मैंने की खुद से शादी
मैंने की खुद से शादी
मैंने की खुद से शादी मेरा नाम प्रिया है। मैंने मनोविज्ञान विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। मैं जिन जिन से मिलती एवं बात करती हूँ, उनका मनोविज्ञान अच्छे से समझ लेती हूँ। मैं सब का मनोविज्ञान भली प्रकार जानती हूँ, उसी के साथ मुझे अपने मन में क्या है, यह भी स्पष्ट समझ में आता है।
मैं अपने बारे में और बताऊँ तो, पहली बात यह है कि मैं साधारण परिवार में अपने छोटे भाई सहित, अपने मम्मी-पापा की दो संतानों में से एक हूँ। अब मैं 25 वर्ष की हुई हूँ। अब मेरे पापा चाहते हैं कि मेरे लिए एक विवाह प्रस्ताव अनुसार, मैं एक पटवारी से विवाह कर लूँ। उनका कहना है कि पटवारी अच्छा कमा लेता है, अतः उसके साथ मेरा जीवन अच्छे से बीतेगा।
अपने बारे में इतना बता देने के बाद मैं एक किताब के जैसे, अपना मनोविज्ञान खोलकर आपके सामने रख रही हूँ -
यद्यपि मैं साधारण परिवार में जन्मी बेटी हूँ मगर स्कूल में बड़ी कक्षाओं में आते आते तक, मेरी महत्वाकांक्षा एक असाधारण लड़की बनने की हुई थी। असाधारण होने के लिए मुझे पढ़ने में कुछ विशेष करना चाहिए था किंतु असाधारण होने की महत्वाकांक्षा के वशीभूत, पढ़ने की टेबल पर बैठकर पढ़ने के स्थान पर, मैं एक सेलेब्रिटी होने के सपने सजाने लगी थी। उस समय मेरे मम्मी-पापा यह देखकर प्रसन्न होते थे कि मैं अपना अधिकतर समय पढ़ने में लगा रही हूँ।
ऐसा दो तीन वर्षों तक हुआ था, जब मेरी फाइनल एग्जाम का परिणाम ‘सी ग्रेड’ ही रह जाता था। तब पापा-मम्मी यह मानने लगे थे कि मैं अल्प बुद्धि लड़की हूँ। जबकि मैं मानती थी कि मैं कुशाग्र बुद्धि वाली लड़की हूँ। मैं जानती थी, मुझे ‘सी ग्रेड’ मिलने का कारण, मेरा दिखाई पड़ने वाला, अध्ययन में अधिक समय, एक भ्रम मात्र था। वास्तव में स्टडी टेबल पर रहने का मेरा अधिकतर समय, मेरे भावी जीवन के सपने देखने, गढ़ने एवं बुनने में बीतता था।
तब स्कूल में अच्छा नहीं कर पाने के कारण, पापा मुझे लेकर अधिक उत्साहित नहीं रह गए थे। बारहवीं के परिणाम अनुसार, उन्होंने मुझे पहले बी.ए. में फिर एम. ए. (मनोविज्ञान) के लिए एक साधारण कॉलेज में प्रवेश दिलाया था। स्पष्ट है कि इन उपाधियों के लिए पढ़ते हुए भी, मेरे जागी आँखों के समक्ष, दिन रात मेरे सपने ही एक मूवी की तरह चला करते थे।
इस प्रकार से मैं जो कर पाई थी, उससे मैं अपने परिवार की साधारण परिस्थिति के जैसे, स्वयं भी साधारण संभावना वाली युवती ही बन पाई थी।
ऐसे में अभी मेरे पापा को, पटवारी की पत्नी के रूप में मेरा सुखद जीवन देखना सही था। पापा मम्मी का यह आम पेरेंट्स की तरह का मनोविज्ञान मैं समझ सकती हूँ। हमारे समाज में लगभग सभी पालक, अपनी पाल्य बेटी को खाते पीते परिवार में ब्याह कर, बेटी के प्रति अपने दायित्व से मुक्त होकर अपनी वृद्धावस्था को संतोष से जीना चाहते हैं।
