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vijay laxmi Bhatt Sharma

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लॉक्डाउन२नौवाँ दिन

लॉक्डाउन२नौवाँ दिन

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प्रिय डायरी लॉक्डाउन २ का ये नौवाँ दिन है और लॉक्डाउन का तीसवाँ दिन ....

दिन उदास ही है की कोई बाहर नहीं है और रातें को कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा... वो पहली सी शान्त हैं। जीवन चल रहा है रुकता कुछ नहीं क्यूँकि समय किसी का इंतज़ार नहीं करता... जन्म मरण, विवाह समारोह सभी हो रहे हैं ये बात और है की थोड़ी बंदिशों से हो रहे हैं... हर जगह कुछ ही लोगों को जाने की इजाज़त है... घाट हो या अस्पताल... या फिर शादी का घर।

धीरे धीरे सभी समझने लगे हैं स्थिति की गम्भीरता और जो नहीं समझ रहे वो समाज के ही नहीं अपने भी दुश्मन हैं... उन्हें समझ नहीं आता उनकी एक बेवक़ूफ़ी उनकी जान तो लेगी ही साथ ही उनके परिवार...आस पड़ोस ना जाने कितने लोगों को उनकी इस बेवक़ूफ़ी का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।

प्रिय डायरी आज थोड़ा मन परेशान है बहुत कुछ देख रही हूँ....इतने मुश्किल वक्त से भी लोग सबक़ नहीं ले रहे केवल मैं मैं की रट लगाए हैं... किसी को एक वक्त खाने को नसीब नहीं कोई अपना व्यापार चमकाने की सोच रहा है ... सोचकर भी दुःख होता है की ये बुरा वक्त भी हमे बदल नहीं पा रहा.. इस बात से ही लगता है हम कितना बदल गए हैं... संवेदनहीन हो गए हैं हालाँकि सभी ऐसे नहीं हैं कुछ लोग सामाजिक जिम्मदारियों को दायित्वपूर्ण निभा रहे हैं... जरुरतमंदों तक ज़रूरत का सामान पहुँचा रहे हैं। पर इनकी संख्या कम ही है।

प्रिय डायरी अगर ये बुरा वक्त भी कुछ व्यक्तियों को बदल नहीं पाया तो समझ जाना चाहिए की अब ये राह कहाँ जाने वाली है... प्रिय डायरी आज मन की उदासी कलम पर हावी हो रही है... विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर भी माई सामान्य हो कुछ लिख नहीं पा रही... ज़ख्म गहरे हैं और ना इलाज भी इसलिए प्रिय सखी यहीं विराम लूँगी:

छँटते नहीं ये बादल घनेरे

मिटता नहीं मन का अवसाद

सोच में हूँ असमंजस में हूँ

क्या कभी होगा यहाँ नवल प्रभात।


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