Madhu Vashishta

Others

4.5  

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मेरा मायका

मेरा मायका

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"बुआ जी कल सवेरे की फ्लाइट से बड़ी बुआ जी दिल्ली पहुंच जाएंगी, आप के लिए भी मैं ऊबर (टैक्सी)बुक करवा दूंगा आप सिर्फ समय बतला दो कि कितने बजे तक आओगी?"

"अरे पवन कुछ काम तो अपने भाई को भी करने दे, मैं अपने बेटे विनय से ही कह दूंगी वही बुक करवा देगा और मैं आ जाऊंगी।"

फोन रखने के तुरंत बाद ही गीता दीदी का भी फोन आ गया।

"मानसी तुम कितने बजे तक निकलोगी , पवन तो उबर बुक करने के लिए कह रहा था लेकिन मैंने उसे कह दिया कि मानसी और मैं हम दोनों साथ ही आ जाएंगे। प्रोग्राम बतला देना , मैं टैक्सी लेकर तेरे घर ही आ जाऊंगी फिर दोनों साथ चलेंगे। मैं तो सोच रही थी कि अब कहां जाना होगा लेकिन----- अच्छा।" मानसी की आंखों में आंसुओं की झड़ी लग गई थी, यही हाल शायद गीता दीदी का हुआ होगा तभी तो उन्होंने फोन रख दिया।

मानसी, गीता और रीना , इन तीनों बहनों का एक ही भाई था रजत। रीना दीदी पुणे में रहती थी, गीता दीदी अलीगढ़ और मानसी गाजियाबाद में रहती थीं। मम्मी पापा के समय से ही ऐसा होता था कि पापा दिसंबर में सब बेटियों को बुलाते थे और हमेशा 31 दिसंबर पूरा घर साथ रहता था , नए साल में ही बहने विदा होती थी। ऐसा करते हुए रजत और मम्मी पापा का यही ख्याल था कि अब तो पूरा साल हम सब साथ ही रहे हैं। पिछले साल में आते थे और नए साल पर अपने घर जाओगे।

वैसे और समय तो अपनी सुविधानुसार बहनें आती जाती रहती थी लेकिन 31 दिसंबर का इंतजार हर बहन बहुत बेचैनी से करती थीं यदि किसी कारणवश कोई ना आ पाए तो सब उसे बहुत मिस करते थे। पापा समय से पहले ही बेटियों के आने की बुकिंग करवा दिया करते थे। धीरे धीरे यह नियम ऐसा हो गया कि ससुराल में सब को ही पता था कि यह समय मायके जाने का है। यदि कोई बहन ज्यादा दिन ना फिर रुक सके तो भी वह 31 तारीख को आ कर 1 तारीख को ही चली जाती थी लेकिन साल भर मायके जरूर रहती थी।

31 दिसंबर की रात सब मिलकर पूरी रात ही धमाचौकड़ी मनाते थे और मां सब बहनों के लिए लड्डू और काजू बादाम वाली नमकीन बनाकर रखती थीं। मम्मी और पापा के बाद में भी रजत और उसकी पत्नी (भाभी) वैसे ही बहनों के लिए बहुत सा सामान बनाकर रखती थीं। रजत अब भी हमेशा बड़ी दीदी के लिए हवाई जहाज की बुकिंग करवा दिया करता था। बहनों के लिए भी ऊबर (टैक्सी) भेज दिया करता था। अब तो सब बहनों के घर में भी उनकी बहुएं आ चुकी थी। सब के बच्चे बड़े थे और शादीशुदा थे लेकिन फिर भी सबने दिसंबर में मायके जाना नहीं छोड़ा था। पिता के बाद में मां के साथ रहना भी बहुत अच्छा लगता था लेकिन अब तो मां भी साथ छोड़कर जा चुकी थीं।

पिछले साल कोरोना के कारण रजत भी नहीं रहा। इस बार तीनों बहनें मायके जाने के लिए ना तो तैयार थीं और ना ही उत्साहित। उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि मायके जाने वाली यह रीत अब भी चलेगी क्या? शायद मानसी के पति वर्मा जी ने उनकी बातें सुन ली थीं। उन्होंने मानसी को यही कहा कि तुम खुश किस्मत हो कि तुम्हारा मायका अभी भी बना हुआ है। पवन को मना मत करना। तुम्हें जब भी जाना हो चली जाना, हम हमेशा के जैसे नए साल में ही मिलेंगे।

मानसी ने गीता दीदी को फोन मिलाया और कहा दीदी आप ही समय बतला देना कि आप मेरे घर कब तक पहुंच जाओगी मैं आपको तैयार मिलूंगी।

ठीक है मैं टैक्सी वाले से बात करके तुम्हें बतला दूंगी वैसे कल सुबह ही निकलेंगे और उसके बाद मानसी अपने मायके के ख्यालों में ही खो गई और अपनी जाने की तैयारी में लग गई।

इस साल भी सब मायके में मिलेंगे, अश्रुपूरित आंखों से सब बहनें शायद कुछ ऐसा ही सोच रहीं थीं। सच है माता-पिता भले ही ना रहे जब सारे भाई बहन इकट्ठे बैठते हैं तो किसी के चेहरे में मां की पिता की झलक जरूर मिलती है ऐसा लगता है कि सब साथ हैं।

पाठकगण, लड़कियों के लिए मायका कितना अपना होता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है मायके में ही उन का बचपन और उसकी यादें सुरक्षित होती हैं।



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