मेरी नज़र से

मेरी नज़र से

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सियाचिन बॉर्डर.. ग्लेशियर...यहाँ का सुबह का नज़ारा सबसे सुन्दर मनलुभावना होता हैं..

मगर आज अच्छा नहीं लगा.. नज़र उठाके देखा तो दो जवान शहीद पड़े थे..!

एक धमाकेने पुरी जगह तहसनहस कर दी थी..ये मालूम पड़ रहा था !

मैं कैसे बच गया !! पता नहीं..मगर मैं हिल नहीं पा रहा था ! पैर सुन्न हो गया था.. और काला भी पड़ गया था ! पता नहीं कितने घंटो से..या फिर कितने दिनों से यहाँ पड़ा हु..और मैंने फिर होश गवां दिया..!

और जब फिर से आँख खुली तो खुद को आर्मी की अस्पताल के आईसीऊ मैं पाया.. तभी डॉ. अमरजीत (मेरा दोस्त)को सामने पाया उसने बताया.." यार तुम 6 दिन से वहां पड़े थे.. लोकेशन नहीं मिल रहा था..रेस्कयूँ टीम ने बड़ी मुश्किल से तुम्हे ढूढ़ा...तुम्हारा पैर पुरी तरह से नस्ट हो चूका हैं.. उसका ज़हर पुरे बदन मैं फैलता जा रहा हैं..पता नहीं क्या होगा !"मेरे लिए वोह थोड़ा गमगीन हो गया..

उसका चहेरा देख मैं समझ गया..के ज्यादा दिन मैं नहीं बचनेवाला.

बस फिर तुरंत कुछ फैसला लिया दूसरे दिन जब डॉ. अमरजीत आया.. हाल पूछने..तब मेंंने कहा.. "यार तु डॉक्टर हैं..अगर में ना बचू और तब तक मेंरी ऑंखें ठीक रहे तो इन आँखों से मेरी माँ का इलाज करवाना...

हो सके आखरी पल के लिए ही सही... वोह मुझे देख सके....आखरी वक़्त में इतना तो कर सकता हू ना !"

डॉ. अमरजीत ने वादा किया...की अगर कुछ ऐसा हुआ... तो जो तुमने सोचा हैं वही होगा...!

दो दिन बाद मेरे बदन पे तिरँगा लिपट चूका था...सहादत की वजह से...डॉ.अमरजीत ने अपना वादा पूरा किया. !..मेरी आंखे निकली गई माँ के इलाज के लिए.. और मेरे कॉफिन. को संभाल के रखा गया..!

माँ को अस्पताल में भर्ती करवाया गया वोह डॉ.अमरजीत. को पूछ रही थी " बेटा ये सब क्या ??"

तब वोह बोला "माँ....आपके बेटे को देखना हैं ना !! ये उसी की तैयारी हैं.."

ऑपरेशन सफल हो चूका था..माँ बहोत खुश थी..की किसी की नज़र से वो आज देख पा रही थी..वो अपने बेटे को ही दिलसे लम्बी उम्र की दुआ दे रही थी..

और आज बेटे को खुद की नज़र से देखने वाली थी ..

दो दिन बाद डस्चार्ज मिल गया. अमरजीत खुद माँ को लेने आया.. रास्ते में अपने बेटे के बारे में बहोत सवाल कर रही थी...मगर अमरजीत हिम्मत कर के भी कुछ बता ना सका....दोस्त जो खो चूका था उसका ...

माँ के आने से पहले...मेरा कॉफिन घर पहुंच चूका था

गांव के घर के बाहर. आर्मी की गाड़िया खड़ी थी..जब माँ घर की और गई..तब आर्मी के जवान और रिश्तेदार वहां खड़े थे..अंदर जाके मेरे नामवाला कॉफिन देख..माँ सुन्न रहे गई..कॉफिन खोलते ही..तिरंगेमे..लिपटा ..और आखो पे पट्टी. लगाके मैं हमेशा के लिए सो चूका था...माँ बिलख बिलख के रोने लग गई..मगर दिलसे बेटे पे फक्र कर रही थी..मगर ये आँसू नहीं रुक रहे थे...

माँ ने मेरे चहेरे को सहलाया..और पट्टी देख..हैरान रह गई..

तब अमरजीत पास आया और बोला.."माँ.. आज आपका बेटा आपके नज़रों से खुद को देख रहा हैं.." और सारी बातें बता दी...

तब माने तुरंत अपने आँसू पोछ लिए और कहा.."आज से मेरे बेटे की आँखों मैं कभी आँसू नहीं आयेंगे." और अमरजीत ने देखा..माँ की मुस्कान मैं वो सारे आंसू दिल मैं हमेशा के लिए दफ़न हो चुके थे...!


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