मॉर्फीन - 9
मॉर्फीन - 9


लेखक: मिखाइल बुल्गाकव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
क्या मैं अपने विचार सहजता से प्रकट कर रहा हूँ? मेरे ख़याल में, सहजता से.
ज़िंदगी? मज़ाक है!
१९ जनवरी.
आज रिसेप्शन पर अंतराल के समय, जब हम फार्मेसी में आराम कर रहे थे और सिगरेट पी रहे थे, तो कंपाउंडर ने पावडर की पुडिया बनाते हुए, बताया ( न जाने क्यों हँसते हुए), कि कैसे महिला कंपाउंडर ने, जो मोर्फिनिज्म से बीमार थी, और जिसके लिए मॉर्फिन हासिल करना संभव नहीं था, आधा गिलास अफीम-टिंचर ले लेती थी. मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस दर्दभरी कहानी के दौरान अपनी आंखें कहाँ छुपाऊँ, इसमें मज़ाक की क्या बात थी? वह मुझे घिनौना लगता है. इसमें हंसने जैसी क्या बात थी? क्या?
मैं दबे पाँव फार्मेसी से निकल गया.
“आपको इस बीमारी में हंसने जैसी क्या बात लगती है?”
मगर मैंने खुद को रोक लिया, रोक...
मेरी परिस्थिति में लोगों के साथ ख़ास तौर से हेकड़ी दिखाना ठीक नहीं है.
आह, कंपाउंडर. वह उतना ही क्रूर है, जितने ये मनोचिकित्सक, जो मरीज़ की किसी भी तरह, किसी भी तरह, किसी भी तरह मदद नहीं कर सकते.
किसी भी तरह से नहीं.
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पिछली पंक्तियाँ संयम के दौरान लिखी गई थीं, और उनमें बहुत कुछ अनुचित है.
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अभी चाँद की रात है. मैं उल्टियों के दौरे के बाद लेटा हूँ, कमजोर महसूस कर रहा हूँ. हाथ ऊपर नहीं उठा सकता और पेन्सिल से अपने विचार घसीट रहा हूँ. वे शुद्ध और गर्वीले हैं.
कुछ घंटों के लिए मैं खुशनसीब हूँ. मेरे सामने है एक सपना. मेरे ऊपर है चाँद और उस पर है मुकुट. इंजेक्शनों के बाद कुछ भी डरावना नहीं लगता.
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फरवरी.आन्ना आ गई है. वह पीली पड़ गई है, बीमार है.
बर्बाद कर दिया मैंने उसे. बर्बाद कर दिया, हाँ, मेरी अंतरात्मा पर पाप का बहुत बड़ा बोझ है.
कसम खाकर उससे कहा, कि फरवरी के मध्य में चला जाऊंगा.
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क्या मैं कसम पूरी कर पाऊंगा?
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हाँ. पूरी करूंगा.
अ(गर). सि(र्फ). ज़िंदा रहा तो.
३ फरवरी.
तो, टीला. बर्फ से ढंका और अंतहीन, उस टीले जैसा, जिससे बचपन में परीकथाओं के काय को स्लेज ले गई थी. मेरी आख़िरी उड़ान इसी टीले से होकर जायेगी, और मैं जानता हूँ, कि नीचे मेरे सामने क्या होगा, आह, आन्ना, महान शोक होने वाला है, जल्दी ही, अगर तुमने मुझसे प्यार किया है तो...
११ फरवरी.
मैंने ये फैसला किया है. मैं बोमगर्द से संपर्क करूंगा. उसीसे क्यों?
इसलिए कि वह मनोचिकित्सक नहीं है, क्योंकि जवान है और मेरा यूनिवर्सिटी का दोस्त है. वह तंदुरुस्त है. ताकतवर है, मगर नर्म स्वभाव का है, अगर मैं सही हूँ तो. मुझे उसकी याद है. हो सकता है, वह भरोसे...मुझे उससे सहानुभूति मिलेगी. वह कुछ न कुछ सोचेगा. चाहे तो मुझे मॉस्को ले जाए.
मैं उसके पास नहीं जा सकता. छुट्टी मुझे मिल गई है. पड़ा हूँ. अस्पताल नहीं जा रहा हूँ.
कंपाउंडर की मैंने शिकायत कर दी. खैर, मैं हँस दिया...कोई बात नहीं. वह मुझे देखने आया था. मेरी बात सुनने की पेशकश की.
