Mukta Sahay

Others

3.5  

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मिट्टी की ख़ुशबू

मिट्टी की ख़ुशबू

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उन दिनो मैं मेरी बेटियों के साथ अपने एक रिश्तेदार के घर शादी में गयी थी। शहर में पली मेरी बेटियों के लिए गाँव में होने वाली यह शादी बड़ी ही रोमांचक रही। पहली बार मेरी बेटियों ने गाँव देखा था। हम अपनी ही गाड़ी से गए थे ताकि हम गाँव घूम सकें। वहाँ पहुँचते- पहुँचते हमें शाम हो गयी थी। हरी-हरी लहराती फ़सलों के बीच ढलते हुए सूरज को देख मेरी बेटियों को गाँव पहली ही नज़र में पसंद आ गया। उनके मन में ऐसे खूबसूरत नज़ारे देखने की ललक और तेज हो गयी।

जब मैं और मेरे पति इस शादी में शामिल होने की सोच रहे थे तो हमारी सबसे बड़ी चिंता बच्चों को ले कर थी कि इन्हें कही परेशानी ना हो लेकिन फिर भी हम उन्हें मिट्टी की ख़ुशबू से मिलवाना चाहते थे। यह सोच कर हमने बच्चों को साथ आने के लिए बहुत मुश्किल से राज़ी किया। यहाँ पहुँचते ही दोनो में जो उत्साह दिखा, उससे हम दोनो पति पत्नी थोड़े आश्वस्त हो गए कि अब आगे के दिन शायद अच्छे निकल जाएँगे।

हरी लहराती फ़सलों और सूर्यास्त को निहारते हम शादी वाले घर तक पहुँच गए। यूँ तो सभी के ठहरने का अच्छा प्रबंध किया गया था लेकिन शहर से आयी मेरी दोनो बेटियों के लिए कुछ ख़ास इंतज़ाम किए गए थे जैसे कमरे से लगा बाथरूम, सोने के लिए गद्देदार बिस्तर, पीने के लिए बोतल का पानी इत्यादि। लोगों से मिलते मिलते और गाड़ी से सामान निकल कर कमरे में जमाते शाम हो गयी थी। अब शुरू हुआ मच्छरों का आना और हमारी परेशानी का बढ़ना। हम दोनो पति-पत्नी साँस रोके खड़े थे की अब हमारी बेटियाँ क्या नख़रे करेंगीं। दोनो बेटियाँ परेशान होने लगी। अभी हम बातें ही कर रहे थे कि छोटू, जो हमारा ध्यान रखता था, मच्छर भगाने का इंतज़ाम कर लाया था। उसने चारों तरफ़ नीम की पत्तियों का धुआँ कर दिया जिससे मच्छर भाग गए। मेरी बेटियों को यह देसी उपाय बड़ा पसंद आया। 

सफ़र की थकान मिटाने के लिए हम सब नहाना चाहते थे। यूँ तो कमरे से लगे बाथरूम में पानी का इंतज़ाम था, लेकिन छोटू ने ज़िद्द कर के कहा की, “दीदी कुएँ के पानी से नहाओ। उससे नहा कर सारी थकान मिट जाएगी।" हमारे मना करने पर भी वह कुएँ से पाने ले आया। सच में उस पानी से नहाकर बड़ा ही तरो-ताज़ा महसूस हुआ। तैयार हो कर हम सब शादी की रस्मों में शामिल होने आ गए। शहरों की शादी में होने वाला संगीत, जहाँ डी.जे.  द्वारा बजाई जाने वाली तेज संगीत होती है, से बिलकुल अलग ढोल-ताशे की ताल पर गाए जाने वाले लोक-गीतों ने हम सभी का मन मोह लिया। अभी हम लोग संगीत का मज़ा ले रहे थे की ताई जी हमें खाने पर बुलाने आ गयी। यूँ तो हमारा मन वहीं बैठ कर संगीत सुनने का हो रहा था, लेकिन हम लोग चाहते थे कि खाना खा कर जल्दी सो ले, ताकि हम सुबह सूर्योदय का मज़ा ले सके। जब खाने वाली जगह पर पहुँचे तो देखा बड़ी सफ़ाई से ज़मीन पर बैठ कर खाने का इंतज़ाम था। हम सभी नीचे बैठ गए और पत्तों की थालियों में खाना खाए। गाँव की ताजी सब्ज़ियों का स्वाद बड़ा ही अनूठा था। खा कर हमलोग अपने कमरे में आ गए । हम दोनो पति-पत्नी इस बात से खुश थे कि अभी तक हमारे बच्चों को कोई परेशानी नहीं हुई है। क्योंकि उनकी परेशानी का मतलब था हम दोनो का सिर दर्द। सुबह हम सभी जल्दी उठ कर बाहर बगीचे में चले गए ताकि उगते हुए सूरज की स्वर्णिम किरणों को देख सके। उगते हुए सूरज का वो आलौकिक नज़ारा जो हम शहर में कभी ना देख सके, उसे देख कर हम मंत्र मुग्ध हो गए। दिन भर का अनुभव भी बड़ा अनूठा रहा। ऊँचे पेड़ो के छाँव की ठंडक, कुएँ का सौम्य पानी, घड़े का शीतल अमृत, लोगों का सरल स्वभाव कुल मिला कर पूरा दिन एक अदभुत अनुभव भरा रहा। रात की शादी में भी सभी ने खूब मज़ा किया। सुबह हमलोग से वापस शहर आ गए, गाँव की उस अदभुत, मुग्ध करने वाली यादों को मन में संजोए । 

मेरी बेटियों के लिए तो यह एक अनूठी यात्रा रही। हम भी खुश थे कि हमने उन्हें ज़िंदगी के एक पहलू से सफलतापूर्वक मिलाया।



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