फर्क!
फर्क!
कल्याणी देवी आंगन में पोते और बहू की आवाज़ सुनकर बाहर आकर बोलीं, "आशा, क्यों मोनू को डाँट रही है , मन नहीं है तो थोड़ी देर में पढ़ लेगा। "
कल्याणी देवी ने पोते से लाड़ लड़ाते हुए कहा ," जा बेटा खेल आओ। पढ़ाई कहीं भागी नहीं जा रही है।"
"मम्मी जी, कल इसका टेस्ट है और मोनू को कुछ याद नहीं है। " आशा बोली।
"दादी, देखो मम्मी अभी भी डांट रही हैं।" मोनू दादी के पीछे छुप गया
"आशा तुम भी न! मोनू अभी तीसरी क्लास में तो है। हर समय उसके पीछे पड़ी रहती हो।" कल्याणी देवी ने आशा को कहा।
" जाओ मोनू बेटा, तुम पक्का आधे घंटे में आ जाना और पढ़ाई कर लेना।"
मोनू हंसते हुए खेलने चला गया।
आशा अपना सा मुँह लेकर रह गई। ये आज की नहीं रोजाना की बात है। दादी क्या पक्ष लेने लगी मोनू को न पढ़ने का बहाना मिल जाता। कुछ कहो तो वो ही बातें कल्याणी देवी शुरू कर देती ," ऐसे कह रही हो जैसे हमने तो बच्चे पाले ही नहीं। तुम्हारा पति हमारा बेटा मोहन बड़ा अफसर है और तुम्हारा देवर सोहन इंजीनियर है। भूलो नहीं, हमने ही दोनों को परवरिश दी है। "
खैर, इतने पर भी मौका मिलते ही आशा मोनू की पढ़ाई करवा देती। लेकिन बात इतनी सी होती तो आशा चुप ही रहती। उसकी सातवीं कक्षा में पड़ने वाली बेटी गार्गी दादी को फूटी आँख नहीं सुहाती। उसकी पढ़ाई के वक्त उन्हें बहुत से छुटपुट काम याद आते। गार्गी माँ से आकर बताती , आशा काम कर देती। कभी कभी कल्याणी देवी आशा को सीख देती कि गार्गी को घर के काम-काज सिखाना शुरू कर दे ,पराए घर जाना है। इस पर आशा कहती कि गार्गी अभी बच्ची है, छोटी है।
ऐसे ही घर में बातें चलती रहती आशा भी सोचती मम्मीजी का नेचर ऐसा है, खुद के बेटी नहीं है तो पोती का तो लाड़ प्यार कर सकती हैं पर नहीं उन्हें गार्गी पसंद ही नहीं है। बहरहाल वह गार्गी का खुद से ख्याल रखती और पक्षपात नहीं होने देती।
आज खेल से लौटकर मोनू ने पैर पर खरोंचें दिखाते हुए कहा," दादी, चिंटू ने मुझे लंगड़ी टांग देकर गिरा दिया, दर्द हो रहा है। "
दादी ने गुस्से में कहा ,"चलो अभी चिंटू के घर। आशा, मेरा पर्स दो। "
फिर दादी ने चिंटू की खबर उसी के घर जाकर ली साथ ही उसकी माँ को भी चिंटू को तमीज से खेलने के लिए शिक्षा दी।
वहीं से सीधे डॉक्टर के पास जाकर मोनू के टिटनेस का इंजेक्शन लगवाकर आईं।
घर आकर आशा से हल्दी पड़ा दूध बनवाकर मोनू को अपने हाथ से पिलाया।
कुछ दिनों बाद...
"दादी,मेरे हाथ पर पप्पू ने बैट मारा। देखो ना दादी, खून भी निकल रहा है।" गार्गी जो पार्क में खेलने गई थी उसने रोते हुए दादी को बताया।
"गार्गी, तुम क्या करने गई थी लड़कों के बीच में? संभलकर खेला करो, लड़के क्रिकेट खेला करते हैं, लग गया होगा।" दादी ने गार्गी को झिड़कते हुए कहा।
बहू को आवाज़ दी, "आशा, गार्गी के थोड़ी चोट लग गई है,ज़रा सा खून निकल क्या आया इतना शोर मचा रही है। डेटाॅल लगाकर धो दो। चीनी खिला दो, खून रुक जाएगा।"
आशा किचन से आते-आते जड़वत खड़ी गयी। आशा ने कल्याणी देवी को देखा। उसने सोचा कि दादी गार्गी की मरहम पट्टी करवाएंगी और साथ ही पप्पू की खबर लेने जाएंगी पर ये क्या!
उसे स्वयं पर बहुत गुस्सा आया कि ऐसी अनर्थक बातें अपनी बेटी के लिए वह क्यों सुन रही है। उसने सोचा, बच्ची के खून बह रहा है पर मम्मी जी को यहां भी भेदभाव करना है। यदि आज नहीं बोली तो बेटी के साथ अन्याय हो जायेगा।
क्रोध के मारे उसकी कनपटियां तड़कने लगीं परंतु स्वयं को संयत कर आशा ने पर्स लिया , गार्गी का हाथ पकड़ा और जाने लगी।
कल्याणी देवी पीछे से बोली ," अब तुम कहां चलीं ? "
आशा जाते जाते मुड़ी, बोली " मैं जा रही हूँ डॉक्टर के क्लिनिक। गार्गी को ड्रेसिंग करवाकर और टिटनेस का इंजेक्शन लगवाकर आती हूॅ॑।"
"अरे! पर खाना बनाने का समय है ,जाकर खाना बनाओ। ज़रा सी तो चोट है। फ़ालतू शोर मचा रही हो, तुम माॅ॑-बेटी।" कड़क कर बोली कल्याणी देवी
शायद और कुछ समय होता तो यकीनन आशा सहम जाती परंतु इस वक्त उसको बेटी की चोट और बहता हुआ खून दिखाई दे रहा था। वह बोली,"मैं ड्रेसिंग करवाने जा रही हूँ , मम्मी जी।"
अपना अपमान सहन नहीं हुआ कल्याणी देवी से,"बहुत जुबान चलाने लगी हों तुम!"
"जब मैंने कोई गलती नहीं की है तो मैं बर्दाश्त क्यों करूं?" क्रोधित दृष्टि से सास को देखकर आशा ने कहा
"आज से और अभी से गार्गी के साथ मैं कोई भेदभाव सहन नहीं करूंगी। आपने तो मम्मी जी दोनों बच्चों की चोट में भी फर्क कर डाला! ऐसा क्यों किया आपने ?आपका दोनों बच्चों में पक्षपात अब वो नासूर बन चुका है, जिसे ठीक करना मेरे लिए जरूरी है अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगी। और हां, मैं आकर पप्पू की खबर भी लूंगी।" ऐसा कहकर वह गार्गी का हाथ पकड़कर बाहर निकलती गई
कल्याणी देवी निरुत्तर खड़ी रह गईं... आज पहली बार आशा ने उन्हें जवाब दिया था परंतु गलती कल्याणी देवी की ही थी यह उन्हें उसने समझा दिया। एक माँ वैसे तो संयत रहती है पर यदि उसके बच्चे के साथ गलत बर्ताव हो रहा हो तो उसका क्रोधित होना स्वाभाविक है। आखिर माँ के लिए उसके सभी बच्चे एक समान होते हैं!
दोस्तों, आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी? आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद।
