नाम नहीं पसंद
नाम नहीं पसंद
"मम्मी,मेरा नाम 'आशा' किसने रखा?"
"क्यूँ, तुम्हारी बड़ी बहन का नाम नताशा रखा तोमिलाजुला नाम तुम्हारा रख दिया, और क्या?
"लेकिन,हमें अपना नाम खुद रखने का हक तो होना चाहिए ना.मुझे ये आशा नाम बिल्कुल नहीं पसंद.मैं किसी और नाम से बुलाया जाना पसंद करुँगी।"नन्हीं आशा तुनककर बोली.
"मेरी गुड़िया! तुम्हारा नामकरण संस्कार हो चुका है,अब कैसे बदलेगा नाम?"
"तो फिर से करवा दो नामकरण और कोर्ट से एफिडेबिट बनवा लेना".
ये दादी के शब्द थे और आशा के सवाल का खूबसूरत जवाब भी कि... मिले सबको अधिकार अपना नाम चुनने का।
