नई दिशा, नया सवेरा
नई दिशा, नया सवेरा
दिन भर हो रही बारिश से चारों ओर पानी के बहने हवा के झोंकों से लग रही ठंड़ ने मन में एक अजीब सी हलचल मचा दी थी। और ऊपर से मेंढक की आवाजें भी चंचल मन को कुरेदने से बाज़ नहीं आ रहीं थीं।
यकायक नज़र के सामने वो मंज़र उभर आया, जब बहुत कुछ पानी में डूबे जा रहा था। खेतों की मिट्टी, पास का मैदान, यहांँ तक की सरपट चलने वाले बहुत से जीव-जंतुओं के रास्ते भी अपनी लिक तोड़े जाने से बांवरे से हुए जा रहे थे।
इसी बीच उसी शाम एक निलरंगी सपोले की लिक भी तितरबितर सी हो गई थी। उसका रास्ता भी पानी में डूब गया था। वह अपना रास्ता तलाशता फिर रहा था। कभी खेत की मेढ पर चढ़ता, तो कभी पेड़ पर। जैसे-तैसे बहते पानी से बाहर निकली हुई जमीन तक पहुँचने का यथार्थ प्रयास करते हुए वह एक मुंढेर तक पहुँच गया। वहीं कहीं से उसे रास्ता कुछ आसान दिखा तो वह एक घर के बरामदे में जा पहुँचा।
घर की सीढ़ियों को सरपट चढ़ते हुए यकायक उसे स्मरण हुआ कि, ये घर कुछ जाना पहचाना सा जान पड़ा। वह यहाँ पहले भी आ चूका था। और, उस वक्त का हादसा याद करते ही उसकी हेकड़ी टाइट होने लगी। रोंगटें खड़ें हो गए। बिना ठंड के भी थरथर काँपने लगा था वो।
बचपन में अपनी माँ के साथ यहाँ तब भी गलती से ही आना हुआ था। और यहाँ के मकान मालिक ने उसकीं माँ को देखने भर से ही बेवज़ह पीट पीटकर मार डाला था।
वो दर्दनाक वाक्या याद आते ही निलरंगी सपोले का खून खौल उठा। अपनी माँ की बेमौत का बदला लेने के लिए खुद को तैयार ही कर रहा था। कि, घंटों पानी में तैरने से थकावट महसूस करने लगा वो।
और फिर यह सोचकर शांत हो गया कि, उस खतरनाक इन्सान को सज़ा देने से पहले अगर वह खुद ही लुढ़क गया तो कहीं वो भी छोटी सी उम्र में अम्मी से मिलने जन्नत न पहुँच जायें!
बर्बस, अक्लमंदी इस्तेमाल कर वह सपोला वहाँ से सरसराता हुआ पास में रहे खंडहरनुमा पत्थरों के ढेर में घुस गया। जहाँ पहले से ही एक और युवा साँप छिपकर बैठक जमाये था।
उस निलरंगी सपोले को निडरता से अपने अड्डे में भीतर घुसते न देख वो युवा साँप उस सपोले की घबराहट को भांप गया।
और उसे डराते हुए बिनबिनाने लगा। उसे उकसाता हुआ बोला -
"बहादुर साँप के सपोले हो तुम। निडरता तुम्हारें नस नस में दौड़नी चाहिए। तुमसे सभी ने डरना गँवारा हो सकता था और तुम हो कि डरते फिर रहे हो! झाडियों में छिपकर अपने बिरादरी का नाक कटवाओगे क्या?"
सपोले ने सारा वाक्या थरथर कांपते हुए गा कर सुनाया
युवा साँप शेरों की दहाड़ सा गुर्राता हुआ फुत्कार ने लगा - "चलो मेरे साथ, उसने तुम्हें मारने की कोशिश की! तुम्हें डराया! अब देखना मेरे रंग-ढंग, फन देखकर ही उसके हाथ-पैर फूल जाएँगे। और हाथ से डण्डा भी छूट जाएगा।"
दोनों उस खतरनाक इन्सान के घर में घुसे ही थे कि उन्होंने देखा काली चमड़ी वाला वो आदमी तो वहाँ पर नज़र न आया। सारा घर छान मारा। लेकिन, एक सुकुमार नन्हीं लड़की, चिमनी के उजाले में बैठी कोई रंगबेरंगी चित्रों वाली किताब पढ़ती नज़र आई।
युवा साँप ने सपोले को आइडिया दिया,
"चलो उजाले में, दीवार की ओर। हमें देखकर ही यह लड़की डर के मारे उस काली चमड़ी बाले आदमी को बुलाएगी। फिर हम उसे ख़ूब मज़ा चखायेंगें।
दोनों उस लड़की के सामने वाली खिड़की से सटे हुए धूपिया कोने में जा पहुँचे। उस लड़की को किसीके फुसफुसाने की आवाज़ें भी सुनाई दी। इधरउधर झाँकने पर उसकी नज़र उन पीले - काले सतरंगी और निलरंगी ऐसे दो साँपो पर पड़ी।
साँप तो पहले से ही उसकी ओर देखें जा रहे थे। लड़की बिना हिले डुले ही बुत सी बैठी रही। उसे अपने आप पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। कि, किताबों में देखीं गई तस्वीरों जैसे साँप असल जिंदगी में इतने खूबसूरत और चमकीले भी हो सकते हैं!!
लड़की का उन्हें यूँ घुर घुरकर देखना उनकी समझ के बाहर का था। उन दोनों सांँपों को परेशानी होने लगीं कि, आखिरकार उस काली चमड़ी वाले आदमी को ये लड़की चिल्लाते हुए पुकारती क्यों नहीं है? और कितना वक्त लेगी, और कब पुकारेगी अपने उस काले खुसट बाप को? और अब तक ये हमसे डर क्यों नहीं रही है?