जब पापा का दबाव मुझ पर पटवारी से विवाह करने को लेकर बढ़ने लगा तब मैं इसके लिए स्वयं को तैयार नहीं कर पा रही थी। मैं असाधारण बन पाने की युक्ति सोचती रहती थी।
मैं स्वयं को अभी तक एक ही रूप में असाधारण रख पाई थी कि बालिका से किशोरी और फिर युवती होने तक की अपनी जीवन यात्रा में, मैं किसी सामान्य लड़की की तरह एक या कुछ बॉय फ्रेंड के चक्करों में नहीं पड़ी थी। अगर ऐसा होता तो ऐसे किसी एक से विवाह करके, मैं भी एक साधारण लड़की ही बनी रह जाने को विवश हो जाती।
पिछली रात मैं सो नहीं पाई थी। मेरे सेलेब्रिटी होने के सपने एवं पापा के पटवारी से विवाह करने के दबाव के बीच की उलझनों ने मुझे पूरी रात जगाए रखा था।
ऐसे जागते हुए मैंने अपनी वर्तमान योग्यता पर गौर किया था। मैं सोचती रही थी कि 25 वर्ष की होने तक मैं कुछ विशेष नहीं कर पाई हूँ, ऐसे में असाधारण बन पाने के लिए, अब मेरे पास क्या विकल्प हैं।
तब मुझे एक विकल्प यह समझ आया कि मैं एक अच्छा ऑटोमैटिक कैमरा खरीद लूँ। फिर मैं नित दिन नाना प्रकार से मेकअप करुं। मैं किराए के लाए नए नए तरह के परिधानों में सजूँ। ऐसे श्रृंगार के बाद, कभी अपनी कमर को मटकाते हुए, कभी सामने के अंगों के आकर्षण को उभारते हुए एवं कभी पीछे बैकलेस टॉप्स में पीठ दर्शन कराते हुए, ऐसी कुछ मुद्राओं के वीडियो बनाऊं। फिर उन्हें नेट पर अपलोड करूं। इस प्रकार मैं अपनी एक पहचान बनाऊँ।
मैंने इस विकल्प को स्वयं ही यह सोचते हुए रिजेक्ट किया था कि आज ऐसी लड़कियों/महिलाओं की भरमार हो गई है। उनके बीच अपने को विशेष बनाने में मुझे कई वर्षों लग सकते हैं। फिर भी मेरे अपने मंतव्य में सफल होने की गारंटी नहीं होती है। अगर मैं यही करूं तो व्यूअर संख्या बढ़ने पर मैं कुछ अच्छी कमाई तो कर सकती हूँ मगर साधारण युवती की पहचान से ऊपर आने की कोई प्रबल संभावना नहीं बनती है।
इसी समय मैंने यह भी सोचा कि मेरे पुराने विचारों के समर्थक, पापा-मम्मी मुझे इस बात की अनुमति नहीं देंगें। मुझे यह भी पता है कि मैं अब असाधारण होने के लिए अधिक समय प्रतीक्षा कर सकने की स्थिति में नहीं हूँ।
अगला विकल्प मेरे विचार में यह आया कि मुझे, एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता के द्वारा अपनी चौथी पत्नी को तलाक देने का इंतजार करना चाहिए। जब वह ऐसा कर दे तो मुझे उसकी पाँचवीं पत्नी होने की कोशिश करना चाहिए। मुझे अपने इस विचार में शंका हुई कि पता नहीं अभी कितने दिन में यह तलाक हो। अगर इसमें अधिक दिन लग गए तो पापा तो मुझे पटवारी की वधु बनाकर विदा कर देंगें। फिर भी मानलो अभिनेता का तलाक जल्दी हो भी गया तो उसकी पाँचवीं पत्नी होकर प्रसिद्धि पाने के लिए पता नहीं, लड़कियों/महिलाओं की कितनी बड़ी कतार लगी हो। इसमें उसकी पत्नी होने का अवसर मुझे ही मिले इसकी कोई गारंटी भी तो नहीं लगती है। मैंने यह विचार त्याग दिया था।
