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Vikas Sharma

Children Stories Inspirational Children

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Vikas Sharma

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पाँचवाँ भाग – कहाँ से लाऊं सहज ज्ञान

पाँचवाँ भाग – कहाँ से लाऊं सहज ज्ञान

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अभी तक गणित को इमारतों, पेड़ो, पत्तियों में दिखाया था, इस बार बहस हो गई की ये मानव के दिमाग में हैं, हर जगह या जहां चाहे दिखा दो, पर सच में वहाँ हो ना हो। विकास सर ने हम्म किया, और शुरू की अपनी किससे बाजी।

पिछली कहानी में मैं मैंने अपनी आलसी काशवी और गिन परी वाली काशवी के बारे में बताया था, की कैसे दोनों मिलकर मुझे मुकम्मल करती है। आज भी उसी छवि से शुरुआत करती हूँ, खुश काशी, दुखी काशी और एक काशी जो इन दोनों को समेटे हैं। कभी -कभी हम अपने तर्कों को भागने में लगा देते हैं जहां जाना चाहिए था उससे दूर। ये बहस भी ऐसे ही थी क्यूँ गणित करें बार -बार इस सवाल को अलग -अलग तरीके से पुछते रहते, चाहे जानते हो की करना तो चाहते ही हैं, सीखना तो है ही, सपना है यह, फिर क्यूँ कभी -कभी सपने से दूर भागने का मन होता है, क्यूँ खुद से दूर चलने लगते हैं?

समुंदर की लहरें, मस्त हवा चल रही है, पानी किनारे तक आता है, वापस जा रहा है, पर क्या कुछ छोड़ जाता है- रेत पर पानी की सिलवटें, गीली रेत और महक, नमकीनपन और सीप, कभी ध्यान से देखा है उसको उठाकर, उसकी शेप को, ये जो स्पाइरल बन रहा है ना, गोल्डन रेशो है- जो दुनिया की हर खूबसूरत चीज में हैं।

हाथी, मधुमक्खी और भी कई जानवर संख्या की समझ रखते हैं, पर ये इनसानों की समझ से थोड़ा अलग होती है, इंसान के पास भाषा क्या आ गई, उसकी बिसात ही बदल गई, वो बाकी जानवरों से आगे निकल गया, गणित में भी और इंसान होने के मायने में भी।

सोचो, जब मानव को गिनती नहीं आती थी, जब जंगली जानवरों से बचता हुआ, शिकार की तलाश में भटकता हुआ, उसे 200 फलों से लदा पेड़ दिखाई दिया, और साथ ही 300 फलों से लदा, वो किस ओर जाएगा?

300 फलों की तरफ, उसने एक -एक करके फलों को नहीं गिना, पर उसकी संख्या बुद्धि उसे 300 फलों की ओर ले जा रही है, ये संख्या बुद्धि इंसान में शैशव काल से ही होती है, और कई जानवरों में भी, पर इंसान भाषा के हथियार की वजह से इसको गणना बुद्धि में बदलता है और अपने गणित को नए आयाम में ले जाता है।

कंस वाली कहानी याद है ना, जब आकाशवाणी हुई थी, तो बताया गया था की देवकी की आठवीं संतान उसका काल होगी, उसने देवकी को कारागार में डाल दिया, और इंतज़ार करने लगा आठवीं संतान का की होते ही अपने काल को मार डालेगा। ये थी उसकी संख्या बुद्धि।

पर नारद जी आते हैं उसे माला दिखाते हैं, और पूछते हैं बताओ की आठवाँ मोती कौन सा है, अब गोल संरचना में गिनना आसान नहीं की कहाँ से शुरुआत की जाये, अब उसे उलझन हुई, यहाँ से शुरू होती है उसकी गणना बुद्धि।

और उसने आठों संतानों को मारने का निश्चय किया।

अभी भी अमेरिका और अफ्रीका में ऐसी जाति हैं जिनको सिर्फ कम या अधिक की ही समझ है, गिनती में तीन तक ही, संख्या बुद्धि तो है, गणना बुद्धि नहीं। 

हम अपने चारों तरफ प्रकृति में बहुत सारा गणित पाते हैं, अगर हम अच्छे से अब्ज़र्व करें तो देखेंगे की कुछ जानवर हर समय ही महत्वपूर्ण गणित कर रहे होते हैं।

याद रखें अच्छा ज्ञान वही जो समय पर काम आ सके, जिसका हम उपयोग कर सकें, महादानी कर्ण जैसा नहीं की जरूरत के समय ही भूल जाएँ। सहजता बड़ी चीज है, मतलब आप ऑटोमेट हो जाएँ,

खैर, जानवरों के लिए गणित पूरी तरह से सहज ज्ञान युक्त है। आओ आपके साथ एक ऐसा उदाहरण साझा करता हूँ, अमूमन तो इसे आपको देख लेना था, पर मुझे पता है की नहीं ध्यान गया होगा, तो फिक्र नोट, मैं हूँ ना, मैं बात कर रहा हूँ - मकड़ी की ।

मकड़ियों सर्पिल में विशेषज्ञ हैं। जब एक मकड़ी एक ओर्ब वेब बनाती है, जरा मानस चित्र बनाने का प्रयास करें, कहीं आस -पास हो तो देखें, नहीं तो तस्वीर को देखें या सोचें।

