नए सामंत
नए सामंत


"बेटा सरकारी नौकरी पाना जितना मुश्किल है उससे ज्यादा मुश्किल उसे बचा कर रखना है।" —देव ने अपने जूनियर अफ़सर उदय को समझाते हुए कहा।
"लेकिन सर मैं विभाग के किसी भी अफ़सर के साथ पारिवारिक सम्बन्ध नहीं रखना चाहता, खासतौर पर भूप सर के साथ।" —उदय सकुचाते हुए बोला।
"ऐसा क्यों ?" —देव बोला।
"सर सारा विभाग जानता है कि ये जिस कर्मचारी के घर जाते है, उसकी बहन-बेटी पर कुदृष्टि रखते है......ऐसे में मैं भूप सर को अपने घर डिनर के लिए नहीं बुला सकता। मेरी अभी शादी हुई है, ऐसे व्यक्ति को देखकर मेरी पत्नी क्या कहेगी ?" —उदय चिंतित स्वर में बोला।
"बेटा तेरा गृह जनपद यहाँ से कितना दूर है ?" —देव ने चिढ़ कर पूछा।
"अस्सी किलोमीटर...." —उदय कुछ सोचते हुए बोला।
"अगर तेरा ट्रांसफर ८०० किलोमीटर दूर हो जाये तो....घर का दरवाज़ा देखने को तरस जायेगा। और ऐसा हो सकता है भूप सर एक इशारे पर। पिछले साल तुमने अपना कार्य टारगेट भी पूरा नहीं किया.....भूप सर की एक रिपोर्ट पर तू निलंबित होकर घर बैठ सकता है।" —देव ने उदय की आँखों में देखते हुए कहा।
"तो सर इसी डर से मैं भूप सर को अपने घर ले जाकर अपनी पत्नी की बेइज्जती कराऊं ?" —उदय डूबते स्वर में बोला।
"क्या बेइज्जती है इसमें ? भूप अधेड़ आदमी है, तुम्हारी पत्नी को देखकर थोड़ी देर के लिए खुश हो लेगा....इस से ज्यादा उसके बस का कुछ नहीं है।" —देव उदय के कंधे पर हाथ रख कर बोला।
"सर ये तो बिलकुल सामंती व्यवस्था के जैसा है, दबंगई है.....!" —उदय उदास स्वर में बोला।
"हाँ बेटा ये सरकारी अफ़सर नए सामंत है, नए दबंग है....नौकरी सही सलामत करनी है तो इनकी बाते माननी पड़ेंगी......सोच ले।" —देव अपने सामने रखी फाइल को खोलते हुए बोला।
हैरान परेशान सा उदय उठकर अपनी टेबल की और चल पड़ा।