Shakuntla Agarwal

Others

4.7  

Shakuntla Agarwal

Others

लम्हें

लम्हें

4 mins
504


आज मेरे जीवन का वह लम्हा आ गया था जिसका सपना हर माँ - बाप जब लड़की पैदा होती है, देखने लगता है और कहता रहता है की तुम परायी घर की अमानत हों । आज मैं वही सपना जीने जा रही थी । मेरी बेटी की सगाई की रस्में अदा होने के साथ, मेरी बरसों की ख्वाइशें मूर्त रूप ले रहीं थी । रस्मों को देखते - देखते मैं अतीत में खोती चली गयी कि कैसे हमें कभी लड़का तो कभी घर पसँद नहीं आ रहा था या फिर नौकरी न कराने की ज़िद । मेरी बेटी नौकरी करने वाली एक स्वाबलंबी लड़की थी । उसका घरेलू महिला बनकर जीने में विश्वास नहीं था । मेरा भी यही सपना था कि मेरी बेटी स्वाबलंबी रहें और वह सपना भी आज साकार होने जा रहा था । 


मैं माँ वैष्णों देवी की बहुत ऋणी हूँ । मुझे लगता है कि मेरा सपना पूरा करनें में उन्होंने मेरा बहुत साथ दिया । कैसे हम लोगों का अचानक इनके दोस्त के साथ प्रोग्राम बना और मेरी बिटिया भी साथ थी । जब हम वहाँ पहुँचे तो आठ लाख लोगों का जमावड़ा होने के कारण, हमारा नंबर आना नामुमकिन सा लग रहा था लेकिन माँ के चमत्कार ने हमें उसी दिन की चार बजे की ऊपर चढ़ने की टिकटें दिलवा दी थी । जैसे ही हमनें चढ़ाई शुरू की बारिश की फुव्वारें चल चल रहीं थी । हम लोग घोड़े या ख़च्चर लेना चाह रहें थे परन्तु वह भी ज़्यादा भीड़ होने के कारण मिल नहीं पा रहें थे । ख़राब मौसम की वज़ह से हेलीकॉप्टर भी बंद था । एक बार तो हमें लगा कि हम माँ के भवन तक शायद चढ़ नहीं पायेंगे । परन्तु माँ की कृपा ऐसी बरसी की हम बिना किसी परेशानी के माँ के भवन तक पहुँच गये थे । लेकिन वहाँ जाकर देखा कि कोई भी कमरा खाली नहीं था । जहाँ नज़र दौड़ाओ, वहाँ लोगों का हज़ूम और गँदगी नज़र आ रहीं थी । 


सुबह का समय था और हम सबको निवृत भी होना था । तभी हमें माँ की कृपा से कालिका भवन का पता चला । हमनें वहाँ जाकर रिसेप्शनिस्ट से मिन्नतें की तो उसने हमें एक - डेढ़ घंटे के लिए एक कमरा मुहैया करा दिया । हम तैयार होकर माँ के दर्शन के लिये निकलें तो देखा की वहाँ एक बड़ी लम्बी लाइन लगी हुई थी और हमारा स्लॉट भी निकल चुका था । हम लोगों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि हम अंत में जाकर खड़े हों । माँ की रहमत देखिये कि उन्होंने हमें लाइन के बीच में जगह दिलवा दी । हम माँ के भवन में जैसे ही पहुँचे तो मेरी तो एक ही मुराद थी की मेरी बेटी के हाथ पीले हों जाये और मुझें पता ही नहीं चला कि मैं कब लाइन से निकलकर माँ के सामने खड़ी थी । हालाँकि पुलिस वाले लाइन से बाहर किसी को निकलने नहीं देते हैं परन्तु मैं माँ के सामने थी और झोली फ़ैलाकर मैंने माँ से वही मुराद माँगी जो मेरे मन में थी । 


हम जैसे ही दर्शन करके प्रसाद के लिये लाइन से निकलें तो पंडित जी मेरी बेटी को प्रसाद और सिक्कें की थैली दे रहें थे । वह एक देना चाह रहें थे परन्तु वह एक साथ दो टूट रहीं थी । मैं माँ का इशारा समझ चुकी थी । मैंने बिटिया की चुनरी फैलायी और पंडित जी को उसमें दोनों थैलियाँ डालने को कहा क्योंकि मैं समझ चुकी थी की माँ की रहमत बरस रही है और मेरी बेटी को सराबोर कर रही है । मैंने माँ का धन्यवाद किया और बेटी को आशीर्वाद देकर कहा कि जिसको माँ अपने दरबार से ही दो करके भेज रही है उसका क्या कहना । वास्तव में यह चमत्कार ही था की हम बुधवार को घर आये और आज इतवार को मैं अपनी बिटिया की सगाई कर रहीं थी । हमारा परिवार वह लम्हा जी रहा था जिसका हमें बरसों से इंतज़ार था । ख़ुशी के आँसू मेरी आँखों से छलक रहें थे । 



Rate this content
Log in