Laxmi Yadav

Children Stories Inspirational

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Laxmi Yadav

Children Stories Inspirational

निरोगी काया

निरोगी काया

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आजकल की मुंबई जो की घडी की नोक पर चलती है, लोग बस अपने सपनों के पीछे भाग रहे है। एक दौड़ है, सभी को अंधाधुंद दौड़ना है । 

ऐसे मे लोगों की जीवन शैली मे बड़ा बदलाव आया। नई पीढी को अब माँ के हाथ की गरम नरम घी की रोटी नही सुहाती। त्यौहार पर भी घर का पारंपरिक व्यंजन छोड़कर दोस्तों के साथ पिज़्ज़ा, बर्गर व ठंड पेय मे ही आनंद आता है। 

पार्थ का भी यही हाल था। अमीर माँ बाप की इकलौती संतान और वो भी काफी मन्नौती के बाद हुआ था। इसलिए उसकी हर इच्छा पूरी हो जाती। बचपन तक तो ठीक था, पर थोड़ा बड़ा होने पर वह घर का खाना खाता ही नहीं था। किसी की बात नही मानता था। माता पिता को अपने व्यस्त जीवन से फुर्सत ही नहीं रहती कि वो लोग अपने बेटे की पढाई या सेहत पर ध्यान दें। 

एक बार होटल मे खाने का आदी हो चुका पार्थ लगातार दो महीने से घर का साधारण खाना खा ही नहीं रहा था। बस बाहर का डिब्बा बंद खाना और विदेशी ठंड पेय। एक दिन कक्षा मे उसके पेट मे भयंकर दर्द उभरा। वो छटपटाने लगा और थोड़ी देर मे बेहोश हो गया। 

जब होश आया तो खुद को अस्पताल मे डॉक्टर से घिरा पाया। बाहर माता पिता व मित्र शिक्षिका सभी चिंतित मुद्रा मे उसे देख रहे थे । सभी डॉक्टर आपस मे विचार विमर्श कर रहे थे। गाँव से पार्थ की दादी भी आई थी। वो भगवान का जप कर रही थी। 

दो सप्ताह लगा पार्थ को अपना स्वास्थ सुधारने में.... 

इस दौरान उसे सिर्फ उबला खाना दिया जाता था। क्योंकि डिब्बा बंद खाने से उसकी पाचन प्रक्रिया प्रभावित हुई थी। बाहर के खाद्य पदार्थों पर पाबंदी लग गई। दादी ने घर के खाने की उपयोगिता समझाई। 

आखिर मे पार्थ ने घर का खाना खाना शुरू कर दिया। सभी लोग रात का खाना पार्थ के साथ ही खाते थे। पार्थ को अब दादी के हाथो से बने नई नई स्वादिष्ट व पौष्टिक व्यंजन का इंतज़ार रहता था। अब तो पार्थ की माँ भी रविवार के दिन भोजन व्यवस्था देखने लगी। 

पार्थ अब पूरी तरह से सेहतमंद हो गया था। रोज एक फल खाता। आज दादी की गाँव जाने की तयारी चल रही थी। पार्थ उदास हो गया। दादी ने अपनी भीगी आँखे पोछि और पार्थ का खूब दुलार किया। फिर बोली, याद रखना मेरी बात...... 

पहला सुख, निरोगी काया। 



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