प्रभात : संध्या के नहीं उषा के साथ
प्रभात : संध्या के नहीं उषा के साथ
आते ही उषा ने अपनी मां सावित्री से लिपटकर उन्हें जैसे ही उठाने का प्रयास किया। उन्होंने स्वयं को उसकी पकड़ से आज़ाद करते हुए कहा -" पगली कहीं की , खुशी के उतावलेपन में मां को गिराएगी क्या ? बता , तुम दोनों को अच्छे मेडिकल कॉलेज मिल गए हैं न। तुम दोनों ही अपने-अपने पापा का सपना पूरा होने की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ता देख बड़े खुश हो न।"
"मां ! एक साथ कई एक खुश करने वाली ख़बरें हैं। सुनते ही खुशी के अतिरेक से तुम्हारा मन मयूर नृत्य करने लगेगा। मिठाई का डिब्बा फटाफट खोलकर पहले आपको मिठाई खिलाते हैं ताकि यह मधुर सूचना आप मीठे मुंह सुनें।"- उषा के हर शब्द से उसकी खुशी की उच्चतम सीमा झलक रही थी।
डिब्बा खोलकर उषा ने मां के मुंह में रसगुल्ला रखकर खुशी से चहकते हुए प्रभात से कहा-"अब तुम्हारी बारी है , मां को रसीला रसगुल्ला खिलाने की।"
सावित्री ने रसगुल्ले से भरे अपने मुंह की ओर इशारा करने के साथ-साथ हाथ से उसे रुकने का संकेत देकर बिना बोले यह बता दिया कि जब तक मुंह खाली हो जाएगा तब ही प्रभात खिला सकेगा। मां ने जब उषा को रसगुल्ला खिलाने का प्रयास किया तो पीछे हटते हुए उषा बोली।
"मां ! प्रभात का मुंह रसगुल्ले से बंद कर दो जिससे सूचना देने का सौभाग्य मेरे हिस्से में आए।"- उषा प्रभात की ओर इशारा करते हुए बोली।
प्रभात और मां का भरा मुंह देख उषा ने अविराम बोलना शुरू किया- " हम दोनों को दिल्ली में ही मेडिकल कॉलेज मिल गए हैं। सबसे ज्यादा खुशी की बात यह कि हम दोनों को ही एम्स में सीट मिलने के साथ दोनों को कॉलेज के हॉस्टल में भी जगह मिल गई है।आज तो आप शाम की पूजा में हमारे पूजा गृह में विशेष भोग लगाकर ईश्वर का धन्यवाद करेंगी। "
"बिल्कुल ऐसा ही होगा। बेटी,आखिर तुम दोनों ही अपने-अपने पापा का मानव सेवा का सपना साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हो।" - प्रभात ने भी सदैव की तरह सावित्री के चरण स्पर्श किए और सावित्री ने दोनों को आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा।
प्रभात के पिता नीरज कुमार जी,उषा के पिता स्वर्गीय चंद्रकांत जी और सावित्री के मुंहबोले भाई शशिकांत जी की घनिष्ठता जग जाहिर थी । चंद्रकांत जी यहां शहर में एक मशहूर फर्म में एकाउंटेंट के रूप में सेवारत थे और सपरिवार रहते थे।नीरज कुमार जी और शशिकांत जी गांव में खेती-बाड़ी का काम देखते हैं। शशिकांत जी का परिवार कुछ व्यक्तिगत कारणों से अपना पैतृक गांव छोड़कर कई वर्ष पूर्व ही नीरज जी के गांव में निवास करने लगा था। चंद्रकांत जी का स्वर्गवास सवा वर्ष पहले हो गया था ।