजेक्ट था। जब इस टीम में लिए जाने हेतु आपके नाम का प्रस्ताव उनके समक्ष गया, तब उन्होंने आपको इस टीम का हिस्सा बनाया था। 

2004 से 2009 तक इस टीम के मेंबर के रूप में हम साथ काम करते रहे थे। 2009 में मेरे टीम लीड का दायित्व ग्रहण करने के बाद से, आपसे मेरा संबंध, मातहत एवं बॉस का हो गया था। तब हमारी (मेरे सहित) 7 मेंबर की टीम में, किसी एक की भी अनुपस्थिति, काम को प्रभावित करने वाली होती थी। 

टीम सदस्यों के अवकाश पर होने का प्रभाव, मुझ पर मानसिक दबाव/तनाव का कारण होता था। इस पर भी मैं अपने टीम मेंबर के अवकाश आवेदनों को उदारता से स्वीकृत किया करता था। तब कभी कभी ऐसा भी होता था कि कार्यालय में, मैं एक दो सदस्यों के साथ या कभी अकेला ही रह जाता था। 

आप ऐसे समय में मेरा चिंतित और मानसिक दबाव में होना अनुभव कर लेते थे। दीपावली के बाद का कार्यदिवस प्रायः ऐसा होता था जब ऑफिस में मैं अकेला उपस्थित होता था। उस दिन आप स्वयं भी अपने इष्ट ‘चित्रगुप्त देव जी’ की पूजा आराधना के लिए अवकाश लेते थे। ऑफिस में मैं अकेला हूँ यह जानने पर दोपहर बाद आप ऑफिस आ जाया करते थे। साथ ही मेरे लिए मिष्ठान एवं नमकीन भी लाते थे। 

ऐसे ही एक अवसर पर आपने मुझसे कहा था - सर, हम सभी को आप पर कार्य की अधिकता एवं मानसिक दबाव को समझना चाहिए। एक ही समय में सबका यूँ अवकाश लेना अच्छी बात नहीं है। 

आपकी यह मेरे लिए हितैषी भावना मैं जानता था। कभी कभी आप स्वयं भी साइटिका के कष्ट में अवकाश लेने के लिए बाध्य हो जाते थे। आप पर मेरे उत्तर का गलत प्रभाव नहीं पड़े, इस हेतु मुझे उत्तर सोच समझकर देना था। उस दिन मैंने आपसे कहा था - श्रीवास्तव साहब, मैं वरिष्ठ पद पर कार्यरत होने के साथ आप सबसे अधिक वेतन भी पाता हूँ इसलिए यह मेरा कर्तव्य है कि ऐसी स्थिति में भी मैं विभाग को तथा आप सभी को अपनी अनवरत सेवाएं प्रदान करूं। 

आपने बॉस अन्य प्रकार के भी देखे थे, मेरे उत्तर पर आप अविश्वास से मेरे मुख के भाव देखते हुए, यह समझने का प्रयास कर रहे थे कि यह मेरे, मात्र शब्द थे या मैं ऐसा ही सोचता भी था। 

आपके गुस्सैल होने के बारे में मैंने ऊपर लिखा है, आपके क्रोध की लिखते हुए मैं यहाँ एक उल्लेख करूँगा कि 2013 में एक दिन हम सब साथ ऑफिस में थे तब आपके मोबाइल पर किसी अपरिचित व्यक्ति का कॉल आया था। आरंभ में जब आपकी उससे बात हो रही थी तो किसी का ध्यान आप पर नहीं था। कॉल पर बात करते हुए कुछ पलों में ही आपका स्वर अचानक ऊँचा हुआ था और आपका मुख क्रोध से तमतमा गया था। आप कॉल करने वाले से पूछ रहे थे - “तू अपना नाम बता तुझे तेरे घर में ही समझा दिया जाएगा”। 

शायद कॉल करने वाले को आपकी क्षमता का ज्ञान नहीं था। उसने चुनौती जैसे देते हुए, आपको अपना नाम बताया था। नाम जान लेने के बाद आपने उसका कॉल डिसकनेक्ट किया था और तुरंत ही किसी अन्य को कॉल लगा कर बात की थी। अब जब आप बात कर रहे थे तो आपका स्वर स्वतः ही सामान्य हो गया था। 

इसके बाद हमारे अन्य साथी और मैं, आपके पास यह पता करने गए थे कि आखिर इतना गुस्सा करने की बात क्या हुई थी। 

आपने बताया था कि कोई यह रॉंग नंबर कॉल था जिसमें बात करते हुए दूसरी ओर से अपरिचित भद्र पुरुष ने, आपसे अभद्र शब्दों एवं खराब लहजे में बात की थी। आपने हमें यह भी बताया था कि संयोग से वह कॉल आपके गृह स्थान बंडा से ही आया था। इसके बाद आपने अगले कॉल में उस व्यक्ति को सबक सिखाने का प्रबंध कर दिया था। 

लिखना नहीं होगा कि उस (भद्र?) अभद्र व्यक्ति की मिजाजपुरसी की घर पहुँच सर्विस आपने उसके घर में ही सुनिश्चित कर दी थी। 

अप्रैल 2014 में आपको सीने में असहनीय दर्द हुआ था। अस्पताल में भर्ती करने पर आपको हृदय में दो स्टंट डालने का परामर्श मिला था। आपने नागपुर में यह सर्जरी करवाई थी। 