मैंने इजाज़त नहीं दी. फिर से इनकार के लिए बहाने? मैं कोई बहाने नहीं बनाना चाहता.
बोमगर्द को चिट्ठी भेज दी है.
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लोगों! क्या कोई मेरी मदद करेगा?
मैं दयनीयता से चिल्लाने लगा. और अगर किसी ने इसे पढ़ लिया , तो सोचेगा – झूठ है. मगर कोई नहीं पढेगा.
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बोमगर्द को लिखने से पहले सब कुछ याद किया. ख़ास तौर से नवम्बर का मॉस्को का रेल्वे स्टेशन यादों में तैर गया, जब मैं मॉस्को से भागा था. कैसी भयानक रात थी.
चुराई हुई मॉर्फिन का इंजेक्शन मैं टॉयलेट में लगाता था...ये बड़ा दुखदाई था. दरवाज़ा खटखटाया जा रहा था, आवाजें गरज रही थीं, फौलाद जैसी, डांट रहे थे कि मैं बड़ी देर तक अन्दर बैठा हूँ, और हाथ उछल रहे हैं, दरवाज़े का हुक उछल रहा है, और देखो, लगता है, दरवाज़ा अभी खुल जाएगा...
तभी से मुझे फोड़े भी हो गए.
ये सब याद करके रात में रोता रहा.
१२ तारीख की रात.
मैं फिर से रो पडा. रात में यह कमजोरी और नफ़रत क्यों?
१९१८ की १३ फरवरी को गरेलव्का में.
मैं खुद को मुबारकबाद दे सकता हूँ: मैं चौदह घंटे से बिना इंजेक्शन के हूँ! इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती. धुंधली और हल्की सफ़ेद भोर हो रही है.
क्या मैं अब बिलकुल ठीक हो जाऊंगा?
संजीदगी से सोचा जाए तो मुझे बोमगर्द की ज़रुरत नहीं है, और किसी की भी ज़रुरत नहीं है.
अपनी ज़िंदगी को एक मिनट के लिए भी बढ़ाना शर्मनाक है. ऐसी – नहीं, इसकी इजाज़त नहीं है.
दवा मेरे पास ही है.
यह ख़याल मुझे पहले क्यों नहीं आया?
तो, खैर, आगे बढ़ते है. मुझे किसी को कुछ नहीं देना है. मैंने सिर्फ अपने आप को ही मार डाला है. और आन्ना को. मैं कर ही क्या सकता हूँ?
वक्त घाव भर देगा, जैसा अम्नेर गाया करती थी. उसके साथ , बेशक, सब कुछ सहज और आसान था.
नोटबुक बोमगर्द को. हो गया....
अध्याय ४.
चौदह फ़रवरी १९१८ की सुबह, दूर दराज़ के छोटे से शहर में मैंने सिर्गेइ पलिकोव के ये नोट्स पढ़े. और यहाँ वे संपूर्ण हैं, बिना किसी परिवर्तन के. मैं मनोचिकित्सक तो नहीं हूँ, विश्वासपूर्वक नहीं कह सकता कि वे शिक्षाप्रद हैं या नहीं, आवश्यक हैं या नहीं? मेरे ख़याल से, आवश्यक हैं.
अब, जब दस साल बीत गए हैं, तो दया और भय, जो इन नोट्स के कारण उत्पन्न हुआ था, बेशक, ख़त्म हो गया है. ये स्वाभाविक है, मगर, इन नोट्स को अब दुबारा पढ़ने के बाद, जब पलिकोव का जिस्म कब का नष्ट हो चुका है, और उसकी याद पूरी तरह से लुप्त हो चुकी है, मेरी उनमें दिलचस्पी अभी तक बरकरार है. हो सकता है, वे आवश्यक हों? मैं इसके पक्ष में निर्णय लेने की स्वतंत्रता लेता हूँ. आन्ना के. की १९२२ में टाइफस से मृत्यु हो गई और वहीं, जहाँ वह काम करती थी. अम्नेरिस – पलिकोव की पहली पत्नी – विदेश में है. और वह वापस नहीं आयेगी.
क्या मैं इन नोट्स को प्रकाशित कर सकता हूँ, जो मुझे भेंट की गई हैं?
कर सकता हूँ. टाइप कर रहा हूँ.
बोमगर्द.
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