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Sangeeta Aggarwal

Children Stories Inspirational Others

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Sangeeta Aggarwal

Children Stories Inspirational Others

नन्ही का नन्हा सपना

नन्ही का नन्हा सपना

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"हमको नहीं खाना ई नून - रोटी.... हमको तो आज दाल- भात खाना है!" पाँच साल की नन्ही मचल कर अपनी माँ बुधिया से बोली।

" नन्ही बिटिया अभी यही खाय लयो जब मजूरी मिलेगी तब पकाएंगे दाल भात!" बुधिया ने नन्ही को बहकाया।

" नहीं नहीं हमको नहीं खाना!" नन्ही फिर मचली।

" हमार नन्ही तो बड़ी सयानी है.... माई को ऐसे परेशान नहीं करेगी वो.... जब ई लॉकडाउन खतम होइगा तब माई मजूरी पर जायेगी तब नन्ही के लिए दाल- भात पकायेगी.... अभी तो नन्ही यही खायेगी.... फिर नन्ही मीठी सी नींद सोई जायेगी....फिर नन्ही के सपनों में परी आयेगी...परी जादू की छड़ी घुमायेगी और नन्ही ढेर सारे पकवान खायेगी!" बुधिया ने बहला कर नन्ही को खाना खिलाया।


खाना खा नन्ही सो गई.... नन्ही अपनी माँ और बड़े भाई के साथ... दिल्ली के एक झोपड़ पट्टी मे रहती है... उसका बापू गाँव गया था फसल कटवाने और तभी लॉकडाउन लग गया.... बुधिया और नन्ही का बापू गोपू दोनो मजदूरी करते हैं अब लॉकडाउन में मजदूरी बंद हो गई और बुधिया के पास जो थोड़ा बहुत राशन था उसी से बच्चों का पेट भर रही थी।


" हे प्रभु काहे परिक्सा लेते हो गरीब की कोरोना हम गरीबन् को मारे ना मारे पर अपने बचवा को ऐसे देख रोज मर रहे हम लोग!" बुधिया रात को लेटी हुई खुद से बोली।

" अरि मोरी मैया इतना सारा खाना.... परी रानी ई सब हमरे लिए है.... ई दाल- भात, पूड़ि भाजी, और ई जलेबी बी.... हम इसमें से थोड़ा अपनी मैया और भैया के लिए भी ले जाये!" नन्ही शायद सपना देख रही थी तो बड़बड़ा रही थी।

नन्ही की बातें सुन बुधिया की आँख में आँसू आ गये।


" माई रात हमार सपनों में परी आई थी सुनहरे पंखों वाली.... हमको बहुत सारा खाना दिया उसने!" सुबह नन्ही अपनी माँ से बोली।

" चल अभी चाय रोटी खा फिर भैया साथ खेलियो!" बुधिया बोली।

" माई परी रानी सच्ची में नहीं आ सकती क्या हमको अच्छा खाना देने.... माई क्या सपने सच नहीं होते!" नन्ही माँ से बोली।

" होंगे मेरी नन्ही गुड़िया थोड़े दिन रुक जा बस!" बुधिया अपने आँसू पीते हुए बोली।


अब नन्ही रोज यही सपना देखती परी आयेगी खाना लायेगी।

" बुधिया भाभी बाहर आओ पता है तुम्हें एक एन जी ओ वाले बाहर खाना बांट रहे है सब जा रहे चलो तुम भी!" एक सुबह पड़ोसन सुशीला आकर बोली।

बुधिया नन्ही को ले सुशीला के साथ चल दी।

 वहाँ एन.जी.ओ. के बहुत से कार्यकर्ता खाना बांट रहे थे.... 

" आप परी हो.... पर आपके सुनहरे पंख कहाँ हैं!" खाना बांटती कनक से नन्ही बोली।

" क्या मतलब बेटा!" कनक ने नन्ही से पूछा।

" आप वही परी हो ना जो रोज हमार सपनों में आके हमको अच्छा अच्छा खाना देती थी माई बोलती थी वो सपना एक दिन सच होगा.... और देखो आज आप सच मे आई गई.... हमको नून- रोटी बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था माई दाल भात नहीं बनाती थी बोलती थी जब मजूरी मिलेगी तब बनायेगी...!" नन्ही दुखी हो बोली।


नन्ही की बात सुनकर कनक और उसके साथियों की आँखों में आँसू आ गए....! 

" बेटा मुझे आपकी परी ने ही भेजा है आपको खाना देने!" कनक आँसू पोंछती बोली।


कनक और उसके साथियों से जितना बन पड़ा वहाँ सबकी मदद की.... क्योंकि वहाँ कनक जैसे कितने बच्चे थे जो दो वक़्त की रोटी के भी सपने देखा करते थे....! 

" इतना सारा खाना!" नन्ही आँखें चौड़ी करती बोली।

" हाँ बेटा आप पेट भर कर खाओ.... हम फिर आयेंगे आपके लिए इससे भी अच्छा खाना लेकर!" कनक का साथी राघव बोला।

" माई देखो हमार सपना सच हो गया!" नन्ही खुश होते हुए बोली।

कनक ने भरी आँखों से कुछ रुपए नन्ही की माँ के हाथ में दिये और चुपचाप चली गई वहाँ से! 


आज सोते हुए नन्ही के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी... उसका सपना जो सच हो गया था। बुधिया की आँख में आँसू आ गये अपने दोनों बच्चों को भरे पेट मीठी नींद सोते देख.... पर आज ये आँसू खुशी के थे........ एक माँ जो थी वो....!! 


सच में दोस्तों कुछ लोगों के लिए छोटी छोटी जरूरत पूरी करना भी एक सपना होता... हमारे बच्चे जिस खाने को नाक मुँह चढ़ा के खाते वही खाना नन्ही जैसे बच्चों का सपना होता....।जितना हो सके ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए.... आपके द्वारा की छोटी सी मदद किसी मासूम के चेहरे पर मीठी मुस्कान ला सकती....! 


शुक्रिया आपका



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