मुक्ति
मुक्ति
अनु के पति का देहांत हो गया। सूचना मिलते ही सुधा उसके घर पहुंची। अनु अंदर के कमरे में थी। सुधा ने सोचा , "थोड़ी देर बाहर बैठ लेती हूं। अनु बाहर नहीं आई तो वह अंदर ही उससे मिलने चली जाएगी।" दुनिया को तो हर जगह बात करने के लिए मिल जाती है। जितने मुंह , उतनी बातें। कोई कह रहा था, " कच्ची गृहस्थी ही छोड़ कर चले गए। कम से कम बेटी के तो हाथ पीले कर जाते । "
तभी दूसरा स्वर उभरा ," अरे, वह खुद भी तो तकलीफ में थे। पिछले छह महीने से तो बिस्तर पर ही थे , फालिज जो मार गया था। उन्हें अपने कष्टों से मुक्ति मिल गई।" किसी और ने कहा ," अरे, बिस्तर पर भले ही थे, पर थे तो। घर खुला रहता था। कम से कम सिर पर आदमी का हाथ तो था।" सब अपनी अपनी बात कर ही रहे थे तभी एक ने थोड़ी ज़ोरदार आवाज़ में कहा ," चलो, जो भी हुआ पर गए अच्छे समय में। श्राद्ध का महीना चल रहा है, मुक्ति मिल गई उन्हें तो। बड़ी किस्मत वालों को मिलती है श्राद्ध के समय मृत्यु।" सुधा बार - बार कमरे की ओर देख रही थी कि अब अनु बाहर आएगी, पर अनु नहीं आई। सुधा से न दुनिया वालों की बातें सहन ही रही थीं और न इंतज़ार ही। वह उठ ही गई। कमरे में जाके देखा कि अनु पलंग के एक कोने पर बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे। सुधा वहीं उस के पास ही बैठ गई। बात कहां से शुरू करे , समझ नहीं आ रहा था पर कुछ तो बोलना ही था। उसने भी वही आम शब्द कहे जो अधिकतर लोग बोलते हैं, " बहुत बड़ा दुख पड़ा है तुम पर, हिम्मत रखो। अब तुम्हें ही सब संभालना है। कच्ची गृहस्थी का बोझ तुम्हारे कंधे पर छोड़ कर चले गए। " अनु सुधा के काफी करीब थी। अनु ने सुधा की तरफ बिना देखे कहा," हां, कच्ची गृहस्थी छोड़ कर चले गए। अब मुझे ही संभालना है। पर पहले भी तो मैं ही संभालती थी। वो तो ढ़ंग से कमाता भी नहीं था। उसपे से ये फालिज का पड़ना। एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा। बहुत इलाज करवाया , सेवा भी की पर उसको तो जैसे ठीक ही नहीं होना था। उसने कसम खा ली थी मुझे तंग करने की। कहता था कभी ठीक नहीं होऊंगा । जान के मल - मूत्र बिस्तर में कर देता था। खाना खाते हुए उगल देता था। मुझे उससे घृणा होने लगी थी। किन्तु मैं सब कुछ जानते हुए भी उसका काम करने के लिए मजबूर थी। मेरा मन रात - दिन एक अंतहीन वेदना में डूबता जा रहा था। दुनिया को सिर्फ मेरा पति न होने का दुख दिखाई दे रहा है। श्राद्ध के समय मृत्यु जीने पर उसको मुक्ति मिली है या नहीं , ये तो मुझे नहीं पता पर मुझे उससे मुक्ति अवश्य मिल गई है।"