इस कष्ट के पूर्व तक, आप खाने-खिलाने के बहुत शौकीन थे। डॉक्टर के परामर्श के बाद आप सिर्फ खिलाने के शौकीन रह गए थे। आपके पिता जी का देहांत उनकी 56 वर्ष की अल्प आयु में हुआ था। आपने अपनी इस अनुवांशिकी के कारण अपनी जीभ पर दृढ़ नियंत्रण किया था। तब से आप तली हुई भोज्य सामग्री एवं मिठाई से सख्त परहेज करने लगे थे। यह परहेज इतना होता था कि आप एक मंगोड़ा या मिठाई का एक टुकड़ा खाने को भी तैयार नहीं होते थे। 

आप कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के ज्ञान के साथ ही हमारी विभिन्न श्रेणियों की विद्युत दर वाली जटिल टैरिफ प्रावधानों की सूक्ष्म बातों के अच्छे ज्ञाता थे। सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन के निर्मित करने के आरंभिक समय से हर वर्ष बदलती टैरिफ को सॉफ्टवेयर में सही प्रकार से कोडिंग में एवं उसके रिलीज़ करने के पूर्व परीक्षण में हमेशा आपकी भूमिका महत्वपूर्ण रहती थी। 

आप के संपूर्ण निष्ठा से दिए गए योगदानों को, अंततः कंपनी मैनेजमेंट ने पहचाना था एवं वर्ष 2015 के गणतंत्र दिवस के समारोह में, आपको मैडल एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया था। 

मैंने आपकी मैडल वाली एक तस्वीर पर तब लिखा था - “जिनको सम्मानित करते हुए सम्मान स्वयं सम्मानित होता है, उनके साथ मैंने भी खिंचाई एक तस्वीर”। 

आपका परिचय कुछ घटनाओं के उल्लेख से उत्तम एवं सही बनता है। इसी तारतम्य में, मैं एक और बात को लिखना उचित मानता हूँ कि आप अति धर्म श्रद्धालु व्यक्ति हैं। आप समय समय पर कई तरह के धार्मिक आयोजन/ पाठ/ अनुष्ठान अपने निवास पर करवाते हैं। ऐसे अवसरों पर पंडित एवं पाठ करने वालों को आप उनकी अपेक्षित भरपूर दक्षिणा देते हैं। 

आपकी इस श्रद्धा का कुछ बार कोई पंडित, अधिक लाभ भी आपसे लेते हैं। हममें से कोई साथी जब अधिक दान राशि के बारे में आपसे कहता था तो आप उसे अनसुना कर देते थे। कदचित् आप सोचते थे कि धार्मिक पाठ/ अनुष्ठान, जिससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है की, ये परंपराएं चलाए रखने में हमारे सहायक, इन पंडितों के भी परिवार होते हैं। उनके जीवन यापन के लिए इस तरह के दान-दक्षिणा उन्हें दिया जाना आवश्यक होते हैं। 

अस्सी के दशक में लौट कर आपकी लिखूँ तो आपके विवाह के बारे में लिखना उचित होगा। तब यथा समय आपका विवाह हुआ था। आपके श्वसुर जी स्वयं भी म.प्र. विद्युत मंडल में डिप्टी सेक्रेटरी थे। 

आपको भगवान ने इस जीवन में सभी कुछ अच्छा दिया था, यथा - सरलता, सज्जनता, विवेक, सदबुद्धि, दृढ़ता, परोपकारी प्रवृत्ति और इन से निर्मित एक विश्वासपात्र व्यक्तित्व। 

मुझे नहीं पता है कि आप स्वयं क्या सोचते हैं मगर मैं भगवान से, कटु यथार्थ और आपके लिए, एक शिकायत रखता हूँ कि उन्होंने आप के साथ अन्याय किया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप को भगवान ने निःसंतान जीवन बिताने के लिए बाध्य किया है। 

मैं सोचता हूँ आपके भी बेटा/बेटी होते तो आपके जैसे सद्गुणों से परिपूर्ण इस देश को एक-दो सच्चे नागरिक मिलते। 

आप कर्मनिष्ठ, धर्मनिष्ठ एक कर्मठ और सज्जन पुरुष हैं। आप बागवानी का शौक रखते हैं। आपके बंगले में पारिजात, तुलसी, नीबू के वृक्ष/पौधों के साथ अनेक प्रकार के पुष्प देने वाले पौधे भी हैं। आपका फ्री समय इन पर जाता है। यही करते हुए आप शांत-निराकुल रहते हैं।  

इसे मैं अपना भाग्य मानता हूँ कि मेरे जीवन में एक लंबी अवधि मुझे आपका साथ मिला है। 

आप लगभग 38 वर्ष की सेवा पूर्ण करने के बाद कल 30 जून 2022 को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। 

आपके इस परिचय लेखन के माध्यम से मैं अपनी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रकट करता हूँ - 

आप और भाभी जी को ईश्वर दीर्घ परस्पर साथ और स्वास्थ्य का वरदान दे। आप अपनी इसी सज्जनता से हम सभी के बीच अपनी रुचि से अब बाधा रहित जीवन व्यतीत करें। जीवन का संपूर्ण आनंद लेते हुए अपने सामाजिक दायित्व भी निभाएं। 



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