Dr Jogender Singh(jogi)

Children Stories

3  

Dr Jogender Singh(jogi)

Children Stories

पेट में सिक्का

पेट में सिक्का

3 mins
376


जगपाल ने मुट्ठी को कस कर भींच लिया। नरेन्द्र ने उसको पीछे से पकड़ा था। दोनों ज़ोर आज़माइश कर रहे थे। जगपाल मुट्ठी भींचे था। उसकी मुट्ठी में एक पचास पैसे और एक पच्चीस पैसे का सिक्का था। नरेंद्र पूरा ज़ोर लगा कर उसकी मुट्ठी खोलने की कोशिश कर रहा था। “ देख तुझे मेरा एक रुपया देना है , आज पैसे हैं तेरे पास दे दे।” नरेंद्र ने जगपाल को चेताया। “ यह पैसे पिता जी ने बीड़ी / माचिस लाने को दिए है, तेरे पैसे बाद में दे दूँगा।” जगपाल बोला।  

तू बीड़ी ख़रीद चुका है, दिलीप ने देखा है बीड़ी का बंडल बैग में रखते हुए। ला बारह आने बचे हैं, नरेंद्र ने उसकी मुट्ठी खोलने की कोशिश की।

जगपाल को जब लगा कि मुट्ठी खुल जायेगी, उसने झट से दोनों सिक्के मुँह में रख लिए। कुछ बोलने की कोशिश में आठ आने का सिक्का गले में उतर गया। नरेंद्र उसका मुँह खुलवाता उस से पहले जगपाल ज़ोर / ज़ोर से रोने लगा। आसपास खड़े दिलीप, देवेंद्र, जगदीश सब स्कूल की तरफ़ दौड़े। स्पोर्ट्स टीचर खिल्ली सर को सारा क़िस्सा बताया गया। खिल्ली सर ने आते ही नरेंद्र को एक चाँटा रसीद दिया। नरेंद्र चुपचाप गाल पर हाथ रख, सिर झुका कर खड़ा हो गया। जगपाल रोए जा रहा था।

” क्या हुआ क्यों रो रहा है ? खिल्ली सर ने डाँटा।

एक अठन्नी पेट में चली गयी।  

चल डिस्पेंसरी चलते हैं, खिल्ली सर ने जगपाल का हाथ पकड़ा। घबरा तो सर भी गये थे। सारे बच्चे उनके पीछे चलने लगे। डिस्पेन्सरी का रास्ता थोड़ा चढ़ाई लिए था। पतले से रास्ते पर आगे रोते हुए जगपाल का हाथ पकड़े खिल्ली सर और उनके पीछे लाइन से सारे बच्चे।

अरे डॉक्टर साहब जल्दी से बच्चे को देखिए एक सिक्का निगल लिया इसने। खिल्ली सर डिस्पेंसरी के आँगन से चिल्लाये।

डिस्पेन्सरी क्या एक कमरे में चलने वाला सरकारी अस्पताल था। पीले रंग से पुता कमरा, दस गुणा बारह फ़ीट का। एक लकड़ी की मज़बूत मेज़ / कुर्सी , एक आला , सिरिंज को उबालने के लिए एक भगोना, ब्लड प्रेशर नापने वाली मशीन और दवा रखने के लिए रेकनुमा अलमारी। एक माम जस्ता दवा पीसने के लिए। डॉक्टर तो कभी अस्पताल में आते नहीं थे। फ़ार्मासिस्ट मुलतान सिंह ही डॉक्टर थे। सब लोग प्यार से मुल्तानु डॉक्टर कहते थे उनको।

डॉक्टर साहब ने आले से जगपाल के सीने को सुना। ज़ोर से साँस लो। “ कुछ नहीं एक / दो दिन में पॉटी में निकल जायेगा।" यह दो चम्मच पी लेना सुबह शाम, प्लास्टिक की चपटी शीशी में दवा भर दी डॉक्टर साहब ने। और हाँ, इसको केले खिलाइए।  

धन्यवाद डॉक्टर साहब। खिल्ली सर ने जगपाल की पीठ पर प्यार से थपकी दी। “चल।"

स्कूल वापिस आ कर आधा दर्जन केले खा कर ही जगपाल चुप हुआ।

तीन दिन तक सारे बच्चे शांत रहे। आते / जाते जगपाल से पूछते “ अठन्नी निकली ? ” 

जगपाल मासूमियत से बताता “ पता नहीं।"

तीन दिन बाद तेजवीर ने मज़ाक़ बनाना शुरू किया “सुन जब भी टट्टी करने जाना, ऊँचे से पत्थर पर बैठना ! जैसे ही सिक्का निकलेगा टन्न की आवाज़ आयेगी।" सारी क्लास हँसती।

दो दिन इसी मज़ाक़ में बीत गए। उसके बाद तेजवीर ने एक कदम आगे बड़ कर मज़ाक़ बनाया। “अरे सब सुनो ! आज सुबह जगपाल ऊँचे पत्थर पर बैठा टट्टी कर रहा था, तभी टन्न की आवाज़ आयी। बस अपना भाई एक लकड़ी हाथ में लेकर कूद गया। पूरी टट्टी तहस / नहस कर दी, पर भाई अट्ठन्नी ढूँढ कर ही माना।  

सारी क्लास में ठहाका गूँज गया। जगपाल चिड़चिड़ाता। यह सिलसिला कई दिन चला। तेजवीर नारा लगाता “ पेट में सिक्का, टट्टी से घिसा।


Rate this content
Log in