तब इसी से मिलता हुआ एक विकल्प मुझे अधिक उपयुक्त लगा कि एक प्रसिद्ध हीरो एवं एक राजनीतिक पार्टी के नेता पचास से अधिक आयु होने पर भी अभी कुंवारें हैं। उनसे आधी से कम आयु की मैं लड़की, अगर उनमें से किसी के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर जाऊँ तो मुझे किसी बात का इन्तजार नहीं करना पड़ेगा। यह मैं कल भी करना चाहूँ तो संभव हो सकता है। फिर अगर इनमें से कोई भी एक ने मुझसे शादी करना पसंद कर लिया तो मेरी तो बल्ले बल्ले हो जाएगी। मुझे तुरंत ख्याति और चर्चा मिल जाएगी। साथ ही मैं बेशुमार दौलत की मालिक भी हो जाऊँगी।
अधिक विचार करने पर मुझे अपने इस विचार में भी अधिक संभावना नहीं दिखी थी। मुझे इस सच के दर्शन हुए कि इन दोनों ने पचास से अधिक वर्ष की आयु तक, बिना विवाह के काम चला लिया है। निश्चित ही इन दोनों ने मेरी जैसी लड़कियों में से अनेकों को, अपनी कुछ रातों का पार्टनर बना के छोड़ दिया है। निश्चित ही वे मेरा भी यही हश्र करेंगें। मैं ख्यात और असाधारण होने की अति महत्वाकांक्षा में अपने ऐसे हश्र को तैयार नहीं थी। मैंने इस विचार को मन में से निकाल दिया था।
मुझे रातों रात कुछ ऐसा अनूठा करने की आवश्यकता थी, जिसमें थोड़ा भी खतरा न हो और जिससे मुझे चर्चा और ख्याति मिल जाए।
तब मेरे मन में एक नया विचार उत्पन्न हुआ था। मैंने सुना और पढ़ा था कि कुछ लड़के या कुछ लड़कियाँ एक ही जेंडर में विवाह करते हैं। चूँकि ऐसे विवाह भी अब अनेकों हो गए हैं अतः उनको भी अब अधिक चर्चा नहीं मिलती है। मैंने सोचा कि क्यों ना मैं खुद से ही शादी कर लूँ। इसमें किसी दूसरे की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी और यह काम तुरंत किया जा सकेगा। चूँकि इसके पूर्व में ऐसा अनूठा विवाह किसी ने नहीं किया है इसलिए मुझे भारत का मीडिया अपनी टीआरपी बढ़ाने की लालच में चर्चा दिलवा देगा। ऐसे पूरी दुनिया, मेरा नाम जानने लगेगी। यह विचार मुझे सबसे उत्तम प्रतीत हुआ।
मैंने आगे विचार किया तो मुझे एक संभावना और दिखाई दी कि कहीं भी कुछ नया किया जाए तो कुछ न कुछ उसके समर्थक मिल ही जाते हैं। ऐसे में यदि मेरी देखादेखी कुछ और करने लगें तो मैं एक नई प्रथा एवं समाज व्यवस्था की प्रणेता के रूप में विख्यात हो जाऊँगी। भगवान अगर मुझ पर अधिक उदार हुआ, तब जिस विवाह में कोई गृह कलह/हिंसा नहीं तथा जिसमें टूटने (तलाक) का कोई खतरा नहीं, ऐसे विवाह का उत्तम विचार देने के लिए, मुझे नोबल पुरस्कार ही मिल जाए। अगर ऐसा हुआ तो मैं भारत में ही नहीं दुनिया में प्रसिद्ध हो जाऊँगी।