यह पहले दो के बीच एक तारा आकार बनाता है- मजबूत ऊर्ध्वाधर समर्थन, जैसे हर बड़ी इमारत को मजबूत नींव की जरूरत होती है। फिर, मकड़ी एक सर्पिल बनाना शुरू कर देती है। इसे इस सर्पिल को जल्द से जल्द बनाने की जरूरत है तारे को मजबूत करने के लिए, तो मकड़ी एक लघुगणकीय सर्पिल बनाना चुनता है। लॉगरिदमिक सर्पिल में, दूरियां केंद्र के चारों ओर प्रत्येक क्रमिक मोड़ के बीच

हर बार एक ही कारक से बढ़ते हैं। इसका मतलब है कि सर्पिल अधिक से अधिक बाहर की ओर फैलता है जल्दी से बड़ा हो जाता है, एक मकड़ी के जाले के लिए एकदम सही ।

लेकिन यह लघुगणकीय सर्पिल अपने बीच में बहुत सारा स्थान छोड़ता जाता है, जिसे भरने के लिए मकड़ी एक और सघन सर्पिल बनाना शुरू करती है। यह नया सर्पिल एक अंकगणितीय सर्पिल है,

जिसका अर्थ है कि सर्पिल के प्रत्येक मोड़ के बीच की दूरी एक ही है।

यह दूसरा सर्पिल बनाने में मकड़ी को अधिक समय लगता है क्योंकि इसके लिए मकड़ी को

तारे के केंद्र के चारों कई बार घूमना पड़ता है, लेकिन यह निश्चित रूप से मकड़ी को कई और कीड़ों को पकड़ने में मदद करेगा क्योंकि यह वेब से बड़े स्पेस को हटा देता है।

इंजीनियरिंग का यह अद्भुत कारनामा मकड़ी अपने नैसर्गिक गणित से सहजता से कर पाती है जबकि ऐसा करने के लिए एक बड़ी जटिल एल्गोरिदम बनानी होगी और उसका जबरदस्त क्रियान्वयन, उसका पालन करने के लिए। लेकिन मकड़ी सहज रूप से गणित का उपयोग करती है एक सरल व इंटूटिव से जो उसे अपील करता रहता है। आज की बात की शुरुआत में भी हमने एक ऐसे ही स्पाइरल की बात की थी – सीप वाला उदाहरण, इस बार नयी नजर से देखना उसको।

 सीप मतलब घोंघे ऐसे सर्पिल बनाते हैं जो एक लघुगणकीय पैटर्न का पालन करते हैं।

एक और अन्य जानवर जो गणित का सहज रूप से उपयोग करता है, वह है डॉल्फ़िन। डॉल्फ़िन, मकड़ियों की तरह, गणित का अद्भुत तरीके से उपयोग करती हैं। वे वास्तव में एक दूसरे को पानी में खोज पाते हैं क्लिक जैसी आवाज करके, होता यह है कि डॉल्फ़िन ध्वनि तरंगें पैदा करती है फिर जैसे-जैसे ध्वनि तरंगें यात्रा करती हैं, दूसरी डॉल्फ़िन से ये तरंगे टकराती हैं और वापस लौट आती हैं ।

और पहली डॉल्फ़िन से ये तरंगे दूसरी डॉल्फ़िन तक जाती हैं, फिर टकराकर लौटकर वापस आती हैं, डॉल्फ़िन ध्वनि तरंग को जाने -आने में लगने वाले समय कि गणना करती है और साथ ही ध्वनि तरंग कि गुणवत्ता कि भी, जिससे वो पहचान पाती है कि रास्ते में क्या कुछ हो सकता है, ऐसी गणना तो आप बीजगणित में सोच पाते हैं- दूरी और समय के साथ, समीकरण बनाते हैं तभी हल कर पाते हैं पर डॉल्फ़िन अपने दोस्तो से बात करती है अपनी सहजता से, अपने सहज गणित से। अब आप सोच रहे होंगे कि हम भी अगर डॉल्फ़िन कि बातें समझ पाते तो उसी से बीजगणित सीख लेते, डॉल्फ़िन से गणित पढ़ना, सोच के ही कितना मजा आ रहा है ना।

ये सब उदाहरण मैंने इसलिए लिए कि आप समझ सको कि सबसे जरूरी है अपने सहज ज्ञान पर भरोसा करना, जिसे अंतर ज्ञान भी बोल देते हैं, जो आपको महसूस होता है, आपको लगता है कि ये कर देना चाहिये, फिर इसके बाद ये, आप अभ्यास के साथ और सटीक होते जाते हो, हर बार पहले से बेहतर, यह पृक्रिया निरंतर चलती रहती है।

सर कि तो बात खत्म हो गई थी पर मैं सोच रही थी कि कितना कबाड़ मचाया है मैंने अपने जीवन में, जिस सहज ज्ञान कि सर आज बात बार -बार कर करे थे उसके सहजपन को मारती रही उसे ना सुनकर, उसका उपयोग ना करके, एक ही बात समझ आई गणित सीखने के लिए, इस सहज ज्ञान को जिंदा रखने के लिए कि करो, गणित करना होगा, उपयोग करना होगा।

अब मैं अगर खुद कि तस्वीर बनाऊँ तो बेडोल सी लगूँगी, क्यूंकी नकारेपन व इसके दोस्तों कि कई परतें ओढ़ ली हैं, मेरी दोनों सहेली आलसी काशी और गिनपरि काशी मेरे दायें -बाएँ दो मास्क बन के पड़े हैं, एक हँसता हुआ, दूसरा थोड़ा दुखी, पर मैं इनमें से किसी को नहीं चुनूंगी, मैं तो हूँ इन दोनों से परे या कहूँ दोनों में शामिल – एक नया मास्क जो मेरे हाथ में हैं, मेरे सहज ज्ञान से भरपूर।



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