उस समय प्रभात और उषा ग्यारहवीं कक्षा में अध्ययन के साथ -साथ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश हेतु तैयारी कर रहे थे। चंद्रकांत जी अपने स्वर्गवास से लगभग सात महीने पहले पैरालिसिस के शिकार होकर बिस्तर पर रहे। प्रभात और उषा के ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश के दस दिन बाद उन्हें पैरालिसिस हुआ था। प्रभात और उषा ने इस अवधि में उनकी देखभाल के साथ अपने अध्ययन पर पूरा ध्यान दिया था। गांव से दसवीं कक्षा पास करने के बाद शशिकांत की बेटी संध्या को ग्यारहवीं कक्षा में उसी विद्यालय में प्रवेश मिल गया है जिसमें प्रभात और उषा पढ़ते थे। अब संध्या मां की देखभाल करती रहेगी। समय-समय पर प्रभात के पिता नीरज कुमार और संध्या के पिता शशिकांत आते जाते रहेंगे। इसके साथ पड़ोसियों का सहयोग मिलते रहने के कारण सब कुछ व्यवस्थित रूप से चलता रहेगा।
प्रभात और संध्या यहीं गांव के ही विद्यालय में पढ़ते थे। कुशाग्रबुद्धि सांवले रंग के प्रभात और गौरांग संध्या दोनों ही आकर्षक नैन नक्श, गायन व नृत्य कला में प्रवीण थे। विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत खेले जाने वाले नाटकों और नृत्य नाटिकाओं में नायक-नायिका की प्रायः वे ही निभाते थे।लोग जब उन्हें राधा-कृष्ण की जोड़ी की उपमा देते तो संध्या शरमाकर धीरे से मुस्कुराकर मुंह फेर लेती। सहेलियां जब उसे छेड़तीं तो वह धत कहकर इधर-उधर झांकने लगती। ऐसी ही छेड़छाड़ जब लड़के प्रभात से करते तो वह कहता कृष्ण और राधा का मिलन नहीं वियोग होता है। इस दुनिया में विधि के विधान को कोई नहीं जानता। इन सब की तरफ ध्यान दिए बिना प्रभात संध्या की अध्ययन में सदैव मदद करता था। संध्या प्रभात को अच्छी लगती थी पर कभी उसने भाव प्रकट नहीं किए।वह संध्या के मन में उठते प्यार की हिलोरें महसूस तो करता लेकिन संध्या को थोड़े डांटने वाला लहज़ा दिखाकर उसने इसे प्रकट करने का अवसर भी नहीं दिया।
मेडिकल कॉलेज में अध्ययन की अवधि में मेडिकल कॉलेज के ही सहपाठी लड़के के उषा के प्रति आकर्षण के हाव-भाव देख प्रभात और उषा ने योजनाबद्ध ढंग से दोस्ती का नाटक प्रारंभ किया।उन दोनों का यह दोस्ती का नाटक धीरे-धीरे सचमुच प्यार में कब कैसे बदल गया खुद उनमें से किसी को नहीं पता चला।यह उन दोनों का मेडिकल का और संध्या का बी.ए. का अंतिम वर्ष था। संध्या ने अपने अंतिम वर्ष में समाजशास्त्र विषय लिया था। कॉलेज के राष्ट्रीय सेवा योजना के विविध शिविरों में उसका संपर्क कई समाजसेवियों से हुआ। वह बाल कल्याण हित से संबद्ध सामाजिक संस्था से जुड़ने पर भी सावित्री की देखभाल वह विधिवत करती रही। संस्था के माध्यम से बेसहारा बच्चों के कल्याण के कार्य में संध्या ने अपने आप को और अधिक व्यस्त कर दिया।
अब जब प्रभात , उषा और संध्या मिलते। जैसा होता ही है कि प्यार लाख छिपाया जाता पर उसे लम्बे समय तक छिपाया नहीं जा सकता है। संध्या की नज़रों ने प्रभात और उषा के प्यार को उनकी आंखों के भावों से पढ़ ही लिया।एक दिन शा जब वे तीनों पार्क में बैठे थे।
संध्या ने निर्णायक तरीके से अपनी बात रखी-" स्कूल जब हमें राधा-कृष्ण कहा जाता था तो तुम कहते थे कि राधा-कृष्ण का मिलन नहीं होता। प्राकृतिक रूप से प्रभात और संध्या नहीं बल्कि प्रभात और उषा ही साथ होते हैं। ईश्वर ने मुझे इन बेसहारा बच्चों की मदद के लिए ही इस धरा पर भेजा है। तुम दोनों इनको चिकित्सीय सेवा दे देना। तुम दोनों के सुखद भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएं।
