मछली जल की रानी है
मछली जल की रानी है
बचपन की चार लाइन वाली कविता हम सब ने कितनी बार गायी होगी।अरे,वही मछली वाली।
मछली जल की रानी है
जीवन उसका पानी है
हाथ लगाओ डर जायेगी
बाहर निकालो मर जायेगी
बचपन में तो हम अपने छोटे छोटे हाथों से मछली बनाते हुए टूटी फूटी आवाज में एक्टिंग करते हुए गाते थे।क्या लड़का और क्या लड़की,हम सब बच्चों ने इसे गाया हुआ है।
आज पता नहीं क्यों अखबार पढ़ते हुए मुझे उस कविता का खयाल आया।
मछली जल की रानी तो तब तक है जब वह अपने घर में है।अब आप लोग कंफ्यूज मत होइए।अव्वल तो मछली का 'अपना ' कोई घर नहीं होता है।कहने के तो उसके पता नहीं कितने घर होते है जैसे माँ बाबा का,पति का अपना घर।अरे हाँ, मैं फिर से मुद्दें से भटक रही हुँ।पता नही मैं मछली को क्या समझ कर बात कह रही हुँ।चलो,इसी से आगे बढ़ते है।हाँ, तो मैं कह रही थी की मछली इस पानी से उस पानी में बड़ी आसानी से खुद को ढाल लेती है।मछली जहाँ भी रहती है उसे जिंदगी भर अपना घर मान कर सँवारती रहती है।
लेकिन आज समय कितना बदल गया है,नहीं? आज कल तो मछली को सिर्फ हाथ ही नहीं लगाते,उसे नोचखसोट कर उसकी रूह को मार देते है और अगर भी दिल नही भरा तो फिर बड़ी बेदर्दी से उसके जिंदा ही आग के हवाले कर देते है।
अब मछली क्या करे?हाथ लगाने पर भी मर रही है और बाहर निकालने के बारे में क्या कहूँ?
चलो, बिना किसी कंफ्यूजन के फिर से हम वही कविता दोहराते है ......
मछली जल की रानी है
जीवन उसका पानी है
हाथ लगाओ डर जायेगी
बाहर निकालो मर जायेगी ......