उन्होंने अपनी सुरक्षितता का खयाल रखते हुए एक पल सोचा कि, किसी अजनबी जगह पर इतनी देर ठहरना ठीक नहीं होगा। वापस अपने सुरक्षित स्थान पर पत्थरों में जाकर घुस जाना चाहिए। और कोई दूसरी तरकीब सोचनी चाहिए।
वह लड़की उन दोनों साँपों को बस तिलस्मी अंदाज़ में एकटुक देखें जा रही थीं। उसके मन मस्तिष्क के भीतर उन साँपों से डरने का या उन्हें मारने का कोई विचार ही पैदा नहीं हो रहा था।
सुरक्षित स्थान पर लौटकर आते ही नीलरंगी सपोले ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा,
"बहुत अच्छा रहा। हमने कितने सुंदर और प्यारे से जीव को देखा! उसकी ओर एकटुक देखने की लालसा छोड़ना ही ठीक रहा। अगर कुछ देर और रुक जाता तो शायद उससे मोहब्बत कर बैठता!!"
युवा साँप ने अपना सिर उस सपोले के फन पर दे मारा। और मस्खरे अंदाज़ में बोला - "अह्हा, देखों तो ज़रा जनाब के नखरे! तुम्हें क्या लगा! तुम कोई जादुई दुनिया के तिलस्मी साँप हो! जो मोहब्बत से चुम्बन करनें भर से ही इन्सान में तब्दील हो जाते!!"
नीलरंगी सपोला युवा साँप के रुखे सूखे अंदाज़ से अमूमन थोड़ा सा नाराज तो हुआ था। पर दुसरे ही पल उदासी छंटते हुए सोचने लगा... अनुभवी हैं शायद.. इसलिए इतना रुखापन रास आ गया होगा।
बर्बस वह नीलरंगी सपोला मुस्कुरा दिया।
युवा साँप का तो मानो नशा ही उतर गया। वो झल्लाहट के मारे काँपने लगा।
और कड़े शब्दों में उसे निर्देश देते हुए चिल्लाया, ''तुम अपनी माँ की मौत को कैसे भूल सकते हो! तुम्हें तो उस खुसट बुड्ढे को मार गिराने की नई नई तरकीबें ढूँढ़नी चाहिए। और तुम हो कि उससे ईश्क लडाने की सोचते हो!
लानत है तुम पर!"
माँ की धुँधली सी यादों से सपोले का जी भर आया। बर्बस उसकी आँखों से मोटे मोटे आँसू टपकने लगे।
दुखती रग को सही वक्त पर दबाने के अपने उस हुनर पर फक्र करते हुए युवा साँप ने सपोले को और उकसाने की कोशिश की और पुख्ता कर दी।
अपने मकसद में कामयाब होते देख युवा साँप ने आख़री हथौड़ा भी मार ही दिया। और अपना फन ऊँचा उठाकर एक नज़र उस लड़की पर डालते हुए बोला,
"अगर मैं तुम्हारी जगह पर होता तो, बादशाह जहांगीर सा न्याय करता।
आँख के बदले आँख, हाथ के बदले हाथ और जान के बदले जान।"
सपोले को पहले तो ये बात समझ न आयीं कि, युवा साँप उसे उकसा क्यों रहा था!
हाँ वो बात सच थीं कि, उसकी माँ का कातिल वो काली चमड़ी वाला इन्सान ही था।
लेकिन, जान के बदलें जान लेकर वह कैसे सुकून से जी पायेगा!
और, जिस लड़की को दोस्त बनाना चाहता था, उसके बाप को मारकर तो वो उसकी नज़रों में कातिल बन बैठेगा। फिर वो कैसे उससे दोस्ती करेगी!!
बस, सपोले ने बिना कुछ कहे, उस लड़की की ओर अपना फन आगे बढ़ाते हुए मन ही मन कुछ ठान लिया। और उस लड़की से रूबरू होने के लिए आगे बढ़ा।
वो कंचन वरणीय लड़की भी नीलरंगी सपोले को एक और बार अपने इतने क़रीब पाकर बेहोश सी होने वाली थी। कि, सपोले ने बड़े अदब से कहना आरंभ किया - "जी, बिल्कुल भी घबराना नहीं। मैं दोस्ती करनें आया हूँ। युवा साँपों सी सोच नहीं बन पायीं मेरी। मैं, मारने में विश्वास नहीं रखता। अमन और शांति का पूजक हूँ।
इसलिए, तुम्हारें पापा की गलती की सज़ा तुम्हें उनसे जुदा करके नहीं देना चाहता।"
लड़की तो स्टेच्यू ही बन गई। हिलना डूलना बिल्कुल भी बंद हो गया। सपोले ने पास रखें पानी के जग में की कुछ पानी की बूँदें उस लड़की पर छांटने लगा।
ठंडे पानी की फुवार से लड़की होश में आई।
और नीलरंगी सपोले के ऊँचे खयालातों से इम्प्रेस होते हुए हौले हौले बुदबुदाने लगी - "ये सीख मैं भी अपने जीवन में हमेशा याद रखूँगी।
कि, बेवजह, न करों नुकसान किसीका। न हानि पहुँचाओ किसी को।
बूरा न देखों, बूरा न सुनों, बूरा न बोलो।
और, सबसे पहले बूरा न सोचों।"
युवा साँप को भी अपनी गलती का एहसास हो गया और वह अपना फन झुकायें सपोले के सामने नतमस्तक खड़ा रहा।
नीलरंगी सपोला अपनी नई लिक बनाता हुआ वहाँ से रुख़्सत हो गया। नये संबंधों को जोड़ने, एक नई दिशा में।