मेरी खुशी
मेरी खुशी
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अपनी शादी के बाद पापा की लिखी चिट्ठियों को पाने का सौभाग्य मिला। जन्म से शादी तक साथ ही रहना हुआ था हमारा। लगभग छः महीने मैं अपने दादा-दादी के संग रही थी जब मैं कक्षा तीन में पढ़ती थी। उस दौरान मुझे सम्बोधित करते हुए कोई पत्र आया हो यह स्मरण में नहीं है।
चिट्ठियों में कभी भोजपुरी से शुरुआत की गयी होती तो मध्य से हिन्दी में बातें लिखी होती और कभी हिन्दी से शुरुआत की गयी होती तो मध्य से भोजपुरी में बातें लिखी होती... ।
कौतूहल और बेसब्री से उनके लिखे पत्र की मैं प्रतीक्षारत रहती।
