फ़रिशता
फ़रिशता
'आयशा अपने अम्मी की उम्मीद को क़ायम रखना चाहती थी। अब्बू का बचपन में ही इंतेक़ाल तो जब "आयशा" छह महीने की थी अम्मी की गोद में उसे ठीक से अब्बू का चेहरा भी याद नहीं है। अम्मी ने जब देखा कि अज़ीज़-रिश्तेदार मुंह मोड़ने लगे हैं, बस एक बेवा ख़ाला (विधवा मौसी)ही उसकी हमर्दद है। तस्सली देती रहती।
"राबिया" तुम परेशान मत हो, "आयशा" थोड़ी बड़ी हो जाएगी, तो मैं तुम्हें हमारे साहब हैं "ख़ालिद सिद्दीक़ी" उनकी गारमेंट्स की फैक्टरी है। वहां बहुत सी जरूरतमंद औरतों को काम मिल जाता है। कुछ दिन जमा पूंजी से काम चलाया पर घर की ज़रूरत मुंह बाए खड़ी थी। घर का किराया रोजमर्रा के ख़र्चे तंग आकर राबिया एक दिन ख़ाला के पास पहुंच गई ।
आप मुझे काम दिला दें फेक्ट्री में सिलाई काम मिल गया जिन्होंने काम पर रखा वो "बेगम सायरा" थी। खालिद सिद्दीक़ी मार्केटिंग और सेल्स के काम देखते थे।
उनके बहुत से मुलिज़िम थे ।
राबिया ने 'बेगम सायरा' से बच्ची को काम पर लाने की इजाज़त ले ली थी। धीरे-धीरे आयशा सभी लेडीज़ की चहेती बन गई। उसकी मासूमियत और नीली-नीली चमकीली आंखें, घुंघराले सुनहरी बाल गुड़िया लगती थी।
सब ही उसकी तरफ (आकर्षित) मुत्तारसिर हो जाते थीं।
राबिया की लगन और नेक अख़्लाक़ (व्यवहार) की वजह से "बेगम सायरा" की नज़रों में आ गई थी। राबिया को अपने ऑफिस में बुलाया। मैं तुमसे कुछ और काम भी लेना चाहती हूं। तुम से बात करना चाहती हूं, बैठो राबिया झिझकती बैठ गई।
बेगम सायरा ने कहा देखो, राबिया तुम मेरे घर में सर्वेंट्स क्वार्टर में रह सकती हो, मुझे खाना बनाने के लिए ख़ानसामा चाहिए। अगर तुम्हें एतराज़ ना हो तो सोच कर जवाब देना।
हम दोनों हसबैंड वाइफ ही है ।एक बेटा है पर वो कनाडा में रहता है। साल-दो साल में आता है अपनी फेमिली के साथ 1-2महीने रहकर चला जाता है।
राबिया ख़ामोशी से बेगम सायरा को सलाम करके आ गई। शाम को ही ख़ाला के घर मशविरा (सलाह)लेने पहुंच गई। राबिया का वही सहारा थी। उम्रदराज और दुनिया देखी थी।
राबिया तुम बेगम सायरा जो नौकरी दे रही है ।वो ले लो देखो मैं भी बूढ़ी हो चली हूं, मेरा कोई भरोसा नहीं कब आंख बंद हो जाए। तुम्हारी अभी उम्र ही क्या है?
उनके बंगले में हिफ़ाज़त से रहोगी ।जवान-जहान औरत को बदनीयत नज़र वाले मर्द चैन से नहीं रहने देते हैं। ठीक है ,तो मैं कल उनके बंगले पर जा कर बता देती हूं कि कब से आ जाऊं काम पर, ख़ाला आप कैसे अकेले रहेगी।
ख़ाला के पास भी आती रहती है ,राबिया उनका पूरा ख़्याल रखती है। राबिया बेगम सायरा से अपनी ख़ाला को अपने पास रखने की इजाजत लेती है। मेरे साथ रह लेंगी, उनका मेरे सिवा कोई नही है। ज़ईफ़ (बूढ़ी)हो गई है।
बेगम सायरा और ख़ालिद सिद्दीक़ी को राबिया के ज़ायकेदार खाना और घर की देखभाल से खुश रहते हैं।
बेगम सायरा राबिया की बेटी का अच्छे स्कूल में एडमिशन करा देती हैं।
देखते-देखते आयशा बेगम सायरा की ख़ास बेटी बन जाती है। उसकी ख़िदमत और प्यार की वजह से ख़ालिद सिद्दीक़ी कहते हैं कि देखो सायरा हमें अल्लाह ने बेटी की कमी पूरी कर दी है।
आयशा कॉलेज में आ जाती है।कई दिनों से वो देखती है कि कुछ आवारा लड़के उसका पीछा करतें हैं।घर में अम्मी को बताती है।अम्मी फिक्रमंद हो जाती है। अल्लाह पाक से दुआ करती है कि बिन बाप की बच्ची की हिफ़ाज़त करना।
कॉलेज में फंक्शन रहता है उस दिन रात हो जाती है। अम्मी और बेगम सायरा को भी बड़ी अम्मी कहती हैं।कह कर जाती है। मैं थोड़ा लेट हो जाऊंगी कॉलेज की बस स्टाप पर छोड़ कर जाती है।
उस एरिया के आवारा लड़के पान की दुकान पर खड़े रहते हैं। जैसे ही आयशा उनके सामने से डरते-डरते निकलती है साथ चलने लगती है ।तब ही एक नौजवान मोड़ से आ जाता है और उसके साथ चलते हुए बातें करने लगता है ।
जैसे बहुत ही क़रीब का रिश्तेदार हो , थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहता है बेगम सायरा ने हमें लेने भेजा है। आवारा लड़के फौरन तितर-बितर हो जाते हैं ।
आयशा बंगले का गेट खोल कर अंदर चली जाती है। अम्मी को बताती है ।आज एक अनजान लड़के ने कैसे मुझे यहां तक छोड़ा दोनों अम्मी-बेटी गेट तक देखने जाती है कि आवाज़ दे कर शुक्रिया कहा दें पर दूर-दूर तक कोई नहीं दिखता है।
अम्मी कहती हैं अल्लाह का नेक फ़रिशता होगा ।