मैं.... माँ
मैं.... माँ


असहनीय दर्द के बाद जब जब उसे देखा.. मलमल के कपड़े में लिपटी ऐसी दिख रही थी जैसे सफेद बादलों के बीच सिमटी सिकुड़ी कोई परी,
उफ्फ सारा दर्द काफूर हो गया.. उसे गोद में लेकर उसके चांद से माथे पर धीरे से स्नेह चुम्बन अंकित किया.. बरबस आंसूं निकल पड़े..
कितनी प्यारी मेरी गुड़िया, चांद कहूँ या चांद का टुकड़ा,
सीने से लगाते ही आभास हुआ... रोम रोम से अमृत बरस रहा हो.. एक मधुर एहसास से भर उठी..
फिर तो मेरी जिन्दगी में जैसे बहार आ गई.. बस गुड़िया के इर्द-गिर्द मेरा संसार था.. उसे देख ऐसे लगता था जैसे रोज ही बढ़ रही है... हर दिन बड़ी लगती..
पर थी बड़ी शांत ज्यादा सताती नहीं थी... माँ तो मैं बन ही गई थी.. पर जब उसने पहली बार मम्मी बोला तो, ऐसा लगा जैसे दुनिया जीत ली मैंने..
मुझ पर उसकी बड़ी पैनी नजर होती थी.. बड़ी गम्भीरता से वो मुझे काम करते देखती... मेरी दुनिया तो उसके आसपास थी ही.. उसे भी बस मैं ही चाहिए थी.. स्कूल से हो या खेलकूद करके वापस आए तो सबसे पहले वो मुझे देखना चाहती थी...कभी मैं नजर नहीं आई तो, खाना पीना कुछ नहीं करती थी..
मुंह फुलाकर बैठ जाती थी.. उस वक़्त उसे मनाना जरा मुश्किल होता था... फिर उसे उसका मनपसंद गीत सुना कर मना लेती थी..,
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मेरे घर आई एक नन्ही परी, चांदनी के हसीन रथ पे सवार..
और फिर मेरी गुड़िया मुस्करा कर मेरे गले लग जाती,
वक़्त नहीं रुकता, मेरी गुड़िया भी स्कूल से कब कालेज पहुंच गई पता ही नहीं चला..
अब तो उसके लिए रिश्ते भी आने लगे, ये बेटियां इतनी जल्दी बड़ी क्यों हो जाती हैं,
और एक दिन एक भोला मासूम सा राजकुमार आया और मेरी गुड़िया को अपने साथ ले गया... आज जब अपनी गुड़िया को एक पत्नी, एक बहु, एक माँ के रूप में सफल देखती हूँ तो अपनी परवरिश पर गर्व होता है, उसकी बचपन की आदत याद आती है, जब वो मुझे बड़े गौर से देखती थी, पूरी तरह उसने मुझे आत्मसात कर लिया, उसे देखती हूँ तो लगता है जैसे अपना प्रतिबिंब देख रही हूँ,
मेरी गुड़िया आज खुद एक प्यारी सी गुड़िया की माँ है,
पर आज भी कभी रूठती है तो वही गीत गाना पड़ता है,
.....उसकी बातों में शहद जैसी मिठास
उसकी सासों में इतर की महकास
होंठ जैसे के भीगे-भीगे गुलाब
गाल जैसे के दहके दहके अनार
मेरे घर आई एक नन्ही परी...
चाँदनी के हसीन रथ पे सवार...
और वो सारा गुस्सा भूल कर मुझसे लिपट जाती..
उस वक़्त फिर यहि लगता
...ये बेटियाँ इतनी जल्दी बड़ी क्यों हो जाती हैं....