प्रेमालय

प्रेमालय

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सरोज अपने-आप से लड़ रही थी,कारण था उसका बेटा रवि। बचपन में रवि बड़ा शांत बच्चा था लेकिन वह जबसे मुम्बई आया था तबसे अपने दोस्तों की संगत में बिगड़ रहा था। खर्चिला भी बहुत हो गया था और बात-चीत करने का ढंग भी उसका बदल गया था। कॉलेज के मित्रों के साथ आर्टी-पार्टी भी शुरू हो गई थी,शायद पीने भी लगा था।

पति अच्छी नौकरी में थे इसलिए पैसे की कोई कमी न थी पर, लक्ष्मी जी कहती हैं न,"पहले दूँगी धन, फिर देखूँगी मन,छीन लेने में कितना क्षण?"सरोज के मन में यह कहावत बैठ सी गई थी पर,पति तो बिल्कुल उलट थे।शाहखर्च,और खाने -पीने बाले।खुद भी खाते और यार -दोस्तों को भी मौज कराते थे इसलिए सबके चहेते भी थे। सरोज अपने बेटे के इस बदलाव में ज्यादा दोषी अपने पति को मानती थी क्योंकि बड़े होते बच्चे को माँ से ज्यादा पिता का साथ जरूरी होता है।पर, उसके पति साथ की जगह उसके हाथों में ढेर सारा पैसा थमा देते, नसीहत की जगह बढा़वा देते।वह समझाती तो बेटा उसकी खिल्ली उड़ाता।उसे माँ के उपदेश बिल्कुल अच्छे न लगते। धीरे-धीरे उसने बाप-बेटे दोनों से बात करना छोड़ दिया। अपने आप को दूसरे-दूसरे कामों में लगा लिया।

पति में एक बात अच्छी थी वो कभी कोई रोक-टोक न करते न पैसा देने में आनाकानी ही करते।इधर उसके बेटे की एक दोस्त बराबर घर आती वे दोनों एक कमरे में बंद हो जाते घंटो।वह गुस्से से कांपती रहती। बेटा भी हरदम उसी की तरफदारी करता।

 

दो दिनों से बेटा घर पर नहीं था, कहीं घूमने गया था जब वह आया तब अपने हाथों में दो बड़े-बडे़ बैग थामे हुए था जो उससे उठाये नहीं जा रहे थे।वह ऐंठ कर रह गयी। घर के लिए तो वह एक किलो आलू भी नहीं लाता था फिर इतने बड़े-बड़े बैग?।तभी देखा हाथ में पर्स डुलाती उसकी दोस्त चली आ रही है। गुस्से में आग-बबूला होकर वह अंदर के रुम में चली गई। थोड़ी देर के बाद बेटे ने चाय पीने की इच्छा जाहिर की। मन मारकर उसने तीन कप चाय बनाई और बेटे को बुलाया।बेटे की दोस्त ने चाय की कप पकड़ी और बात-चीत का सिलसिला शुरू किया। उसने मुझसे कहा ,"आंटी! मेरी मम्मी ने अभी से वृद्धाश्रम में कमरा बुक करवा लिया है"। मैंने कहा," क्यों ?"उसने कहा,"मम्मी कहती हैं वो किसी पर भार नहीं बनना चाहती।"मैंने कहा ,"तुम्हारी नानी को तो वो देखभाल करती हैं फिर तुम क्या अपनी माँ को नहीं करोगी?"उसने कहा पर, "मम्मी तो ऐसा ही कहती हैं।"

मैं उसके इशारों को समझ गई थी और मैं अपने गुस्से पर काबू न रख पायी। मैंने जोर से चिल्लाकर अपने बेटे को बुलाया और कहा,"तुम्हारी दोस्त कह रही है कि इसकी माँ ने अपने लिए वृद्धाश्रम में कमरा बुक करा लिया है। लेकिन बेटा जी मैं किसी वृद्धाश्रम में कमरा बुक नहीं करुँगी।तुम दोनों शादी के बाद अपनी गृहस्थी अलग बसाना।

  ये मेरा प्रेमालम है


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