Niranjan Kumar Munna

Others

4.7  

Niranjan Kumar Munna

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प्रेम

प्रेम

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आज मैं चर्चा करने जा रहा हूँ, जिस विषय पर शायद हीं कोई चर्चा करतें हैं। जहां तक मां-बाप का प्रश्न है, वो अक्सर अपने बच्चों को सामने इस विषय पर चर्चा करने से कतराते नजर आतें हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता की हमें इस विषय पर चर्चा करने से परहेज करना चाहिए।

     अब आप सोच रहें होंगे - वो विषय क्या है, जो मैं बार - बार घुमा रहा हूँ, लेकिन कुछ बोल नहीं रहा हूँ। चलिए सीधे-सीधे उसी विषय वस्तु पर आ जाते हैं। वो विषय है-प्रेम! 

क्या हम प्रेम जैसे विषय पर कभी चर्चा करते हैं, अपने संतान के सामने?

नहीं न!

करेंगे भी तो कैसे करेंगे। यह बहुत खतरनाक मैटर जो है। क्या सचमुच प्रेम इतना खतरनाक है कि अगर किसी से मैं कह दूं- "I love you.", तो पता नहीं भूचाल सा आ जाय। मुझे हंसी आती है, प्यार में ऐसी कौन सी बात है, जिसके कारण भूचाल आ सकता है।

 मुझे तो नहीं लगता।


खैर ,जिसे लगता है उसे लगे। क्योंकि जिस समाज में हम रहते हैं न, उसकी सोच ही ऐसा हो गई है कि प्रेम एक अपने- आप में खतरनाक शब्द जैसा है। परंतु हम अपनी मां पिता, भाई, बहन, संतान, पशु, फूल, घर, परिवार. गांव, खेत, नदी, शिक्षक इत्यादि से प्रेम रखते हैं तो वो खतरनाक नहीं होता।


फिर भी प्रेम शब्द इतना खतरनाक! 


 सच कहें तो हमने प्रेम शब्द को विकृत कर, दुषित कर दिया है। यह शब्द को शारीरिक आकर्षण से जब से जोड़ दिया गया है, तब से प्रेम सचमुच खतरनाक शब्द है। प्रेम शारीरिक आकर्षण से उत्पन्न नहीं हो सकता। प्रेम तो एक आत्मीय संबंध है, जो एक आत्मा को दूसरी आत्मा से रहता है या रहना चाहिए । प्रेम उस आनंद का नाम है, जिसमें शरीर की कोई भूमिका नहीं होती। अगर प्रेम में शरीर की कोई भूमिका है, सुंदरता की कोई जगह है , उम्र की कोई सीमा है तो याद रखें वो प्रेम नहीं हो सकता। वो सिर्फ वासना ही हो सकता है।

वासना का सीधा मतलब है शारीरिक आनंद की पूर्ती करना, जो प्रेम हो ही नहीं सकता।

आज के लड़के और लड़कियों में प्रेम नहीं हो सकता ।क्योंकि वो प्रेम का मतलब हीं नहीं जानते हैं। प्रेम वो भावना है जो अपनापन का बोध कराता है। प्रेम कई जन्मों का संबंध होता है, जो हमारी अंतः मन में अंकुर बन कर छुपा रहता है और जब वो पात्र सामने आ जाता है, जिससे पूर्व जन्म का संबंध हो सकता है, प्रकट हो जाता है। प्रेम कोई नौटंकी नहीं है, जो आज किसी और से है कल किसी और से हो जायेगा। अगर प्रेम आज किसी और से, कल किसी और से तो वो प्रेम नहीं, वो तो व्यापार हो जायेगा। जिस प्रकार हमें कोई वस्तु अभी पसंद हैं तो अभी प्रयोग में ला रहे हैं और कुछ दिनों के बाद उससे मन भर गया तो किसी और वस्तु का प्रयोग करने लगे।

चलें अब इसकी वास्तविकता पर चर्चा करें। प्रेम हमें निर्माण करता है, प्रेम विनाश नहीं कर सकता। अगर प्रेम में विनाश का लक्षण दिखाई दे रहा तो आपको प्रेम नहीं, प्रेम पर आपको विश्वास नहीं या खुद पर विश्वास नहीं हो सकता है। प्रेम में हमें शरीर की भूख मिटाने की इच्छा नहीं हो सकती । अगर प्रेम जैसे पवित्र शब्द में आपको सेक्सुअल एक्टिविटी करने का इरादा है तो माफ करें वो प्रेम नहीं है। प्रेम तो कल्पनाओं की दुनिया में हमें ले जाता है, जहाँ आनंद हीं आनंद हो।

प्रेम मृत्यु नहीं देती, प्रेम जीवन जीने की कला सिखाती है। मैं सच कहूँ तो आज से कई वर्ष पहले मुझे भी किसी से अथाह प्रेम था और उसको भी मुझसे। आज वो मेरे जिन्दगी से दूर चली गई है, फिर भी वो हमेशा मेरी जिंदगी में है, वो यादों में है। आज भी उसकी प्रत्येक बात मुझे याद आती रहती है जो मुझे जीवन जीने की कोशिश में एक आलंब बन जाती है। जब भी मैं उदास होता हूँ तो लगता है कि हंसती हुई मुझे समझा रही है। मुझे कभी लगता हीं नहीं वो मुझसे दूर चली गई है।

     आज भी मुझे प्रेम है किसी से। उसका रुठना,उसका हंसना मुझे अच्छा लगता है। प्रेम का मतलब शादी करना नहीं और शादी करके बच्चे पैदा करना नहीं होता। मैं तो चाहता हूँ, जिससे मुझे प्रेम है, वो भी मुझसे उतना ही प्रेम करे। वो कुछ बन कर दिखाये और हमेशा खुश रहे।

मैं अपने संतान और परिवार से भी अटूट प्रेम रखता हूँ और उनकी खुशी को मैं हमेशा अपनी ही खुशी मानकर खुश रहना चाहता हूँ। क्योंकि प्रेम में निर्माण होता है, विनाश नहीं। प्रेम अमर बनाता है। प्रेम पत्थर को भी पूज्य बना देता है।


       


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