तभी मेरे दिमाग में एक खटका उत्पन्न हुआ कि नोबल पुरस्कार के बाद मुझ पर ऐसी कोई जिम्मेदारी तो नहीं आ जाएगी जो मुझसे निभाते नहीं बने। तब मुझे एक उदाहरण दिखाई दिया था। मैं जानती थी कि एक मुस्लिम लड़की को नारी प्रगति में साहासिक कार्य के लिए नोबल दिया गया था। नोबल मिल जाने के बाद उसने अपने कौम में नारी चेतना के लिए फिर कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया तब भी उससे नोबल पुरस्कार वापस नहीं लिया गया। ऐसे में अगर मुझे नोबल मिला तो वह आजीवन मेरे पास रहेगा। इससे मैं अपना ही नहीं, हमारे देश का नाम भी ऊँचा कर दूँगी।
मुझे अपनी चर्चित होने की पिपासा शांत करने के लिए, यही तरीका निरापद लग रहा था। तब मैंने यही करने का निर्णय ले लिया।
अपने इस निश्चय में मुझे एक ही अवरोध दिखाई दिया कि मेरे पापा-मम्मी मुझे ऐसा न करने के लिए दबाव डालेंगें। मैंने तय किया कि उनके दबाव में न आने के लिए मैं उनका भावनात्मक दोहन (Emotional Blackmailing) करुँगी। मैं उनसे कहूँगी कि अगर उन्होंने, मुझे खुद से विवाह नहीं करने दिया तो मैं घर से भाग जाऊँगी या आत्महत्या कर लूँगी।
मुझे लग रहा था कि यह कहना प्रभावकारी होगा। मनोविज्ञान में एम. ए. करने में मैं भारतीय माता पिता के मनोविज्ञान से परिचित हुई थी। वे अपनी बेटी का घर से भागना या आत्महत्या करना सहन नहीं कर पाते हैं। आखिर मेरे पापा-मम्मी विवश हो जाएंगे और मुझे अनुमति दे ही देंगे। तब मैं यह अनूठी खुद से खुद की शादी कर पाऊँगी।
पूरी रात जागने और विचार मंथन के बाद अंततः मुझे यह ‘अमृत विचार’ मिल गया था। सुबह के चार बजने को आए थे। अब मुझे कुछ घंटे सो लेना चाहिए था मगर अति उत्साहित मनोदशा में, नींद मेरी आँखों से कोसों दूर चली गई थी।
मैंने मम्मी को उठाकर अभी ही बताने की अपनी उत्कंठा पर नियंत्रण किया था। फिर जब मम्मी जाग गई तब मैंने अपना निर्णय घोषित करते हुए कहा - मम्मी मैं खुद से शादी करुँगी।
मम्मी ने भौचक्के होते हुए मुझसे पूछा - प्रिय तुम्हारे कहने का क्या अर्थ है?
मैंने कहा - सिम्पल है मम्मी! अग्नि वेदी के सामने, पंडित जी के मंत्रोच्चार के बीच, मैं अकेली सात फेरे लूँगी। इस तरह मेरी खुद से शादी हो जाएगी।
इसके पश्चात् दो दिन तक घर का वातावरण तनावपूर्ण रहा था। अंततः मेरी एमोशनल ब्लैकमेलिंग के समक्ष हार मानते हुए पापा ने कहा - लक्ष्मी, कर लेने दो इसको ऐसी शादी, हमारा अधिक कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। कुछ दिन में इसका यह बुखार स्वतः उतर जाएगा।
इस स्वीकृति के बाद, पापा पर मेरे इस विवाह का आर्थिक भार न पड़े, इसके लिए मैंने लोकल सिटी चैनल में जाकर, अपनी घोषणा प्रचारित करवाई थी।
तब इस नई तरह की घटना का प्रसारण अधिकार लेने के लिए, मुझसे एक गुटखा निर्माता कंपनी ने सम्पर्क किया था। मैंने उस कंपनी के द्वारा प्रायोजन के लिए अनुबंध किया था।
इससे प्राप्त राशि का प्रयोग कर, आज मैं एक भव्य आयोजन में खुद से शादी करने जा रहीं हूँ।
(क्रमशः)
